RANCHI : चाइल्ड लेबर और ह्यूमन ट्रैफिकिंग से रेस्क्यू कराए गए बच्चों का तो पुनर्वास हो रहा है और न ही उन्हें सहायता राशि ही दी जा रही है। झारखंड राज्य बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष आरती कुजूर ने बरती जा रही इस लापरवाही का खुलासा किया है। इतना ही नहीं, ह्यूमन ट्रैफिकिंग की शिकार हुई लड़कियों के पुनर्वास को लेकर शुरू की गई तेजस्विनी योजना भी सिर्फ फाइलों में है। उन्होंने कहा कि कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग से बाल श्रम और मानव तस्करी से रेस्क्यू बच्चों के पुनर्वास के लिए 20 हजार देने का प्रावधान है। अब तक मुक्त कराए गए 1405 से एक भी बच्चे को इसका लाभ नहीं मिला है।

हजारों बच्चे अभी भी लापता

झारखंड में मानव तस्करी जोरों पर है। इसे रोकने के लिए अब तक कोई कारगर कदम नहीं उठाया जा सका। यही कारण है कि अब भी राज्य से लापता 1114 बच्चों का कोई सुराग नहीं मिल पाया है। राज्य में 2489 बच्चों की मिसिंग का मामला ही दर्ज हुआ है। इसमें 1405 बच्चे रेस्क्यू कराया जा चुका है। रेस्क्यू कराए गए इन 1405 बच्चे को अबतक 20 हजार रुपए की सहायता राशि नहीं मिली है।

रेस्क्यू बच्चे-बच्चियों का पुनर्वास नहीं

पुलिस के मुताबिक, रेस्क्यू होने वाले बच्चों के पुनर्वास के लिए शेल्टर होम के संचालन का जिम्मा स्वयंसेवी संगठनों को दिया गया है। लेकिन, ये संस्थाएं इस मामले में बहुत ज्यादा रूचि नहीं दिखा रही हैं। इसका फायदा ही मानव तस्कर उठा रहे हैं। मानव तस्करी के शिकार हुए लड़के और लड़कियों के पुनर्वास की कोई व्यवस्था नहीं है। लड़कियों के लिए बनी तेजस्विनी योजना भी फाइलों में ही बंद है। मुक्त कराई गई लड़कियों के स्किल डेवलपमेंट के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

नहीं जारी होता है चाइल्ड लेबर सर्टिफिकेट

बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष आरती कुजूर ने रेस्क्यू कराए गए बच्चे-बच्चियों के पुनर्वास में लापरवाही बरते जाने को लेकर लेबर डिपार्टमेंट को दोषी ठहराया है। उन्होंने कहा कि जिस बच्चे का रेस्क्यू किया जाता है। उस बच्चे को चाइल्ड लेबर विभाग की ओर से अब 50 हजार देने का प्रावधान है। लेकिन, बच्चों को पैसा नहीं दिया जाता है। इसकी वजह लेबर डिपार्टमेंट की तरफ से बच्चे को चाइल्ड लेबर का सर्टिफिकेट जारी नहीं किया जाना है।

पर्सनल अकाउंट में रहता फंड

आरती कुजूर ने यह भी कहा कि जहां से बच्चे को रेस्क्यू कराया जाता है वहां से भी जुर्माना वसूला जाता है। ऐसे में बच्चे को सरकार से मिलने वाली सहायता राशि व जुर्माने की रकम को इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी अपने अकाउंट में डाल देते हैं। इतना हीं नहीं, दिल्ली जैसे बड़े शहरों से रेस्क्यू कराए जाने के बाद संबंधित संस्थान से वसूला गया जुर्माना वहां के बच्चे को दे दिया जाता है, पर झारखंड में इसे सुनिश्चित नहीं किया जा रहा है।