- लोकसभा तो बहाना है, विधानसभा उपचुनाव ने डराया

- बीजेपी से ज्यादा नीतीश कुमार को अपने घर के लोगों से है डर

PATNA: इसकी चर्चा लगातार थी कि नीतीश कुमार की पार्टी अंदर से टूट चुकी है। अल्पमत-अल्पमत चल रहा है। दूसरी तरफ, नरेन्द्र मोदी को इतने बड़े बहुमत के बाद नीतीश कुमार का मॉरल डाउन हो गया। जिस नरेन्द्र मोदी को रात्रि भोज का न्योता देकर निमंत्रण वापस ले लिया था, उन्होंने उस नरेन्द्र मोदी को अब बधाई देना पड़ रहा है। जनादेश का सम्मान के बहाने ये बधाई वे दे रहे हैं वे। मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर, वैकल्पिक सरकार बनाने का रास्ता खोलकर और विधान सभा भंग करने की सिफारिश नहीं करके उन्होंने अपनी नैतिकता प्रदर्शित भले की, लेकिन इससे कई और मैसेज निकले हैं। उनके बिछाए जाल में बीजेपी फंसेगी ऐसा नहीं लगता। अब नीतीश कुमार लालू प्रसाद की तरह विधायक दल की बैठक में अपने पक्ष मे खड़े विधायकों की गिनती गिनेंगे। रविवार को ये बैठक चार बजे होनी है। उन्होंने कहा भी पार्टी के अंदर उनका रोल ज्यादा ही होगा, मतलब पद से नहीं है।

लोकसभा से ज्यादा विधानसभा की चिंता

लोकसभा चुनाव में सत्ताधारी पार्टी जेडीयू बिहार में 20 से 2 पर आ गई। रनर भी महज दो जगह रह पायी नीतीश कुमार की पार्टी। कई पर तो जमानत जब्त हो गई। इससे नीतीश कुमार को निराशा हुई। इससे कम निराशा उन्हें विधान सभा उपचुनाव परिणाम से नहीं हुई। पांच में एक सीट उनकी पार्टी जीत पाई। विधानसभा उपचुनाव में चिरैया से आरजेडी के लक्ष्मीनारायण प्रसाद यादव, साहेबपुर कमाल से श्री नारायण यादव, वायसी से आरजेडी के अब्दस सुबहान जीत गए। महाराजगंज से बीजेपी के देव रंजन सिंह जीते। सिर्फ कोचाधामन में लाज बची जहां जेडीयू के उम्मीदवार मुजाहद आलम जीते। इस लिहाज से आगे के विधानसभा चुनाव नीतीश कुमार और उनकी पार्टी को अभी से डरा रहा है। सच ये है कि लोकसभा से ज्यादा विधान सभा उपचुनाव के परिणाम ने उन्हें राजनीतिक रूप से आतंकित कर दिया है। साहेबपुर कमाल से परवीन अमानुल्लाह विधायक थीं जो जेडीयू छोड़ आप के टिकट से पटना साहिब लोकसभा से चुनाव लड़ने चली गईं थीं। महारागंज में दामोदर सिंह के निधन से खाली हुई थी सीट। चिड़ैया में विधायक अवनीश सिंह बीजेपी छोड़ जेडीयू के टिकट से मोतिहारी लोकसभा से चुनाव लड़ने चले गए थे। वाइसी में संतोष कुशवाहा बीजेपी छोड़ जेडीयू में जाकर पूर्णिया लोकसभा से चुनाव लड़ने चले गए थे।

अपनों से ही खतरा

नीतीश कुमार की पार्टी में उनके अपने ही अब काल बनने लगे हैं। चुनाव हार चुके शरद यादव कई कारणों से दुखी हैं। ज्ञानू जैसे नेता मुखर होकर विरोध कर रहे हैं। आरसीपी के खिलाफ रमई राम और ज्ञानू एक साथ मुखर हैं। नरेन्द्र सिंह अंदर ही अंदर मजा चखाने की कोशिश में हैं। ललन सिंह के चुनाव हार जाने से बाकी को कहने का मुंह भी मिल गया है। सुशील मोदी ने 6 मई को ही कहा कि-जेडीयू के 50 विधायक उनके संपर्क में हैं, लेकिन नीतीश सरकार अपने अंतर्विरोधों की वजह से जाएगी। जेडीयू के ज्यादातर विधायक नीतीश कुमार से नाराज चल रहे हैं। ये सच भी है कि नीतीश कुमार की पार्टी अंदर से दरक रही है। कब भरभरायेगी कहना मुश्किल है। नीतीश कुमार की पार्टी के कई विधायक उन्हें छोड़ भागते, इससे पहले उन्होंने ही मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया।

मुश्किल पैदा करने की कोशिश कर सकते हैं

अब बिहार में लालू नीतीश के होने की परिस्थिति दिख रही है। लालू प्रसाद, नीतीश कुमार को समर्थन कर दें तो दोनों मिलकर बीजेपी के लिए मुश्किल पैदा करने की कोशिश कर सकते हैं। राष्ट्रपति शासन की संभावना भी टल सकती है। कांग्रेस और निर्दलीय के अलग होने के खतरे की आशंका से भी वे बाहर निकल आएंगे। लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के पास ज्यादा विकल्प भी नहीं हैं। दोनों के पास एक होने का सबसे बड़ा विकल्प है। दोनों जिस आइडियोलॉजी की बात करते हैं उसे भी बचा पाएंगे। यही नहीं लालू, नीतीश, मुलायम और मायावती एक होकर ही अब खुद को बचा सकते हैं। शर्त ये है कि परिवारवाद से बाहर निकलना होगा। लोजपा का रास्ता अपनाना खतरनाक है। तीनों मोदी लहर में जीते। लालू प्रसाद तो पांच चुनाव में खराब प्रदर्शन कर चुके हैं। उऩकी आंख तो अब तक खुल जानी चाहिए थी।

नीतीश कुमार पर कई मामले हैं

नीतीश कुमार राजनीतिक चक्त्रव्यूह में फंस गए हैं। उन पर पहले से चारा, स्लीपर,बियाडा और नागपुर कांड से जुड़ा मामला चल रहा है। इन मामलों में वे कैसे फंसने से बचेंगे उनके लिए चैलेंज है।