-सत्य की जीत और देशभक्ति से ओतप्रोत संवादों ने बंटोरी तालियां

-नाट्य मंचन के जरिये मुंशी प्रेमचंद को जीवंत करने की पहल

बरेली : जब नमक पर कर लगा तो लोग चोरी छिपे इसका व्यापार करने लगे। इसके दारोगा पद के लिए लोगों का जी ललचाता था। ऐसे में दारोगा वंशीधर ने परिवार और परिस्थितियों से परे सच्चाई के रास्ते पर चलने का पाप किया और उसकी जगहंसाई हुई। आखिर में ईमानदारी के चलते विरोधी भी नतमस्तक हो गए। संजय कम्यूनिटी हॉल में चल रहे मुंशी प्रेमचंद स्मृति नाट्य समारोह में फ्राइडे को नमक का दारोगा का मंचन हुआ।

नाटक से बटोरी तालियां

1914 के परिदृश्य पर आधारित नमक का दारोगा नाटक को निदेशक मोहनीश खान ने आधुनिक रंग में रंगने की पहल की। इसमें कुछ हद तक वह सफल भी दिखाई दिए। प्रेमचंद के नजरिए से देखने पर आज भी समाज वही है मात्र परिस्थितियां बदल गई हैं। पंडित ओलोपदीन जैसे लोग आज भी है जो अपने रसूख के चलते कानून से खिलवाड़ करते हैं। धन-बल पर सच्चाई की जीत और देशभक्ति के संवादों से ओतप्रोत नाटक ने खूब तालियां बंटोरी।

कलक्ट्रेट ने खींचा ध्यान

नाटक के कुछ दृश्यों को कलेक्ट्रेट और शहर के कुछ हिस्सों में फिल्माया गया था। इसको प्रोजेक्टर के माध्यम से प्रदर्शित किया गया। सतेंद्र पाठक ने पिता और इमरान ने अंग्रेज की भूमिका को पूरी तरह निभाया। संचालन कविता अरोड़ा ने किया। आयोजन में डीएम वीरेंद्र कुमार, कुलभूषण शर्मा आदि का सहयोग रहा। वहीं मीडिया प्रभारी गौरव वर्मा ने बताया कि समारोह 9 अगस्त तक चलेगा। सैटरडे को बूढ़ी काकी का मंचन होगा।