RANCHI: रिम्स की डिस्पेंसरी में दवाएं नहीं हैं। जी हां, क्ब्00 बेड के हास्पिटल में हर दिन करीब दो हजार मरीज आ रहे हैं। इनमें से लगभग 80 परसेंट को रिम्स की डिस्पेंसरी में दवा नहीं मिल पा रही हैं। डिस्पेंसरी में केवल क्7 दवाएं ही अवेलेवल हैं। जबकि अलग-अलग मरीजों को लगभग एक हजार दवाएं लिखी जा रही हैं। इस स्थिति में मरीजों को हास्पिटल के बाहर मेडिकल से दवा खरीदनी पड़ रही है। इस चक्कर में लोगों को जेब ज्यादा ढीली करनी पड़ रही है।

ख्ब् घंटे कैसे मिले दवा

रिम्स प्रबंधन मरीजों को ख्ब् घंटे दवा देने का दावा कर रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब डिस्पेंसरी में दवा ही नहीं है तो ख्ब् घंटे काउंटर खोलने का क्या फायदा। रिम्स कैंपस स्थित डिस्पेंसरी में आ रहे हजारों मरीज निराश होकर लौट रहे हैं। दवा नहीं मिलने के कारण मरीजों को अब भी बाहर से ही दवा खरीदनी पड़ रही है।

मेडिकल अफसर की लापरवाही

हास्पिटल की डिस्पेंसरी में दवाओं की कमी के लिए डॉ। रघुनाथ मेडिकल आफिसर (स्टोर) जिम्मेवार हैं। उन्हें डिस्पेंसरी के लिए सभी दवाएं खरीदने का आदेश दिया गया है, ताकि मरीजों को बाहर से कोई भी दवा न खरीदनी पड़े। इसके बावजूद एमओ के ढुलमुल रवैये से परेशानी बढ़ गई है।

खाली हाथ लौट रहे मरीज

ओपीडी में हर दिन इलाज के लिए क्800 मरीज आ रहे हैं। लेकिन, इनमें से कुछ को ही डिस्पेंसरी में दवा मिल रही है। उसमें भी आधी दवाएं मरीज को बाहर से ही खरीदनी पड़ रही है। ऐसे में काफी संख्या में मरीज डिस्पेंसरी से खाली हाथ लौट रहे हैं।

वर्जन

मैंने एमओ से डिस्पेंसरी में सभी दवाएं रखने को कहा है। इसके बावजूद वे दवा क्यों नहीं रख रहे हैं, यह चिंता का विषय है। इस मामले को देखा जाएगा।

-डॉ। बीके शेरवाल, डायरेक्टर, रिम्स