-सीट शेयरिंग तो हो गई, अब बागियों का कमाल दिखना बाकी है

- बंटवारे के बाद स्टेट की सियासत हुई गर्म, महागठबंधन के लोग भी बिफरे

PATNA: महागठबंधन ने सीट शेयरिंग कर ली। अब बागी कमाल दिखाने में लग गए हैं। सीटों के आपसी बंटवारे में दो पुराने दुश्मनों ने दांत कटी रोटी जैसी दोस्ती निभायी। लालू प्रसाद व नीतीश कुमार ने क्00-क्00 सीटें लीं और कांग्रेस को ब्0 सीटें दीं। सीट बंटवारे को लेकर लालू प्रसाद और नीतीश कुमार में खींचतान कमरे से बाहर कम आ पाई, यानी बयान में कम बदल पाई। तीन सीटें महागठबंधन के बाकी पार्टियों को दिया। इसके बाद सियासत और तेज हो गई। बिहार की राजनीति गरमा गई। मैसेज गया कि लालू प्रसाद का पलड़ा भारी हो गया। जेडीयू कार्यकर्ताओं पर इसका कैसा असर है, ये समय के साथ जल्दी दिखने की आशंका जतायी जा रही है। हालांकि पार्टी सुप्रीमो को उम्मीद है कि कार्यकर्ता उनकी बात से बाहर नहीं जाएंगे, क्योंकि उनका फैसला ही अनुशासन रहा है और सवाल उठाने वाला बागी माना जाता रहा है।

सबकुछ समय के साथ साफ होगा

जब जेडीयू और बीजेपी का गठबंधन हुआ करता था, तब और अब यानी जब जेडीयू और आरजेडी का गठबंधन है, में एक बड़ी समानता यह है कि दोनों समय सीएम पद के उम्मीदवार नीतीश कुमार ही थे और हैं। तब बीजेपी को डिप्टी सीएम का पद दिया गया था और सुशील मोदी डिप्टी सीएम बनाए गए थे। अब की स्थिति में चूंकि लालू प्रसाद चारा घोटाले के सजायाफ्ता हैं, इसलिए वे राजनीति तो कर रहे हैं, पर कुर्सी से अलग हैं। हां, लालू प्रसाद अपने दोनों बेटों तेजस्वी और तेजप्रताप को विधानसभा चुनाव जितवाने में पूरी ताकत अभी से झोंके हुए हैं। आगे वे अपने बेटे को डिप्टी सीएम बनाने की जिद करेंगे या नहीं या नीतीश कुमार से इस पर कोई अंदरुनी समझौता हुआ है कि नहीं ये समय के साथ साफ होगा। तब और अब के गठबंधन की सबसे बड़ी बात ये कि नीतीश कुमार बड़े भाई थे और सुशील मोदी छोटे। अब नीतीश कुमार छोटे भाई हैं और लालू प्रसाद बड़े, लेकिन सीएम की कुर्सी लालू प्रसाद की पार्टी के पास नहीं होगी। कभी लालू प्रसाद का विरोध कर सत्ता में आए नीतीश कुमार अब लालू प्रसाद के साथ हैं।

राजनीतिक माहौल में सीट पर सियासत तेज

अब जब महागठबंधन में सीट शेयरिंग हो गई है, तब विरोध के स्वर उभरने की खासी उम्मीद बीजेपी और उनकी सहयोगी पार्टियों को है। जैसे इसी इंतजार में थी बीजेपी। ख्0क्0 में जेडीयू ने क्ब्क् सीट पर लड़ते हुए क्क्भ् सीटें जीती थीं, जबकि बीजेपी ने क्0ख् पर लड़ते हुए 9क् सीटें हासिल की थीं। आरजेडी ने क्म्8 पर लड़ा था और ख्ख् सीटें जीती थी। कांग्रेस ने सभी ख्ब्फ् सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और महज ब् सीटें जीत पायी थी। जिनका परफॉर्मेस सीटों के हिसाब से कमजोर रहा है वे वोटिंग परसेंटेज से चुनावी गणित सुलझाते रहे हैं। ये नई बात नहीं है। सीट शेयरिंग के बाद गरम हुए राजनीतिक माहौल में सीट पर सियासत तेज है। कई नेताओं के बयान आए हैं। इसके अपने-अपने खास मायने भी हैं, क्योंकि यही वोट, वोट शिफ्टिंग और जीत को इफेक्ट रेंगे।

चुनाव को लेकर सीट बंटवारा हो गया है और बीजेपी जाति के नाम पर हमें लड़ाना चाहती है। बीजेपी यह जान रही है कि ख्0क्0 में मेरे नेतृत्व में ही बीजेपी ने चुनाव लड़ा था, इसलिए अब वह घबराई हुई है।

नीतीश कुमार, सीएम व सीनियर जेडीयू लीडर

सीटों का बंटवारा हमलोगों ने काफी सोचने-समझने के बाद किया है। इससे मैसेज चला गया है। इसके बाद बचता क्या है। वोट नहीं बंटे यह हमारी रणनीति है। हम वोट बंटने नहीं देंगे। हर हाल में जीत हमारी ही होगी। हमारा निर्णय जांचा-परखा हुआ है।

वशिष्ठ नारायण सिंह, अध्यक्ष, जेडीयू

बीजेपी ने पहले कहा था कि नीतीश-लालू एक साथ नहीं हो सकते हैं। फिर कहा कि साथ हो गए हैं तो क्या, सीट का बंटवारा कैसे होगा? अब सीटें भी बंट गयी हैं। कभी बोलते हैं कि दोनों का फोटवा एक साथ नहीं है। इससे हमलोग डरने वाले नहीं है।

लालू प्रसाद यादव, सुप्रीमो, आरजेडी

नीतीश कुमार ने सीट बंटवारे में ही अपनी हार स्वीकार कर ली है। ये साफ हो गया कि उनकी सरकार बनी तो लालू प्रसाद ही सत्ता के असली सूत्रधार होंगे। जेडीयू ने सबसे ज्यादा नुकसान उठाकर स्वीकार कर लिया कि वोट का जनाधार लालू प्रसाद के पास ही है। महागठबंधन में क्क्8 एमएलए वाले जेडीयू का क्8 सीटों पर दावा छोड़ कर क्00 सीटों पर चुनाव लड़ने को राजी होना और मात्र ख्ब् एमएलए वाले आरजेडी का 7म् सीटें अधिक झटककर जेडीयू के बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा करनी सही साबित करता है कि लालू प्रसाद ने नीतीश कुमार की सरकार को समर्थन देने की मनमानी कीमत वसूल ली है। गैरकांग्रेसवाद की राजनीति छोड़ लोहिया को धोखा देने वाले नीतीश कुमार ने चार सीट जीतने वाली कांग्रेस को ब्0 सीटें दे दीं। सोनिया गांधी ने नीतीश कुमार को गठबंधन का नेता बनवाने में लालू प्रसाद पर दबाव बनाया था। नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस को मुंहमांगी सीटें देकर कबूल कर लिया है कि उनका जनाधार समाप्त हो गया है। अब वे जीत के लिए पूरी तरह से लालू प्रसाद पर ही निर्भर होंगे। साफ हो गया है कि लालू प्रसाद अब गठबंधन के साथी नहीं हैं, बल्कि वे असली ताकत हैं।

सुशील मोदी, सीनियर लीडर व एक्स डिप्टी सीएम

महागठबंधन तीन-चार पार्टियों का एलायंस है। पिछली लोकसभा में बीजेपी का गठबंधन था। विरोधियों को भी साथ लिया था बीजेपी ने और एक सिचुएशन क्रिएट किया था। हमने भी वोट बंटवारे को रोकने की रणनीति बनायी है। मोदी जी का ग्राफ ख्0क्ब् से काफी गिरा है। कांग्रेस से इस तरह नहीं आंक सकते कि ख्ब्फ् में ब् सीटें जीतनेवाले को ब्0 सीटें दी गईं। राजनीति और चुनाव की सही एनालिसिस नहीं ऐसे नहीं होती। देखना ये चाहिए कि क्0 परसेंट वोट बैंक हमारी पूंजी है। हमारी पूंजी चार जीती हुई सीटें थोड़े ना है। हमारे विरोधी तो कह रहे थे कि क्भ्-ख्0 सीटों पर बंध जाएगी कांग्रेस, लेकिन कांग्रेस ने ब्0 सीटें ले लीं। हम ब्0 में से फ्0 सीटों पर जीतेंगे। महागठबंधन में हमारी बड़ी भूमिका होगी। कांग्रेस बिहार में अपने पुराने स्वरूप में लौटेगी।

अशोक चौधरी, अध्यक्ष, बिहार कांग्रेस

महागठबंधन की पोल खुल गई। मुलायम सिंह यादव व शरद पवार जैसे नेताओं को हाशिए पर ला दिया। कुर्सी प्रेम ज्यादा दिखा सीटों के बंटवारे में। इनके लिए महागठबंधन एक जुमला था। इन्होंने दिग्विजय सिंह, जार्ज फर्नाडिस, बीजेपी, जीतन राम मांझी, शरद पवार, मुलायम सिंह यादव, किसे धोखा नहीं दिया? जिस तरह की सीट शेयरिंग हुई है, उसका कोई लाभ उनको नहीं मिलने वाला है।

जीतन राम मांझी, एक्स सीएव हम नेता

कांग्रेस को लालू प्रसाद से सावधान रहना चाहिए। जार्ज, मुलायम, देवीलाल के नहीं हुए ये सीपीआई, सीपीएम के नहीं हुए, तो किसके होंगे? कांग्रेस को भी लालू ने तोड़ा ही। डर की वजह से लालू प्रसाद कांग्रेस के साथ हैं। कांग्रेस को वे सीटें लेनी चाहिए जो वह जीते। जो कमजोर सीटें हैं, वही कांग्रेस को दी जा रही हैं। सीटों का जिस तरह से बंटवारा किया गया है, उससे उनकी पार्टियों में टूटन पैदा होगी। वर्कर में काफी आक्रोश है। यादवों, पिछड़ों, दलितों को खत्म कर दिया है। लालू और नीतीश ने जनता के साथ जो किया है, उसका हिसाब जनता लेगी। महागठबंधन में भूचाल जैसी स्थिति है सीटों को बंटवारे के बाद।

पप्पू यादव, सुप्रीमो, जन अधिकार (लोकतांत्रिक) पार्टी

नफा-नुकसान की बात बाद की है। नीतीश जी के नाव को मांझी जी डुबा रहे थे, लेकिन कृष्ण बन सारथी बन नेता जी (मुलायम सिंह यादव) ने बचा लिया। सपा का बिहार में अच्छा वोट बैंक है। जिस मुखिया ने महागठबंधन को नेतृत्व दिया, उनकी ही पार्टी के साथ क्या कर रहे हैं वे। गर्दन काट कर बाल की रक्षा कर रहे हैं। सांप्रदायिक शक्तियों को जवाब देने के लिए नेता जी का चेहरा इस्तेमाल किया और अब उनके कार्यकर्ताओं को अलग कर रहे हैं। इससे भला नहीं होगा। थर्ड फ्रंट बनाकर ख्ब्फ् सीटों पर चुनाव क्यों नहीं लड़ें अब हम इस पर सोच रहे हैं। हम तो अनशन पर बैठेंगे क्ख् अगस्त को। हम नेताजी के बच्चे हैं। हमारे साथ अन्याय हुआ है, तो हम रोएंगे नहीं? हमें भीख नहीं अधिकार चाहिए। ख्7 सीट चाहिए हमें। सवाल इसका भी नहीं है। सवाल सम्मान का है। बिहार में पार्टी के अस्तित्व का सवाल है।

रामचंद्र सिंह यादव, प्रदेश अध्यक्ष, समाजवादी पार्टी