कानपुर। National Endangered Species Day 2020: लुप्तप्राय प्रजाति दिवस हर साल मई के तीसरे शुक्रवार को मनाया जाता है। इस साल यह दिवस 15 मई मनाया जाएगा। इस दिवस के मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण के प्रति जागरूक करना है। दुनिया में आबादी तेजी से बढ़ने और जलवायु में परिवर्तन की वजह से जहां मानव पर कुछ असर पड़े हैं तो वहीं, वनप्राणियों पर भी काफी असर पड़ा है। इसकी वजह से कुछ जानवर विलुप्त हो गए हैं, जबकि कई अन्य जैसे पहाड़ गोरिल्ला, विशाल पांडा और जावा गैंडे विलुप्त होने के करीब हैं। इसलिए इन लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के लिए एक बढ़ा कदम उठाने की जरूरत थी, जिससे इन लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के महत्व पर जनता को शिक्षित करने में मदद मिल सके।

लुप्तप्राय प्रजाति दिवस की कैसे हुई शुरूआत

इसलिए विश्व स्तर पर 1960 और 1970 के दशक में पर्यावरण संरक्षण के साथ जानवरों की लुप्त होती प्रजातियों पर पर भी विचार किया गया। पहली बार लुप्तप्राय शब्द का इस्तेमाल 1960 में किया गया था और इसे यूएस लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम 1972 जैसे कानूनों के साथ जोड़ा गया था, जो लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के लिए कुछ नियम निर्धारित करते थे। इसके बाद यूनाइटेड स्टेट्स ने 2006 में राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस अधिनियम बनाया। इसके बाद से ही हर साल मई के तीसरे शुक्रवार को राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस मनाया जाने लगा।

लुप्तप्राय प्रजाति दिवस का महत्व

मानव जीवन के विकास और अस्तित्व के लिए सभी प्रजातियों का संरक्षण जरूरी है और राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस इस ओर लोगों को जगरूक करने का एक बेहद कारगर कदम है। इस दिन के दौरान, कोई ऐसी प्रजाति के बारे में जानकारी पढ़ने और हासिल करने का मौका मिलता है जो लगभग विलुप्त हो गई हैं या होने की कगार पर हैं। इस कार्यक्रम से लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के महत्व पर जागरूकता पैदा करने में काफी मदद मिलती है। राष्ट्रीय लुप्तप्राय प्रजाति दिवस सभी को लुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा के महत्व के बारे में जानने का अवसर प्रदान करता है। हमें मिलकर वन्य जीवन, लुप्तप्राय प्रजातियों, जैव विविधता और संरक्षण के महत्व के बारे में जनता के बीच जागरूकता पैदा करने की दिशा में काम करना चाहिए। लुप्तप्राय प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर क्यों हैं? इसके पीछे क्या कारण हैं? इसे समझना आवश्यक है। कोई संदेह नहीं कि विलुप्त होने की प्रकृति की एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन कुछ अन्य कारणों के कारण विलुप्तता बढ़ रही है। अगर ऐसा ही रहा तो एक दिन आएगा जब हम बाघ, हाथी, चील आदि नहीं देख पाएंगे।