RANCHI: नेचर ऑफ हार्ट के रूप में विख्यात पलामू प्रमंडल के नेतरहाट में प्रथम राष्ट्रीय आदिवासी एवं लोक चित्रकारों के शिविर में जहां दिन में देशभर से आये चित्रकार अपने राज्य के लोक चित्रकारी की छटा बिखेर रहें हैं, वहीं दूसरी ओर शाम में लोक कलाकारों द्वारा लोक नृत्य कर लोगों को झारखंड की संस्कृति से अवगत कराया जा रहा है। शिविर के चौथे दिन डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण अनुसंधान केंद्र के उपनिदेशक चिंटू दोराइ बुरु की अगवाई में सभी चित्रकारों ने राष्ट्रगान गाकर दिन की शुरुआत की। उपनिदेशक ने बताया कि चित्रकारों को नेतरहाट की प्राकृतिक खूबसूरती दिखाने के लिए भी व्यवस्था की गयी है, ताकि देशभर से आये चित्रकार नेतरहाट की सुंदरता से मुखातिब हो सकें।

गुजरात की पिथौरा चित्रकला का आकर्षण

इस शिविर में भाग ले रहे राठवा हरि भाई गुजरात की पिथौरा चित्रकला को बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि पिथौरा चित्रों से आदिवासियों के जीवन कला की हर पहलू को बखूबी से दिखाया जाता है। उन्होंने कहा कि बचपन से अपने पिता व दादाजी को पिथौरा चित्र बनाते देखा था। उनकी चित्रकारी से प्रभावित होकर उन्हें इस चित्र को बनाने की प्रेरणा मिली। दम तोड़ती आदिवासियों की इस कला को उनके परिवार ने आज भी सहेज कर रखा है।

खुशहाली का प्रतीक है पिथौरा चित्रकला

राठवा हरीभाई ने कहा कि यह चित्रकला मध्य गुजरात में रहने वाले राठवा, भील और विनायक जनजाति के लोगों द्वारा दीवारों पर बनायी जाती है। ऐसा माना जाता है कि यह शांति और खुशहाली का प्रतीक है। इन चित्रों में रोजमर्रा के जीवन, पशु-पक्षी, पेड़ और त्योहार के प्रसंग दिखाये जाते हैं। इसमें चित्र के बीच में एक छोटा आयाताकार जानवर बनाया जाता है जिसमें उंगलियों से छोटी-छोटी बिंदी लगाई जाती है। इनके लिए पिथौरा बाबा अति विशिष्ट व पूजनीय होते हैं, जो अपने घर में अधिकाधिक पिथौरा चित्र रखते हैं वे समाज में अति सम्मानीय माने जाते हैं। सर्वोच्च पद पर आसीन जो पुजारी धार्मिक अनुष्ठान करवाता है उसे बड़वा कहा जाता है।

कई रंगों का किया जाता है प्रयोग

इस चित्रकला के रंगों को बनाने के लिए रंगीन पाउडर में दूध व महुआ का प्रयोग किया जाता है। चित्र बनाने के लिए मुख्य रूप से पीले, नारंगी, हरे, नीले, सिंदूरी, लाल, आसमानी, काले व चांदनी रंगों का प्रयोग किया जाता है। ब्रश बनाने के लिए बेंत या पेड़ों की टहनियों के किनारों को कुटा जाता है। इस शिविर के बारे में उन्होंने बताया कि इस तरीके के शिविर हम सभी लोक एवं आदिवासी चित्रकारों को एक दूसरे से मिलने व सीखने का अवसर देता है। उन्होंने झारखंड सरकार के प्रति आभार प्रकट किया।