Nirjala Ekadashi 2020: निर्जला एकादशी प्रति वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष के समय मनाई जाती है। ज्येष्ठ मास जून के महीने को कहा जाता है। निर्जला एकादशी के व्रत गंगा दशहरा के एक दिन बाद मनाया जाता है। कई बार दोनों एक ही दिन मनाए जाते हैं। इस वर्ष निर्जला एकादशी 2 जून को देश भर में मनाई जा रही है। इसे पाण्डव एकादशी व भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसे पाण्डव या भीमसेनी एकादशी क्यों कहते हैं इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। दृग पंचांग के मुताबिक इस साल निर्जला एकादशी 1 जून को 2:57 बजे दोपहर से लगी और 2 जून को 12:04 बजे दोपहर तक रही। व्रती 3 जून को व्रत का पारण सुबह करें। पारण का शुभ मुहूर्त 5:23 बजे सुबह से लेकर 8:10 बजे सुबह तक है।

क्यों मनाते हैं, क्या है निर्जला एकादशी की पौराणिक कथा

पाण्डवों में से भीम खाने के शौकीन थे। वह रणभूमि में शत्रु को हरा सकते थे परंतु अपनी भूख को नहीं। वो भूखे एक पल भी नहीं रह सकते थे। सभी पाण्डव बाई व उनकी पत्नी द्रौपती साल भर पड़ने वाले सभी एकादशी व्रत रखते थे और उसका विधि से पूजन करते थे जबकि भीम ये व्रत नहीं रख पाते थे क्योंकि वो भूखे नहीं रह सकते थे। भीम व्रत नहीं रख पा रहे थे इस बात को उन्हें बुरा लगा और वो महर्षि व्यास के बास गए तब मुनिवर ने उन्हें निर्जला एकादशी व्रत रखने की सलाह दी। कहते हैं कि ये एक एकादशी का व्रत रख लो तो 24 एकादशियों के बराबर फल मिलता है। तबसे इस एकादशी का नाम भीमसेनी व पाण्डव एकादशी पड़ गया।

कब करें एकादशी व्रत का पारण और कब नहीं

इस व्रत का पारण यदि कोई व्रती प्रात: काल नहीं कर पाया है तो उसे दोपहर के समय कर लेना चाहिए। मान्यताओं के मुताबिक कि हरि वासर की अवधि में पारण न करें अन्य्था व्रत का फल नहीं पाप मिलता है। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि को कहा जाता है। कभी- कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है जैसे कि इस बार। ऐसे में पहले दिन मनाई जाने वाली एकादशी परिवार वालों के लिए या कह लें गृहस्थों के लिए होती है। दूसरे दिन वाली एकादशी सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं के लिए होती है। दो दिन पड़ने वाली एकदाशी दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होती हैं। भगवान विष्णु को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उनके भक्त दोनों दिन एकादशी व्रत रख सकते हैं।