RANCHI: छोटी-बड़ी 107 दुकानों और सिटी की बड़ी आबादी की कपड़े की जरूरत को पूरा करने वाले हार्ट ऑफ सिटी में करीब छह दशक पहले बना शास्त्री मार्केट आज अपनी बदहाली का आंसू बहा रहा है। आलम ये है कि हर दिन कपड़े खरीदारी के लिए आने वाली हजारों महिलाओं को बेसिक सुविधाएं नसीब नहीं हैं, वहीं उनकी या दुकानदारों तक की सुरक्षा का भी कोई ख्याल नहीं हैं। दुकान की छतें जर्जर हो चुकी हैं। सीढि़यों व छतों पर झाडि़यां उग आई हैं। काई लगे रास्ते से ग‌र्ल्स को कपड़े की सिलाई के लिए छत पर कारीगर की दुकान में जाना पड़ रहा है। दुकानदार से लेकर कस्टमर्स तक परेशान हैं लेकिन इनकी सुनने वाला कोई नहीं है। यह मार्केट न तो नगर निगम के अधीन है और ना ही आरआरडीए के। नतीजन इस पर किसी का ध्यान नहीं है। जबकि हालात देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि यहां कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। गौरतलब हो कि पिछले दिनों इसी मार्केट में शार्ट सर्किट से आग लग गई थी, जिसे बड़ी मुश्किल से काबू पाया गया था।

जर्जर छत पर सिलाई कारीगर

शास्त्री मार्केटकी छत पर सिलाई करने वाले कारीगर बैठते हैं। लगभग दस की संख्या में कारीगर पूरे दिन कपडे़ की सिलाई करते हैं। यहां अधिकतर लड़कियों की ही संख्या रहती है। लड़कियां अपने कपड़े खरीद कर छत में बैठे कारीगरों से फिटिंग कराने आती हैं। छत में बिना किसी सुरक्षा के ये कारीगर कपड़े की सिलाई करते हैं। छत के चारो और रेलिंग या बाउंड्री भी नहीं है। इसके अलावा सभी कारीगर प्लास्टिक और तिरपाल से घेर कर किसी तरह से दुकानदारी चला रहे हैं। बारिश में परेशानी ज्यादा बढ़ जाती है। छत पर चारों ओर काई जमने से फिसलने की भी आशंका बनी रहती है।

सीढि़यां भी खतरे से खाली नहीं

बिल्डिंग की छत पर चढ़ने के लिए सीढ़ी भी सही नहीं है। टूटी सीढि़यों से लडकियां और महिलाएं संभल-संभल कर ऊपर चढ़ती हैं। पकड़ने के लिए रेलिंग भी नहीं है। दीवार के सहारे लड़कियां चढ़ती और उतरती हैं। वहीं एक दूसरी सीढ़ी भी है, जिसमें मुश्किल से एक व्यक्ति ही चढ़ पाता है।

क्या कहती है मार्केट कमिटी

मार्केट कमिटी के सेक्रेटरी रंजीत कुमार गुप्ता ने बताया कि 1962 में इस मार्केट का निर्माण कराया गया था। पाकिस्तान से हिंदूस्तान आये रिफ्यूजियों की रोजी-रोटी के लिए यह स्थान उपलब्ध कराया गया था। राष्ट्रपति की ओर से हमलोगों को दुकान लगाने की परमिशन दी गई थी। केसर-ए-हिंद की यह जमीन थी जिसे हम लोगों को दान में दिया गया था। इसके बाद हमारे पूर्वजों ने इस स्थान में मार्केट निर्माण कराया। उस वक्त यह रिफ्यूजी मार्केट के नाम से जाना जाता था। बाद में इसे शास्त्री मार्केट नाम दे दिया गया। रंजीत ने बताया कि हम लोग बीच-बीच में इसकी रिपेयरिंग कराते रहते हैं। लेकिन यहां सच्चाई कुछ और ही बयां कर रही है। भले कमिटी के सचिव ने बिल्डिंग की जर्जर हालत के बारे में कुछ नहीं कहा लेकिन छत पर दुकान चला रहे लोगों ने कहा कि इस बिल्डिंग में हर तरफ अव्यवस्थाओं का आलम है। न पीने को पानी है, न टॉयलेट है। सीढि़यां और खुली छत तो काफी खतरनाक हैं। यहां तक की कई दुकानदार बिजली भी चोरी के जलाते हैं।

संकरी गलियों में 100 से ज्यादा दुकानें

शास्त्री मार्केट में 107 दुकाने हैं। सभी दुकानों में महिला, लडकियों और बच्चों के कपड़े बिकते हैं। जिस वजह से यहां सिर्फ महिलायें ही नजर आती हैं। कुछ दुकानों का पार्टिशन कर दिया गया है। दुकानों के बीच पतली गलियां हैं। कोई भी दुकानदार बिल्डिंग के जर्जर हालत पर कुछ बोलने का तैयार नहीं है। ऐसा लगता है मानो सभी किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार कर रहे हैं।

वर्जन

समय-समय पर रिपेयरिंग कराते रहते हैं। इतने सालों में पहली बार आग लगने की घटना हुई है। इस पर आगे ध्यान दिया जाएगा। छत पर नई दुकानों का अलॉटमेंट किया गया है। दुर्गा पूजा के बाद सीढ़ी की मरम्मत करा दी जाएगी।

-रंजीत कुमार गुप्ता, सेक्रेटरी, शास्त्री मार्केट

क्या कहते हैं कस्टमर

मार्केट में काफी डर लगता है। बिल्डिंग देख कर ही घबराहट होती है, लेकिन क्या करें कहीं और मनपंसद कपड़ा मिलता नहीं, इसलिए यहां आते हैं। यहां की सीढ़ी में एक-दो बार गिर भी चुके हैं।

-प्रीती कुमारी

मैं काफी सालों से यहां खरीदारी करने आती रही हूं। छत पर बहुत डर लगता है। बिल्डिंग की रिपेयरिंग तो बहुत जरूरी हो गया है। दुकानदारों को जरूर ध्यान देना चाहिए।

-ज्योति कुमरी