संजीव पांडेय (विदेशी मामलों के विशेषज्ञ)। म्यांमार में सैन्य शासन की बढ़ती हिंसा ने म्यांमार के पड़ोसी देश बांग्लादेश, भारत और थाईलैंड की चिंता बढ़ा दी है। लोकतंत्र समर्थकों पर म्यांमार की सेना के हमले हो रहे हैं। लोकतंत्र समर्थक सैन्य हमलों से बचने के लिए भारतीय इलाके में प्रवेश कर रहे हैं। थाईलैंड में भी संजीव पांडेय म्यांमार के हजारों नागरिक शरण ले चुके हैं। म्यांमार की सेना बुरी तरह से हिंसक हो गई है। लोकतंत्र समर्थकों पर हवाई हमले तक किए जा रहे हैं। सैकड़ों लोग सेना के हमले में मारे जा चुके हैं। भारत के मिजोरम और मणिपुर राज्य में म्यांमार के नागरिक सैन्य कार्रवाई के कारण शरण ले रहे हैं। मिजोरम में बीते कुछ समय में म्यांमार से सैकड़ों लोग आ चुके हैं। ये यहां शरण ले चुके हैं। मिजोरम की राज्य सरकार इन शरणार्थियों के प्रति सहानभूति रखती है। मानवीय आधार पर म्यांमार से आए लोगों की मिजोरम सरकार मदद भी कर रही है।

दोनों तरफ रहते हैं चिन समुदाय के लोग

हालांकि, भारत सरकार लगातार म्यांमार से आने वाले लोगों को सीमा पर रोकने की कोशिश कर रही है, लेकिन लंबी सीमा पर बांग्लादेश के तर्ज पर बाड़बंदी नहीं होने के कारण म्यांमार से आने वाले लोगों को रोकना मुश्किल काम है। उधर, मिजोरम सरकार की भी स्थानीय समस्या है। म्यांमार और मिजोरम की लंबी सीमा है। मिजोरम से म्यांमार की साझा सीमा लगभग 400 किलोमीटर लंबी है। दोनों तरफ रहने वाले लोगों के बीच आपसी पारिवारिक संबंध हैं। क्योंकि दोनों तरफ चिन समुदाय के लोग रहते हैं। मिजोरम में रहने वाली जातियों के संबंध म्यांमार में रहने वाली जातियों से हैं। म्यांमार में रहने वाले चिन समुदाय के लोगों के पारिवारिक रिश्ते मिजोरम की सीमा में रहने वाले चिन समुदाय के परिवारों से हैं। ऐसे में म्यांमार की सीमा में रहने वाले चिन समुदाय के लोगों के प्रति मिजोरम सरकार की सहानभूति है। इसी तरह से मणिपुर की सीमा भी म्यांमार से लगती है। वहां भी म्यांमार से शरण लेने के लिए लोग आ रहे हैं।

रोहिंग्याओं के दमन के लिए म्यांमार की सेना जिम्मेदार

आज भी लाखों रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश और भारत में शरण लिए हुए हैं। रोहिंग्या लोगों के दमन के लिए भी म्यांमार की सेना ही जिम्मेदार है। अब म्यांमार की सेना लोकतंत्र समर्थकों का दमन कर रही है। इसका सीधा प्रभाव भारत और थाईलैंड पर पड़ रहा है। सैन्य दमन से बचने के लिए हजारों लोग म्यांमार छोड़कर भाग रहे हैं। ये भारत और थाईलैंड की सीमा में पहुंच रहे हैं। ऐसे में भारत सरकार म्यांमार की आंतरिक स्थिति पर कब तक चुप रहेगी? इसमें कोई शक नहीं है कि म्यांमार के सैन्य शासन को चीन का समर्थन प्राप्त है। चीन से सहमति मिलने के बाद ही म्यांमार के सैन्य शासकों ने तख्ता पलट किया।

पश्चिमी देशों का म्यांमारी सेना पर सख्त दबाव

अब म्यांमार के सैन्य शासकों को चीन खुलकर समर्थन दे रहा है क्योंकि इससे चीन के आर्थिक हित म्यांमार में सधेंगे। चीन के समर्थन के कारण म्यांमार की सेना का मनोबल बढ़ा हुआ है। वे अपने ही लोगों पर गोलियां चला रहे हैं। ऐसे में दुनिया का सबसे बड़े लोकतंत्र होने के नाते भारत को तुरंत म्यांमार में लोकतंत्र को बहाली के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। म्यांमार की सेना पर दबाव बनाना चाहिए। पश्चिमी देशों ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है। पश्चिमी देशों ने म्यांमारी सेना पर सख्त दबाव बनाना शुरू कर दिया है। लोकतंत्र बहाली को लेकर पश्चिमी देशों ने म्यांमार के सैन्य शासकों और इससे जुड़ी कंपनियों पर प्रतिबंध भी लगाए हैं।

बौद्घ धर्म को मानने वाली है म्यांमार में बहुसंख्यक आबादी

म्यांमार में सैन्य शासन की हिंसा उस बौद्घ धर्म के आचार-विचार पर हमला है, जिसने सारी दुनिया को अहिंसा का पाठ पढ़ाया है। म्यांमार में बहुसंख्यक आबादी बौद्घ धर्म को मानती है। देश की 88 प्रतिशत आबादी बौद्घ धर्म की अनुयायी है। इसके बावजूद म्यांमार जैसे मुल्क में इतनी भयानक हिंसा साफ संकेत देती है कि म्यांमार में बौद्घ धर्म के सिद्घांतों को चुनौती मिली है। देश की प्रमुख जातियां बमार, शान, राखीन, सोम करेन बौद्घ धर्म को ही मानती हैं। देश में 6 प्रतिशत ईसाई भी हैं। लगभग 4 प्रतिशत आबादी मुस्लिम भी है। पर चिंता की बात है कि अहिंसा के प्रचार के लिए जिम्मेदार कुछ बौद्घ संगठन इस देश में हिंसा को प्रोत्साहित कर रहे हैं।

बौद्घ भिक्षु अशीन विराथु बना बौद्घ आतंकवाद का चेहरा

वे म्यांमार की सेना के साथ मिलकर हिंसा कर रहे हैं। म्यांमार के सैन्य तानाशाह भी बौद्घ धर्म के अंहिसा के सिद्घांत को तिलांजली दे चुके हैं। म्यांमार का कट्टरपंथी बौद्घ भिक्षु अशीन विराथु तो बौद्घ आतंकवाद का चेहरा बना हुआ है। उसने म्यांमार में मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर हमले को सही ठहराया। लोगों को उन पर हमले के लिए उकसाया। बौद्घ बहुमत वाले देश श्रीलंका के बाद म्यांमार में बौद्घ धर्म के मूल सिद्घांतों को नुकसान पहुंचाया गया और कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया गया। इन दोनों देशों में सरकारों ने कट्टर बौद्घ संगठनों को संरक्षण दिया। उन्हें मदद भी की और उनसे शासन चलाने में मदद भी मांगी।

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