इंडिया के पांच स्टेट्स में इलेक्शंस होने जा रहे हैं. इनमें यूथ वोटर का इस बार बड़ा परसेंटेज है. उसमें भी ऐसा यूथ वोटर बहुत है जो पहली बार वोट करने जा रहा है. तो क्या यूथ वोटर कुछ चेंज ला पाएगा? आखिर अनएम्प्लॉयमेंट यूथ के लिए कितनी बड़ी प्रॉब्लम्स है? आज बात करते हैं इंडियन यूथ, वल्र्ड की इस लार्जेस्ट डेमोक्रेसी में यूथ रिवोल्यूशन की जरूरत और अनएम्प्लॉयमेंट पर बाकी देशों व इंडियन कंडीशंस में बेसिक डिफरेंसेज पर...

अब तस्वीर बदलनी होगी

हां, प्रॉब्लम तो है

इंडिया के कांटेक्स्ट में बात करें तो मिडिल ईस्ट का रिवोल्यूशन एक अलग कहानी नजर आता है. इंडिया दुनिया की सबसे बड़ी डेमोक्रेसी है और यहां पर एक डेमोक्रेटिक गवर्नमेंट के खिलाफ रिवोल्यूशन हो सकता है. मिडिल ईस्ट में ठीक इसका उल्टा था. वहां ऑटोक्रेटिक गवर्नमेंट्स और डिक्टेटर्स के खिलाफ लोगों का गुस्सा फूटा. हां, एक बात दोनों ही जगह कॉमन है, वह है यूथ में अनएम्प्लॉयमेंट. दरअसल अनएम्प्लॉयमेंट पूरी दुनिया की समस्या है. यह एक ग्लोबल प्रॉब्लम है.

एक बड़ी समस्या

मिडिल ईस्ट और नार्थ अफ्रीका में रिवोल्यूशंस की बड़ी वजह यह अनएम्प्लॉयमेंट ही था. इस रीजन के 24 परसेंट यूथ अनएम्प्लॉयमेंट से परेशान हैं. यही नहीं यूनाईटेड किंगडम में भी अनएम्प्लॉयड यूथ की संख्या काफी बड़ी है. उसमें भी 16 से 24 साल का यूथ 40 परेंसट है. स्पेन में बेरोजगार यूथ का आकड़ा 40 परसेंट के पार है. फ्रांस में 20 परेंसट यंगस्टर्स अनएम्प्लॉयमेंट से जूझ रहे हैं जबकि सुपरपॉवर अमेरिका में यह डेटा 21 परसेंट के करीब है. पिक्चर बिल्कुल क्लियर है. अनएम्प्लॉयमेंट यूथ में रजिस्टेंस का एक बड़ा रीजन है.

ऐसा देश है मेरा

अब तस्वीर इंडिया के कांटेक्स्ट में देखते हैं. गवर्नमेंट के 2009-10 के आंकड़े कहते हैं कि इंडिया में अनएम्प्लॉयमेंट रेट 9.4 परसेंट है. कई अन्य देशों को देखते हुए यह काफी कम समझ में आता है, लेकिन दरअसल इंडियन यूथ के सामने अनएम्प्लॉयमेंट एक बड़ी समस्या है. इंडियन यूथ के लिए इसके मायने अलग हो जाते हैं. इस अनएम्प्लॉयमेंट के लिए सरकारों की गलत पॉलिसीज, एकेडमिक्स बेस्ड एजूकेशन सिस्टम और स्किल्ड वर्कफोर्स की कमी जिम्मेदार है.

पर असली प्रॉब्लम तो ये है

कुछ आंकड़ों पर निगाह डालें तो तस्वीर और साफ हो जाएगी. एक रिपोर्ट के मुताबिक इंडियन यूथ दरअसल एम्प्लॉयमेंट के लायक ही नहीं है. इसका मतलब यूथ की तरफ से किसी तरह की लापरवाही से नहीं है, बल्कि यह रिपोर्ट इशारा करती है कि किस तरह हमारी सरकारों द्वारा चलाए जा रहे स्टीरियोटाइप एजूकेशन सिस्टम में यूथ को एम्प्लॉयेबल बनाने की ताकत ही नहीं है.

पढ़े तो पर...

रिपोर्ट कहती है कि स्कूल-कॉलेज से निकलने वाले स्टूडेंट्स के पास बुक नॉलेज तो बहुत होती है, लेकिन वोकेशनल नॉलेज में वह बहुत पीछे होते हैं. हकीकत यह है कि एम्प्लॉयमेंट के लिए वोकेशनल नॉलेज की रिक्वायरमेंट 90 परसेंट है. इंडिया में आज भी 90 परसेंट से अधिक जॉब्स स्किल बेस्ड हैं.

सिस्टम में चेंज चाहिए

इस आंकड़ों और फैक्ट्स से साफ है कि इंडियन यूथ के लिए भी अनएम्प्लॉयमेंट एक बड़ी कंसर्न है. अन्य देशों के कंपैरिजन में इंडिया का अनएम्प्लॉयमेंट डिफरेंट है. यहां अनएम्प्लॉयमेंट यूथ को सही एजूकेशन न मिल पाने की वजह से है. इसका एक और असर यह पड़ रहा है कि इंडिया का यूथ रिच नहीं हो पा रहा है. इसे थोड़ा और क्लियर करें तो हमारी अनएम्प्लॉयमेंट की प्रॉब्लम कुछ हटकर है. बाकी देशों में अनएम्प्लॉयमेंट का परसेंटेज बहुत अधिक है. हम कह सकते हैं कि इंडिया में यह परसेंटेज कम है, लेकिन ऐसा कहना एक पॉलिटिकल गिमिक से अधिक कुछ नहीं होगा. परसेंटेज कम होने के बावजूद हमारे यहां यूथ के बीच में अनएम्प्लॉयबिलिटी एक बड़ी कंसर्न है. इंडिया का यूथ पढ़ा लिखा है, समझदार है, लेकिन स्किल्स नहीं है. नतीजा यह होता है कि उसे काम तो मिल जाता है, लेकिन शायद काम का पूरा दाम नहीं मिल पाता है.

Figures Speaks

मिडिल ईस्ट व नार्थ अफ्रीका में 24% यूथ अनएम्प्लॉयड

यूके में अनएम्प्लॉयड यूथ में 40% 16 से 24 साल के हैं.

स्पेन में बेरोजगार यूथ का आकड़ा 40% के पार है.

फ्रांस में 20% यंगस्टर्स अनएम्प्लॉयमेंट से जूझ रहे.

सुपरपॉवर अमेरिका में यह डेटा 21% के करीब है.

लेबर रिपोर्ट 2009-10 के अनुसार अनएम्प्लॉयमेंट रेट 9.4% है.

इंडिया में एम्प्लॉयमेंट के लिए वोकेशनल नॉलेज की रिक्वायरमेंट 90% है.

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