'चैत्र' का अर्थ है, एक नए साल की शुरुआत, 'नव' के दो अर्थ हैं, एक 'नौ' और दूसरा 'नया'। 'रात्रि' का अर्थ है रात, जो सांत्वना और विश्राम देती है। यह अवधि आत्म-निरीक्षण और अपने स्रोत पर वापस आने का समय है। परिवर्तन के इस समय के दौरान, प्रकृति पुराने को छोड़ देती है और फिर से जीवंत हो जाती है। जैसे बच्चा पैदा होने से पहले नौ महीने तक मां के गर्भ में रहता है, उसी तरह इन नौ दिनों और रातों के दौरान, साधक उपवास, प्रार्थना, मौन और ध्यान के माध्यम से सच्चे स्रोत पर वापस आ जाता है। रात्रि हमारे अस्तित्व के तीन स्तरों, भौतिक, सूक्ष्म और कारण पर राहत देती है, जबकि उपवास शरीर को विषमुक्त करता है, मौन वाणी को शुद्ध करता है और हमेशा बोलते रहने वाले मन को आराम देता है, ध्यान व्यक्ति को अपने अस्तित्व की गहराई में ले जाता है।

मन दिव्य चेतना में हो

नवरात्रि की इन नौ रातों के दौरान आपका मन दिव्य चेतना में होना चाहिए। जब नकारात्मक शक्तियां आपको सताती हैं, तो आप परेशान होते हैं। नकारात्मकता से राहत पाने के लिए अपने भीतर ऊर्जा के स्रोत पर जाएं, वही शक्ति है। नवरात्रि के पहले तीन दिनों में हम शौर्य और आत्मविश्वास की प्रतिमूर्ति मां दुर्गा की आराधना करते हैं। अगले तीन दिन धन की देवी लक्ष्मी को समर्पित हैं और अंतिम तीन दिन ज्ञान की देवी सरस्वती को समर्पित हैं। मधु और कैटभ, महिषासुर और शुंभ व निशुंभ और कई अन्य राक्षसों का वध करके शांति और व्यवस्था बहाल करने के लिए देवी मां ने खुद को कैसे प्रकट किया, इस पर कई कहानियां हैं। ये असुर नकारात्मक शक्तियों के प्रतीक हैं। मधु राग है और कैटभ द्वेष। वहीं, रक्तबीजासुर, गहराई से निहित नकारात्मकता और जुनून। महिषासुर सुस्ती और जड़त्व का प्रतीक है। शुंभ-निशुंभ हर चीज में संशय हैं। दैवीय शक्ति ऊर्जा लाती है और जड़ता दूर हो जाती है। नवरात्रि आत्मा का उत्सव है, जो अकेले असुरों को नष्ट कर सकती है।

देवत्व को हर रूप और हर नाम में पहचानना ही नवरात्रि

कुल नौ दिनों में से, तीन रातें तीन गुणों के अनुरूप होती हैं, तमस, रजस और सत्व। यद्यपि हमारा जीवन तीन गुणों से संचालित होता है, हम शायद ही कभी उन्हें पहचानते हैं और उन पर विचार करते हैं। हमारी चेतना तमो गुण और रजो गुण के माध्यम से चलती है और आखिरी तीन दिनों के सत्व गुण में खिलती है। इन तीन मौलिक गुणों को हमारे भव्य ब्रह्मांड की देवी शक्ति के रूप में माना जाता है। नवरात्रि के दौरान देवी मां की पूजा करके, हम तीनों गुणों में सामंजस्य लाते हैं और वातावरण में सत्व बढ़ाते हैं। इन नौ शुभ दिनों में कई यज्ञ किए जाते हैं। यद्यपि हम सभी यज्ञों और समारोहों के अर्थ को नहीं समझ सकते हैं, लेकिन हमें बस अपने दिल और दिमाग को खोलकर बैठना चाहिए और इससे पैदा होने वाले स्पंदनों को महसूस करना चाहिए। सभी अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों के साथ जप करने से चेतना की शुद्धि और उत्थान होता है। एक देवत्व को हर रूप और हर नाम में पहचानना ही नवरात्रि का उत्सव है।

Spiritual News inextlive from Spiritual News Desk