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PRAYAGRAJ:

80 के दशक से चल रही और इलाहाबादियों की सबसे चहेती प्रयागराज एक्सप्रेस की जबर्दस्त मौजूदगी के बीच सात फरवरी 2010 को मेरा जन्म हुआ। मैने पहली बार इलाहाबादियों को हाईस्पीड ट्रेन में सफर का अहसास दिलाया। अपनी तेज रफ्तार और पंक्चुअलिटी की वजह से इलाहाबादियों की 'लाडली' ट्रेन बनी। नौ वर्ष सात महीने मैंने लाखों लोगों को इलाहाबाद से दिल्ली और दिल्ली से इलाहाबाद पहुंचाया। लेकिन 12 सितंबर 2019 का दिन मेरी जिंदगी का आखिरी सफर रहा। मैं तो अब नहीं रहूंगी, मेरा नाम भी मिट जाएगा, लेकिन मेरा नंबर 12275 और 12276 आगे भी जारी रहेगा। मेरी उत्तराधिकारी अब हमसफर होगी, जो आपकी हमसफर बनेगी।

जब मैं पटरी पर आई

नौ वर्ष सात महीने पहले जब मैं पटरी पर आई थी, तो उस समय प्रयागराज एक्सप्रेस से मेरी कड़ी टक्कर थी। प्रयागराज एक्सप्रेस ट्रेडिशनल ट्रेन थी और मैं मोडीफाई ट्रेन थी। यानी परंपरागत और नई टेक्निक का मिक्सअप। मेरी ट्रेन के डिब्बे का निचला हिस्सा जहां आईसीएफ टेक्नोलॉजी का है, वहीं ऊपर का हिस्सा एलएचबी कोच जैसा है। लेकिन मेरे डिब्बे 100 परसेंट एलचबी कोच नहीं हैं। जिस डिजाइन के मेरे डिब्बे हैं, उस डिजाइन के डिब्बे अब रेलवे में आना बंद हो चुके हैं। इसीलिए रेलवे ने मुझे और मेरे डिब्बों को किनारे कर दिया।

मेरी वजह से सूनी नहीं हुई किसी सुहागन की मांग

मैं ने कभी किसी को निराश नहीं किया। हर किसी को निर्धारित समय से दिल्ली पहुंचाने का प्रयास किया। प्रयागराज एक्सप्रेस के बाद मैं रवाना होती थी, लेकिन प्रयागराज एक्सप्रेस से करीब एक घंटे पहले दिल्ली पहुंच जाती थी। इसीलिए लोगों की चहेती बनने में देर नहीं लगा। नौ वर्ष सात महीने के सफर में मैं कभी दुर्घटना का शिकार नहीं हुई। मेरी वजह से कभी किसी सुहागन की मांग नहीं उजड़ी और न ही मैने कभी किसी परिवार का सहारा और एक मां का बेटा उससे छीना। बल्कि होली, दीपावली, दशहरा, ईद, रक्षाबंधन के साथ ही अन्य त्यौहारों पर हजारों परिवार को उनके परिवार वालों से मिलाया।

ये है मेरा इतिहास

7 फरवरी 2010 को शुरू हुई थी दिल्ली दूरंतो

7.30 घंटे में पूरी करती आई है इलाहाबाद से दिल्ली का सफर

6वें पोजीशन पर थी दूरंतो एक्सप्रेस हाईस्पीड ट्रेनों में

9 वर्ष 7 महीने के सफर में कभी एक्सीडेंट का शिकार नहीं हुई दूरंतो एक्सप्रेस

1500 फेरे लगाए दूरंतो एक्सप्रेस ने 9 वर्ष सात महीने में

35 लाख से ज्यादा पैसेंजर्स ने अब तक किया दूरंतो से सफर

इनसे सुनिए 'हमारी कहानी'

दूरंतो बन गई थी अपनी यार

हम इलाहाबादी भी गजब हैं, जो चीज तेजी से दौड़ती है, चलती है, उसे झठ से लपक लेते हैं यानी उसे ज्यादा तवज्जो देते हैं। दूरंतो एक्सप्रेस के साथ भी कुछ ऐसा ही था। प्रयागराज एक्सप्रेस से इलाहाबादियों का विशेष लगाव था। यूं कहें तो प्रयागराज एक्सपे्रस इलाहाबादियों का यार था। लेकिन दूरंतो ने अपनी ओर ध्यान खींचा। जब भी दिल्ली जाना होता था, तब दूरंतो ही पकड़ता था। क्योंकि ये बीच में कहीं नहीं रूकती थी। झपाक से यानी प्रयागराज से पहले हमें दिल्ली पहुंचा देती थी। अब देखते हैं हमसफर का सफर कैसा होगा।

अभय अवस्थी

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता

दूरंतो एक्सप्रेस से हमारी कई यादें जुड़ी हैं, उस समय की जब हम स्ट्रगल के दौर में थे। कॅरियर बनाने के लिए इलाहाबाद से दिल्ली और दिल्ली से इलाहाबाद की दौड़ लगाते थे। जब ट्रेन पकड़ने की बात आती थी तो दूरंतो एक्सप्रेस फ‌र्स्ट च्वाइस होती थी। क्योंकि इसकी रफ्तार और कोचों स्थिति प्रयागराज एक्सप्रेस से बेहतर होने के साथ ही इसकी टाइमिंग काफी सूट करती थी। घर पर आराम से डिनर करके रात में ट्रेन पकड़ने के बाद सो जाना और फिर सुबह साढ़े छह बजे के पहले ही दिल्ली पहुंच जाना। दूरंतो का सफर काफी बेहतर रहा।

गौरव वीरेंद्र अग्रवाल

डायरेक्टर, पनासिया प्यूपल नेटवर्क

बेटे की फ्लाइट से पहले पहुंचाया था दूरंतो ने

मैं तो सर्राफा कारोबारी हूं, लेकिन मेरा बेटा दिल्ली में रह कर पढ़ाई करता था, जो आज एरोनॉटिक्स इंजीनियर है। बेटा जब दिल्ली रहता था तो अक्सर जरूरत पड़ने पर मुझे दिल्ली बुलाता था। बेटे तक पहुंचने के लिए मैं अक्सर दूरंतो एक्सप्रेस ही पकड़ता था। मुझे याद है एक बार उसने अचानक कॉल किया और कहा, अगले दिन सुबह साढ़े आठ बजे उसे हैदराबाद जाना है। उसकी फ्लाइट है और उसे हर हाल में पैसा व अन्य सामान चाहिए। तत्काल पैसों का इंतजाम किया और देर रात 10.20 बजे दूरंतो एक्सप्रेस पकड़ कर प्रयागराज से दिल्ली पहुंचा और फिर बेटे के पास जाकर उसे पैसा दिया। अगर दूरंतो न होती तो देर हो जाती।

दिनेश सिंह

सर्राफा कारोबारी