- माफिया और अपराधिक छवि वालों को टिकट देने में कतरा रहे ज्यादातर दल

- करीबी रिश्तेदारों को बड़ी पार्टियों का टिकट दिलाने की भिड़ा रहे जुगत

- कौमी एकता दल का विलय भी लटका, बृजेश सिंह पत्नी को लड़ा सकते हैं चुनाव

ashok.mishra@inext.co.in

LUCKNOW: सूबे में विधानसभा चुनाव की तारीख नजदीक आती देख बाहुबली राजनेताओं की बेचैनी बढ़ती जा रही है। बदले राजनीतिक हालात में कोई भी बड़ा दल आपराधिक छवि वाले नेता को टिकट देने से परहेज कर रहा है। यही वजह है कि तमाम बाहुबली नेता अपने करीबी रिश्तेदारों को टिकट दिलाने के लिए बड़ी पार्टियों के नेताओं के पास चक्कर काट रहे हैं। तमाम निर्दलीय चुनाव लड़ने का मन बना चुके हैं तो कुछ ऐसे छोटे दलों का सहारा लेने को मजबूर हैं जो चुनाव के दौरान बड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन कर सकते हैं।

कौएद का विलय भी लटका

तमाम जद्दोजहद के बाद समाजवादी पार्टी में कौमी एकता दल का विलय भी लटक गया है। सपा यूपी प्रभारी शिवपाल यादव ने विलय का ऐलान भी किया लेकिन संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद यह निर्णय वापस ले लिया गया। हाल ही में एक बार फिर सपा में कौएद की विलय की अटकलें लगायी जाने लगी, लेकिन इस बाबत अभी तक कोई निर्णय लिए जाने की अधिकृत घोषणा नहीं की गयी है। माना जा रहा है कि अब कौएद का सपा में विलय नहीं होगा, बल्कि कोई ऐसा रास्ता निकाला जाएगा जिससे पार्टी की छवि पर दाग न लगे। इसी तरह सपा से बगावत करने वाले विधायक गुड्डू पंडित और उनके भाई मुकेश शर्मा को भी अभी तक भाजपा में शामिल नहीं किया गया है। इस दौरान कई अन्य दलों के विधायकों को सदस्यता ग्रहण करायी गयी, लेकिन दोनों शर्मा बंधुओं को लेकर कोई निर्णय नहीं लिया गया।

डीपी, बृजेश भी कतार में

इसी तरह डीपी यादव और बृजेश सिंह भी अपने करीबी रिश्तेदारों को बड़े दल से टिकट दिलाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। बृजेश सिंह अपनी पत्नी को भाजपा अथवा बसपा से टिकट दिलाने के प्रयास कर रहे हैं तो डीपी यादव अपने भतीजे के लिए प्रयासरत हैं। रायबरेली सदर सीट से बाहुबली विधायक अखिलेश सिंह अपनी बेटी अदिति सिंह को कांग्रेस में शामिल करा चुके हैं। चर्चा है कि वे बेटी के लिए अपनी सीट भी छोड़ सकते हैं। पूर्व सांसद धनंजय सिंह एक बार फिर अपनी पत्नी जागृति सिंह को चुनाव मैदान में उतारने की कवायद में जुटे है। पूर्व एमएलसी रामू द्विवेदी भी देवरिया से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की जुगत में है। अन्य बाहुबलियों पर भी नजर डाले तो मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया निर्दलीय चुनाव लड़ते है। वहीं सपा प्रमुख के करीबी होने की वजह से मंत्री पंडित सिंह को दोबारा टिकट मिलना तय माना जा रहा है।

अतीक और अशरफ को लेकर भी उहापोह

इलाहाबाद के बाहुबली नेता अतीक अहमद और उनका भाई अशरफ विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं, लेकिन अभी तक किसी भी पार्टी से उन्हें टिकट नहीं मिला है। हाल ही में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इलाहाबाद में जनसभा के दौरान अतीक को तवज्जो नहीं दी थी, उससे साफ है कि दोनों भाईयों को इस बार सपा का टिकट मिलना मुश्किल है। चर्चा है कि अतीक कांग्रेस से टिकट से चुनाव लड़ने की कवायद में हैं तो अपने भाई को निर्दलीय चुनाव लड़ाने के। पिछले चुनावों में जिस तरह इलाहाबाद की जनता ने दोनों भाईयों को नकारा है, संभावना जताई जा रही है कि वे आसपास के जिले की किसी सीट से चुनाव लड़ सकते है।

पार्टियों का बदला रुख

बाहुबलियों को लेकर हालिया सालों में राजनैतिक दलों ने अपने रुख में बड़ा बदलाव किया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पिछले चुनाव में ही बाहुबलियों से दूरी बनाने के संकेत दिए थे जो अभी तक कायम है। बसपा कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है लिहाजा वह किसी बाहुबली को टिकट देकर विवाद में नहीं पड़ना चाहती है। कांगे्रस ने तो एक कदम आगे जाकर बाहुबलियों के खिलाफ महिला प्रत्याशी उतारने की रणनीति बनाई है। वहीं भाजपा भी बाहुबलियों को टिकट देकर अपने लिए कोई मुसीबत नहीं खड़ी करना चाहती है। ऐसे में बाहुबलियों को छोटे दलों का ही सहारा बचा है।

भारतीय जनता पार्टी राजनीति में शुचिता की पक्षधर है। किसी भी बाहुबली नेता को टिकट देने का कोई सवाल ही नहीं उठता है।

- डॉ। चंद्रमोहन

प्रदेश प्रवक्ता, भाजपा

कांग्रेस किसी भी बाहुबली नेता को टिकट नहीं देगी बल्कि उनके खिलाफ महिलाओं और युवाओं को टिकट देकर चुनाव लड़ाया जाएगा

- सत्यदेव त्रिपाठी

चेयरमैन, कांग्रेस कम्युनिकेशन सेल