RANCHI: सुपस्पेशियलिटी सदर हास्पिटल की मैटरनिटी विंग में हर दिन डिलीवरी के केस आते हैं, जहां मरीजों की जान जोखिम में डालकर उनकी डिलीवरी कराई जा रही है। वहीं सिजेरियन डिलीवरी वाली प्रसूता महिलाओं के लिए आजतक आईसीयू नहीं बनाया गया है। जबकि करोड़ों रुपए की मशीनों की खरीदारी की जा रही है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हॉस्पिटल प्रबंधन को मरीजों की जान की कोई परवाह नहीं है। उनकी नजर में मरीजों की जान से ज्यादा जरूरी ये मशीनें हैं।

डेढ़ साल में नहीं बढ़े कदम

हॉस्पिटल में मरीजों का ऑपरेशन भगवान भरोसे ही हो रहा है। अगर किसी मरीज की हालत गंभीर होती है तो उसकी जान बचाना मुश्किल हो जाएगा। जबकि पिछले साल शुरुआत में ही हास्पिटल में आईसीयू बनाने के लिए डीपीआर भी तैयार की गई थी। लेकिन डेढ़ साल बीतने के बाद भी इस ओर एक कदम नहीं बढ़े है। जबकि 200 बेड के सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल की शुरुआत अगस्त 2017 में की गई थी।

आइसोपर्ब ने भी आईसीयू का उठाया था मामला

इंडियन सोसायटी ऑफ पेरिनैटोलॉजी एंड रिप्रोडक्टिव बायोलॉजी (आइसोपर्ब) के मिड टर्म कांफ्रेंस में देशभर से जुटे एक्सप‌र्ट्स ने सिजेरियन डिलीवरी को लेकर चर्चा की थी। साथ ही कहा था कि सिजेरियन डिलीवरी कराने के लिए हॉस्पिटल में आईसीयू का होना जरूरी है। वहीं सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार किसी भी हॉस्पिटल के संचालन के लिए आईसीयू का होना जरूरी है। तभी हॉस्पिटल में सर्जरी की जा सकती है।

सीरियस मरीजों को रेफर ही एकमात्र आप्शन

हॉस्पिटल में हर दिन दर्जनों प्रसूता महिलाएं डिलीवरी के लिए आती हैं। इसमें से 7-8 महिलाओं की सिजेरियन डिलीवरी कराई जाती है। नार्मल डिलीवरी के मामले में भी कई बार मरीज की स्थिति बिगड़ जाती है। ऐसे में मरीजों को दूसरे हॉस्पिटल रेफर करना ही एक मात्र आप्शन बचता है। वहीं गंभीर बच्चों की भी स्थिति देख तत्काल रिम्स रेफर कर दिया जाता है। चूंकि प्रबंधन के पास इसके अलावा कोई चारा ही नहीं है।

वर्जन

मुझे इस बात की जानकारी नहीं है कि हॉस्पिटल में आईसीयू कब बनेगा। काम चल रहा है तो आईसीयू भी बन जाएगा। धीरे-धीरे हॉस्पिटल की व्यवस्था को दुरुस्त किया जा रहा है ताकि मरीजों को परेशानी का सामना न करना पड़े।

डॉ। एस मंडल, डीएस, सदर