RANCHI: कोरोना के कहर से बचने की मुहिम में अब सबसे ज्यादा संकट झारखंड की जेलों को है। जेल प्रशासन अपनी क्षमता के अनुसार तैयारी तो कर रहा है लेकिन इसमें कई चुनौतियां हैं जिनका सामना करना मुश्किल है। जेलों में क्षमता से अधिक कैदी बन्द हैं और ऐसे में वहां जगह की भारी कमी हो रही है। जेल प्रशासन नए कैदियों को क्वारंटाइन करने की प्रक्त्रिया अपना रहा है लेकिन कैदियों की संख्या में इजाफा होने से भारी समस्या सामने आ सकती है। झारखंड में 29 जेल हैं। जिनमें 7 सेंट्रल, 16 मंडल कारा, 5 उपकारा और एक ओपन जेल शामिल हैं। कुल मिलाकर राज्य में 29 जेल हैं। इनमें 18227 से ज्यादा कैदी बंद हैं।

अशिक्षित कैदियों को बचाना चुनौती

तमाम ऐसी जेलें झारखंड में हैं जिनमें उनकी क्षमता से कैदियों की तादाद बहुत ज्यादा है। बहुत से कैदी बिना पढ़े-लिखे हैं। जिन्हें कोरोना से जंग के बीच बचाना एक बड़ी चुनौती है। अगर जेल की चहारदीवारी के भीतर कुछ कैदी कोरोना वायरस की चपेट में आ गये तो वहां की स्थिति पर काबू पाना मुश्किल हो जाएगा। यही कारण है कि इस संकट की कल्पना करके ही सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में बंद कैदियों के स्वास्थ्य की खुद ही चिंता की और अब राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को इनकी रिहाई के बारे में निर्देश दिये हैं। वैसे तो यह पहला अवसर है जब किसी महामारी की वजह से कोर्ट ने जेलों में बंद कैदियों को पेरोल पर रिहा करने पर विचार करने का निर्देश राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को दिया है।

झारखंड में हैं 29 जेल

झारखंड में 7 सेंट्रल,16 मंडल कारा, 5 उपकारा और एक ओपन जेल है। राज्य की 7 सेंट्रल जेल- रांची, हजारीबाग, जमशेदपुर, दुमका, डालटनगंज, गिरिडीह और देवघर हैं। वहीं 16 मंडल कारा- धनबाद, चाईबासा, सरायकेला, गढ़वा, लातेहार, चतरा, कोडरमा, बोकारो (चास), जामताड़ा, पाकुड़, गोड्डा, साहेबगंज, सिमडेगा, लातेहार और गुमला जिले में है। 5 उपकारा- खूंटी, तेनुघाट, रामगढ़, राजमहल, मधुपुर में हैं और राज्य का एकमात्र ओपन जेल हजारीबाग में है।

फिलहाल नहीं छूटेंगे कैदी

राज्य की जेलों में बंद कैदियों को विशेष केस में असमय कारा मुक्ति, पेरोल या अग्रिम जमानत का फिलहाल लाभ नहीं मिलेगा। राज्य की उच्च स्तरीय कमेटी ने यह निर्णय लिया है। कमेटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एचसी मिश्रा हैं, जबकि सदस्यों में गृह कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग के अपर मुख्य सचिव सुखदेव सिंह व कारा महानिरीक्षक शशि रंजन हैं। 26 मार्च को इस कमेटी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से बैठक की थी। बैठक में यह बात सामने आयी कि राज्य में कोविड-19 का अब तक एक भी मामला सामने नहीं आया है। राज्य में लॉकडाउन है। लोगों की आवाजाही बंद है। इसलिए फिलहाल बंदियों को छोड़ने के मसले पर निर्णय नहीं लिया जा सकता है। यहां 18 हजार 227 कैदी रह रहे हैं। गौरतलब है कि कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर राज्य की जेलों में बंद कैदियों के पेरोल व जमानत की सुविधा देने के लिए न्यायमूर्ति एचसी मिश्रा की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय कमेटी बनाई गई है। इस कमेटी को ही निर्णय लेना है कि किसे यह सुविधा मिलेगी, किसे नहीं मिलेगी। इसका एक ही उद्देश्य था कि जेलों के बोझ को कम किया जा सके, ताकि बंदियों को कोरोना वायरस के खतरे से बचाया जा सके

जेलों को सूची तैयार रखने का निर्देश

राज्य के सभी जेलों के काराधीक्षकों को यह निर्देश दिया गया है कि जेलों में ऐसे कितने बंदी हैं, जिन्हें एक वर्ष से सात वर्ष तक की सजा हो चुकी है। ऐसे बंदियों की सूची तैयार करने को कहा गया है। ऐसे ही बंदियों को पैरोल या जमानत का लाभ दिए जाने पर विचार किया जाना था, जो अब संभव होता नहीं दिख रहा है। ऐसे बंदी मुख्य रूप से चोरी, छिनतई, छेडखानी, मारपीट व दहेज प्रताड़ना जैसे छोटे-मोटे केस से संबंधित हैं।

जेल में दो तरह के सेंटर बनाये गए हैं। जो नये कैदी आते हैं उन्हें पहले क्वॉरंटाइन में रखा जाएगा और उनकी डेली मॉनिटरिंग की जाएगी, यह देखने के लिए कि उनमें कोरोना के कोई लक्षण तो नहीं हैं। वहीं जो कैदी पहले से हॉस्पिटल में हैं उनके लिए हॉस्पिटल में ही आइसोलेशन वार्ड बनाया गया है। जेल के अंदर ही मास्क बनाया जा रहा है और सभी कैदियों को मास्क भी मुहैया कराया जा रहा है। जेल के अंदर सैनिटाइजर बनाने का भी काम शुरू किया जाएगा। जिन जेलों में क्षमता से 3000 कैदी ज्यादा हैं। वहां के कैदी को लोकल कोर्ट के आदेश से दूसरे जेल में शिफ्ट किया जा रहा है। मुलाकात बंद कर दी गई है। कैदी के परिजन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और टेलीफोन के जरिए कैदी से बात कर रहे हैं। कैदी को बाहर नहीं निकाला जाएगा, इसके पीछे दो वजह है। पहली वजह यह है कि अभी तो लॉकडाउन है इसलिए कहीं नहीं जा पाएंगे और दूसरी वजह यह है कि जेल के अंदर ही कोरोना से नियंत्रण की व्यवस्था की जा रही है।

-शशि रंजन, जेल आईजी