बिल्लू, पिंकी, लंबू-मोटू, चाचा चौधरी-साबू सब खो गए
बिल्लू, पिंकी भोकाल, लंबू-मोटू, हवालदार बहादुर, अंगारा, बांकेलाल और कंप्यूटर से तेज दिमाग रखनेवाले चाचा चौधरी। ये कुछ ऐसे कैरेक्टर्स थे, जो बच्चों से लेकर बड़ों तक को याद रहते थे। ये सब कॉमिक्स के कैरेक्टर्स थे, जिनकी बात चलते ही इमेजिनेशंस, मिस्ट्री, थ्रिल और गुदगुदाने-फुसफुसाने के साथ क्यूरिऑसिटी का संसार सामने आ जाता था। हर घर में बच्चे अपने इन सुपर हीरोज के दीवाने थे। लेकिन, इंटरनेट की दुनिया में हो रहे नए-नए एक्सपेरिमेंट्स, कार्टून चैनल्स की बढ़ती संख्या और एनिमेशन फिल्मों के इस दौर में कॉमिक्स की दुनिया और इसके कैरेक्टर्स कहीं खो से गए हैं।

कभी लाखों का था business
80 और 90 के डिकेड्स में जब पूरे देश में राज कॉमिक्स, डायमंड पॉकेट, मनोज पॉकेट बुक्स जैसे कॉमिक्स बनानेवाली बुक्स का पूरे देश में सिक्का चलता था। उसी दौरान अपनी सिटी रांची में भी कॉमिक्स के प्रति बच्चों समेत बड़ों में भी दीवानगी थी। हर महीने रांची में लाखों रुपए के कॉमिक्स बिकते थे। लेकिन पिछले एक डिकेड में सिटी में कॉमिक्स का मार्केट तेजी से घटा है। सिटी के अल्बर्ट एक्का चौक पर ज्ञानदीप बुक्स सेंटर चलानेवाले प्रदीप कुमार बर्मन कहते हैं कि एक समय था, जब उनके शॉप पर बड़ी संख्या में स्टूडेंट आकर कॉमिक्स की डिमांड करते थे। पैरेंट्स भी अपने बच्चों के लिए कॉमिक्स खरीदकर ले जाते थे। लेकिन, अब ऐसा नहीं है। अब बहुत सेलेक्टेड लेाग ही कॉमिक्स खरीदकर पढ़ते हैं। कांके रोड की रहनेवाली अंशुमिता कहती हैं कि कॉमिक्स की चर्चा होते ही उन्हें अपने बचपन के वो  दिन याद आ जाते हैं, जब कॉमिक्स के कैरेक्टर्स उनके लिए हीरो हुआ करते थे। नागराज अगली बार क्या करनेवाला है, सुपर कमांडो ध्रुव किससे टकराएगा, क्या डोगा बच पाएगा, यह जानने के लिए वह अगले कॉमिक्स का वेट करती थीं। कॉमिक्स पढऩे के लिए पॉकेट मनी बचाकर बुक्स शॉप्स से रेंट पर कॉमिक्स लाकर पढ़ा करती थीं। अंशुमिता कहती हैं कि आजकल के बच्चों में कॉमिक्स का कोई क्रेज ही नहीं देखने को मिलता है। आजकल के बच्चे कार्टून चैनल्स के ही दीवाने नजर आते हैं। रांची कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ यशोधरा राठौर का कहना है कि आजकल बच्चों में पढऩे की हैबिट कम हो गई है, लेकिन एक वह भी दौर था जब कॉमिक्स हर बच्चे के लिए एंटरटेनमेंट का मेन सोर्स हुआ करता था। लेकिन, अब तो छोटे बच्चे सिर्फ और सिर्फ कॉर्टून टीवी चैनल ही देखते हैं। जबकि कॉमिक्स पढऩे से बच्चों की इमेजिनरी ताकत बढ़ती थी। वह स्टोरी को अपने हिसाब से सोचते थे। ऐसे में उन्हें अपने दिमाग पर जोर देना पड़ता है।

क्यों कम हुआ comics का craze?  
90 के डिकेड तक कॉमिक्स का बोलबाला रहा, लेकिन इसके बाद जब सैटेलाइट टीवी चैनल्स और वीडियो गेम्स ने दस्तक देनी शुरू की, तो बच्चे कॉमिक्स से दूर होने लगे। कॉलोनीज और मोहल्लों में कॉमिक्स की दुकानों की जगह वीडियो गेम्स की दुकानें खुलने लगीं, जहां पर बच्चों पैसे देकर गेम्स खेलना शुरू कर दिया। इसका नतीजा रहा कि कॉमिक्स का क्रेज घटने लगा। इसके बाद रही-सही कसर डिफरेंट कार्टून चैनल्स ने पूरी कर दी। लगभग हर घर में टीवी के साथ ही कंप्यूटर पहुंच गए और मार्केट में एक से बढ़कर एक वीडियो गेम्स आ गए। ऐसे में कॉमिक्स  पर संकट छा गया।

नहीं हो पाई अच्छी marketing
एक तरफ जहां कार्टून चैनल्स और वीडियो गेम्स बनानेवाली कंपनीज ने बच्चों को लुभाने के लिए मार्केट को समझकर उसके अकॉर्डिंग अपनी स्ट्रेटजी बनाई। वहीं, कॉमिक्स वाले इस बात को समझ ही नहीं पाए और मार्केट के मुताबिक अपने को चेंज नहीं किया, जिसका नतीजा रहा कि वे पीछे होते चले गए। सिटी में बुक स्टोर के कर्मचारी बिरसा का कहना है कि आजकल छोटा भीम का कैरेक्टर बच्चों की जुबां पर है, जबकि एक वह भी समय था जब कॉमिक्स के कैरेक्टर्स नागराज, सुपर कमांडो ध्रुव से लेकर चाचा चौधरी तक बच्चों के फेवरेट थे। हालांकि, अब कुछ कॉमिक्स का डिजिटलाइजेशन किया गया है, लेकिन यह बहुत लेट है। अगर पहले किया गया होता, तो आज कॉमिक्स का भी बड़ा मार्केट होता।