-जिनमें दिखती है नव दुर्गा के द्वितीय स्वरूप ब्रह्माचारिणी की झलक

-73 वर्ष की दुईजी अम्मा 30 वर्ष से लगातार लड़ रही हैं महिलाओं के अधिकार की लड़ाई

balaji kesharwani@inext.co.in

ALLAHABAD: आज नव दुर्गा के द्वितीय स्वरूप ब्रह्माचारिणी का दिन है। जो त्याग, बलिदान और तपस्या की प्रतिमूर्ति हैं। पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर वर्षो तक भगवान शिव की तपस्या की देवी मानी जाती हैं। ऐसी ही ब्रह्माचारिणी स्वरूपा दुईजी अम्मा हैं। खुद अनपढ़ होते हुए भी आसपास के करीब तीस गावों के बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं। पत्थरों को तोड़ते हुए कईयों की किस्मत बदल दी है। आज भी उनकी जिंदगी पत्थरों के बीच ही गुजर रही है।

सब मानते हैं दुईजी अम्मा का लोहा

शंकरगढ़ के जूही कोठी में रहती हैं दुईजी अम्मा। 73 साल की इस बूढ़ी महिला के कदमों की आहट पहचानते हैं गांव के लोग। शंकरगढ़ और कोरांव के लगभग 150 गांव में जुल्म का शिकार होने वाली हर औरत उनके पास आती है और वह बिना आगे पीछे सोचे उसके साथ खड़ी हो जाती हैं। नेताओं से लेकर समाज सेवी और प्रशासनिक अधिकारी तक इस महिला का लोहा मानते हैं।

जुल्म के खिलाफ उठाई आवाज

30 साल पहले मऊरानीपुर के गाहुर गांव से एक महिला अपने बच्चों के साथ रोजी-रोटी की तलाश में जूही कोठी गांव पहुंची। पत्थर तोड़ कर परिवार का पेट पाला। ठेकेदारों के मनमानी और निरक्षर मजदूरों पर ढाए जा रहे जुल्म को करीब से देखा। किस तरह ठेकेदार मजदूरों के अंगूठे का निशान ले लेते और बाद में ज्यादा रकम दिखाकर कर्जदार बना देते थे। दुइजी से यह सब नहीं देखा गया और उसने महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी। सैकड़ों महिलाओं को उनका हक दिलाने वाली दुइजी के चार बेटे आज भी पत्थर तोड़ते हैं। वह उनके भविष्य के लिए कुछ नहीं कर सकीं। बेटियों की जैसे-तैसे शादी की है। फिर भी उन्हें किसी से कोई शिकायत नहीं है। गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए वह हैंडपंप रिपयेरिंग, कुकिंग चूल्हा, हैंडपंप का रैंप, राजगीर आदि की ट्रेनिंग कुछ संस्थाओं के जरिए दिला रही हैं। गांव में बिजली नहीं है। कोठरी में रहने वाली दुइजी को शासन ने तीन साल पहले सोलर लैंप लगाने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन उन्होंने पूरे गांव की दुहाई देते हुए इस सुविधा को लेने से इनकार कर दिया।

सरकारों ने सराहा

दुईजी के कार्यो ने ऐसा प्रभाव दिखाया कि 2005 में उनका नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया। उत्तरांचल सरकार उन्हें अवध पुरस्कार दे चुकी है। 2006 में वुमंस डे पर उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार ने एवार्ड दिया था। और भी कई पुरस्कार उनके खाते में हैं। आदिवासियों को जनजातीय श्रेणी में शामिल कराने की मांग उठा चुकी हैं। 1000 पीस वुमेन एक्रास द ग्लोब में दुइजी को को 377वां स्थान मिल चुका है।