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-बंद होने के कगार पर पहुंचा बेली हॉस्पिटल में ढाई माह पहले खुला प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र

-कंपनियों की दवाएं लिखने से बाज नहीं आ रहे डॉक्टर्स

फैक्ट फाइल

3000 मरीज हर रोज आते हैं बेली हॉस्पिटल

35 है हॉस्पिटल में कुल डॉक्टर्स की संख्या

04 सरकारी हॉस्पिटल्स में खुले हैं जन औषधि केन्द्र

PRAYAGRAJ: महज ढाई माह पहले बेली हॉस्पिटल में खुला प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र अपनी अंतिम सांसें गिनने की कगार पर है। सस्ती और जेनेरिक दवाएं बेचने के बावजूद यहां मरीज नहीं आते। जबकि पड़ोस में खुले मेडिकल स्टोर में सुबह से शाम तक मरीजों की भीड़ लगी रहती है। इनमें अधिकतर मरीज बेली हॉस्पिटल के ही होते हैं। इनके पर्चे पर डॉक्टर्स कंपनियों की महंगी दवाएं लिखते हैं।

एक हजार भी कमाना मुश्किल

प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र में सस्ती और जेनेरिक दवाएं मिलती हैं। इनकी कीमत ब्रांडेड और महंगी दवाओं से आधी से भी कम होती है। इन केंद्रों को पीएम नरेंद्र मोदी का महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट भी कहा जा सकता है। बावजूद इसके यह केंद्र शायद ही कहीं सक्सेज हो रहे हों। इसके पीछे की वजह बिल्कुल साफ है। पहले एसआरएन हॉस्पिटल और अब बेली हॉस्पिटल में यहां पर ढाई माह पहले केंद्र खुला है। लेकिन संचालक को दिनभर में एक हजार रुपए कमाने के लाले पड़े हैं।

पर्चे में लिखा होता है ब्रांड नेम

केंद्र के संचालक का कहना है कि अगर डॉक्टर्स पर्चे पर दवा का साल्ट नेम लिखे तो हमें आसानी हो जाएगी। मरीज पर्चा लेकर आएगा और हम उसे उसी साल्ट को अवेलेबल करा देंगे। लेकिन वह ब्रांड नेम लिखाकर लाता है जो हमारे पास नहीं होता। मरीज को अगर कहा जाए कि हम सब्स्टीट्यूट दे दें तो भी वह लेने को तैयार नही होता। उसको उसी नाम की दवा चाहिए होती है।

बॉक्स

ऐसे चलती है मनमानी

-जनऔषधि केन्द्र पर जेनेरिक दवाएं 50 फीसदी से कम दामों पर उपलब्ध हैं। -डॉक्टर्स को केंद्र सरकार की ओर से जेनेरिक दवाएं लिखने को कहा गया है लेकिन वह ऐसा नही करते।

-अधिकतर डॉक्टर्स कमीशनखोरी के चक्कर में ब्रांड नेम लिखते हैं।

-इतना ही नही, मरीजों को यह भी कहा जाता है कि दवा खरीदकर दिखा देना।

-अगर वह जेनेरिक दवाए लेकर जाता है तो उसे डॉक्टर की फटकार भी सुननी पड़ती है।

-मरीजों से कहा जाता है कि यह दवा फायदा नहीं करेगी।

कॉलिंग

दो दिन से तेज बुखार आ रहा है। आज डॉक्टर को दिखाने गए तो उन्होंने बाहर की दो दवाएं लिख दीं। मेडिकल स्टोर में 150 रुपए इनकी कीमत है। पांच दिन बाद फिर बुलाया गया है।

-राकेश, सोरांव

सीने में जलन की शिकायत पर दिखाने आए थे। पर्चे पर दवा का नाम लिखकर कहा बाहर से ले लेना। जन औषधि केंद्र गए तो यह दवा उपलब्ध नहीं थी। दूसरी दवा दे रहे थे लेकिन डॉक्टर साहब ने मना किया था।

-मोइन, ममफोर्डगंज

पैर में चोट लग गई थी। घाव सूखने की दवा डॉक्टर ने लिखी है। जो दवा उन्होंने बताया वह मार्केट में बहुत महंगी है। अगर दवा का साल्ट लिख देते तो वह जन औषधि केंद्र से ले सकते थे।

-विजेंद्र गोयल, लूकरगंज

वर्जन

दवाओं की बिक्री काफी कम है। हमने एक बार सीएमएस से रिक्वेस्ट की थी कि डॉक्टर्स से साल्ट नेम लिखने को कहा जाए लेकिन सुनवाई नहीं हुई। ब्रांड नेम लिखे जाने से दवाएं महंगी भी मिलती हैं और मरीज को आर्थिक नुकसान भी होता है।

-विकास, संचालक, प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र बेली हॉस्पिटल