पं राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। दो अगस्त को नाग पंचमी मनाई जाएगी। अग्नि पुराण में लगभग 80 प्रकार के नाग कुलों का वर्णन मिलता है, जिसमें अनन्त, वासुकी, पदम, महापध, तक्षक, कुलिक, कर्कोटक और शंखपाल यह प्रमुख माने गये हैं। स्कन्दपुराण, भविष्यपुराण तथा कूर्मपुराण में भी इनका उल्लेख मिलता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राहू के जन्म नक्षत्र "भरणी" के देवता काल हैं एवं केतु के जन्म नक्षत्र ' 'अश्लेषा के देवता सर्प हैं। अत: राहू-केतु के जन्म नक्षत्र देवताओं के नामों को जोड़कर "कालसर्प योग" कहा जाता है। राशि चक्र में 12 राशियां हैं, जन्म पत्रिका में 12 भाव हैं एवं 12 लग्न हैं। इस तरह कुल 144 = 288 कालसर्प योग घटित होते हैं।

इस बार नाग पंचमी होगी विशेष
इस बार नागपंचमी पर शुभ फल देने वाले सूर्योदय से उ.फा. नक्षत्र लगेगा जोकि सांय 5:29 बजे तक तदोपरान्त हस्त नक्षत्र आरम्भ होगा एवं विशेष "शिव योग" सांय 6:36 बजे तक तदोपरांत "सिद्ध योग" आरम्भ होगा।इस दिन कन्या के चन्द्र के विशेष योग में नागपंचमी मनायी जायेगी। कालसर्प दोष निवारण के लिए यह विशिष्ट दिन है। नागपंचमी के सिद्ध मुहुर्त प्रात: 9:07 बजे से अपराह्ण 2:04 बजे तक चर लाभ,अमृत के चौघड़िया,अपराह्न 3:46 बजे से सांय 5:24 बजे तक शुभ के चौघड़िया में कालसर्प दोष शांति कराना अति उत्तम रहेगा। वर्ष के मध्य में कालसर्प योग जिस समय बने उस समय अनुष्ठान भी सर्वश्रेष्ठ रहता है। *कालसर्प योग यज्ञ का आरम्भ या समाप्ति पंचमी, अष्टमी,दशमी या चुतुर्दशी तिथि वार चाहें जो भी हो,भरणी,आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य,आश्लेषा,उत्तराषाढ़ा,अभिजित एवं श्रवण नक्षत्र* श्रेष्ठ माने जाते हैं। परन्तु जातक की राशि से ग्रह गणना का विचार करना परम आवश्यक होता है।