नई दिल्ली (एएनआई)। भारत में कोरोना का प्रसार तेजी से हो रहा। स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या 96 हजार पार हो गई। सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु और नई दिल्ली में सामने आए हैं। इस वायरस को रोकने के लिए फिलहाल कोई वैक्सीन नहीं बनी। ऐसे में संक्रमण को कैसे रोका जाए, इसके लिए 'हर्ड इम्यूनिटी' के विकल्प पर विचार किया जा रहा। हालांकि भारतीय एक्सपर्ट हर्ड इम्यूनिटी को बेहतर विकल्प नहीं मानते, उनका कहना है कि भारत जैसे देश में यह काम नहीं करेगा।

एम्स के प्रोफेसर इसे नहीं मानते सही

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में जेरियाट्रिक मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ प्रसून चटर्जी ने एएनआई को बताया, "इस महामारी को यह सोचकर दूर नहीं किया जा सकता है कि कल हम 'हर्ड इम्यूनिटी' बना लेंगे। ब्रिटेन में यह पूरी तरह से विफल हो चुका है। यह कहने का कोई मतलब नहीं है कि भारत ने हर्ड इम्यूनिटी विकसित की है। हां, हमने लॉकडाउन के माध्यम से वायरस को रोकने की कोशिश जरूर की।' डॉ चटर्जी ने कहा, "अधिकतर, हम बच्चों के माध्यम से हर्ड इम्यूनिटी विकसित करने की कोशिश करते हैं क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम काफी मजबूत होती है। मुझे नहीं पता कि हम पढ़े-लिखे लोग इस बारे में क्यों सोच रहे, यह काफी निराशाजनक है।'

क्या होती है हर्ड इम्यूनिटी

हर्ड इम्युनिटी का हिंदी में अनुवाद सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता है। वैसे हर्ड का शाब्दिक अनुवाद झुंड होता है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि कोरोना वायरस को सीमित रूप से फैलने का मौका दिया जाए तो इससे सामाजिक स्तर पर कोविड-19 को लेकर एक रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होगी। जितने लोग इस वायरस से संक्रमित होंगे, इंसान के शरीर में इससे लड़ने की उतनी ज्यादा ताकत पैदा होगी। इसे ही हर्ड इम्यूनिटी कहा जाता है।

भारत में नहीं करेगा काम

एम्स के प्रोफेसर डाॅ चटर्जी आगे कहते हैं, 'हर्ड इम्यूनिटी का प्रभाव पड़ता तो है। यदि हम इसे विकसित करते हैं, तो हम कई लोगों की रक्षा कर सकते हैं, लेकिन यह कोविड-19 के मामले में इतना सरल नहीं है। हालांकि, सबसे महत्वपूर्ण यह है कि हर्ड इम्यूनिटी तब ज्यादा कारगर होती है जब वायरस की वैक्सीन उपलब्ध हो।' एलएनजेपी अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ सुरेश कुमार ने प्रतिरक्षा के बारे में बात करते हुए कहा, "जब किसी विशेष वायरस के संपर्क में अधिक लोग आते हैं, तो कुछ इसे नैदानिक ​​रूप से प्रकट करते हैं जबकि अन्य उप-चिकित्सकीय और इस प्रकार समुदाय बड़े पैमाने पर प्रतिरक्षा का निर्माण करना शुरू करते हैं।"

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