पं राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। वर्षभर में चौबीस एकादशियां आतीं हैं, किन्तु इन सबमें श्रेष्ठ ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी सर्वोत्तम फल देने वाली मानी गई है। केवल इस एकादशी का व्रत रखने से ही वर्षभर क़ी एकादशीओं के व्रत का फल प्राप्त होता है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी को निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। वेदव्यास के अनुसार भीमसेन ने इसे धारण किया था। इस एकादशी में एकादशी के सूर्योदय से द्वादशी के सूर्यास्त तक जल भी न पीने का विधान होने के कारण इसे निर्जला एकादशी भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी के व्रत से दीर्घायु व मोक्ष मिलता है। इस दिन निर्जल व्रत करते हुए शेषशायी रूप में भगवान विष्णु क़ी आराधना का विशेष महत्व है। इस बार निर्जला एकादशी 10 जून दिन शुक्रवार को पड़ रही है। दृक पंचांग के मुताबिक एकादशी तिथि जून 10, 2022 को सुबह 07 बजकर 25 मिनट पर शुरू होगी और अगले 11 जून को सुबह 05 बजकर 45 मिनट पर समाप्त होगी।
भीम एकादशी या पांडव निर्जला एकादशी के नाम से भी जाना है जाता
देश के कुछ हिस्सों में, निर्जला एकादशी को भीम एकादशी या पांडव निर्जला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। निर्जला एकादशी में भी अन्य एकादशी की तरह भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु की एक मूर्ति को पंचामृत में स्नान कराया जाता है। इसके बाद उन्हें जल से स्नान कराकर नए वस्त्र आदि पहनाए जाते हैं। भगवान को फूल, सुपारी और आरती अर्पित की जाती है। मान्यता है कि भीम पांच पांडव भाइयों में से एक थे। वह भोजन के प्रेमी थे लेकिन सभी एकादशी का व्रत रखना चाहते थे। हालांकि इस दाैरान भूख को नियंत्रित करना उनके लिए काफी मुश्किल था। ऐसे में वह अपनी समस्या का समाधान करने के लिए एक बार ऋषि- महर्षि व्यास के पास गए। ऋषि ने उन्हें सभी 24 एकादशी के लाभों को प्राप्त करने के लिए केवल निर्जला एकादशी पर उपवास करने की सलाह दी।