- पानी बर्बाद करने से बाज नहीं आ रहे लोग

- जहां घरों में बर्बाद हो रहा पानी, वहीं इसको रीचार्ज करने की नहीं है व्यवस्था

- पानी की कमी से सूख रही है जमीन

GORAKHPUR: पानी के लिए कई शहरों में हाहाकार मचा हुआ है। लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं, लेकिन उनके लिए मनमाफिक इंतजाम नहीं हो पा रहे हैं। मगर गोरखपुर शहर की बात ही बिल्कुल अलग है। यहां पानी की बर्बादी आम है। लोग जानबूझकर इसे बर्बाद करने में लगे हुए हैं। हालत यह है कि गाडि़यों की धुलाई में तो धड़ल्ले से इसे बर्बाद किया जा ही रहा है, आसपास के सड़क की धुलाई, गार्डनिंग, क्लीनिंग में भी हम रीसाइकिल वॉटर के बजाए पीने का पानी ही इस्तेमाल कर रहे हैं। इतना ही नहीं वहीं सड़क पर दौड़ने वाली पाइपलाइन जगह-जगह टूटी होने की वजह से भी काफी पानी की बर्बादी हो रही है। मगर इसके प्रॉपर रीचार्ज का कोई इंतजाम नहीं है। इसको लेकर जब दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने शहर का जायजा लिया तो काफी जगहों पर पानी की बर्बादी देखने को मिली।

लगातार यूज हो रहा है ग्राउंड वॉटर

पानी की बात करें तो पीने के लिए ग्राउंड वाटर ही सेफ है, लेकिन जिस तरह से इसका यूज हो रहा है, इसकी क्राइसिस होना भी तय है। अब जरूरत है तो ग्राउंड वाटर को रीचार्ज करने की, लेकिन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। दूसरे एरियाज जहां वॉटर क्राइसिस की संभावना है, लोग वॉटर हार्वेस्टिंग का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने में जुटे हुए हैं, लेकिन यहां तो इस बारे में न तो जिम्मेदार ही कुछ सोचकर पहल कर रहे हैं और न ही अब तक किसी स्वयं सेवी संस्थाओं ने भी इसको लेकर कोई कदम आगे बढ़ाया है। अगर वॉटर क्राइसिस से हमें बचे रहना है, तो न सिर्फ हमें वॉटर हार्वेस्टिंग टेक्नीक्स अपनानी चाहिए, बल्कि इसके लिए यह भी जरूरी है कि रेन हार्वेस्टिंग के साथ ही ताल और पोखरे को भी बचाया जाए। क्योंकि टोटल वॉटर का 98 परसेंट पानी तालाब, झील और पोखरों में ही है, बाकि का दो परसेंट वॉटर ही सर्कुलेट होता है।

वॉटर क्राइसिस के कई बड़े रीजन्स

जनसंख्या दबाव

शहरीकरण

इंडस्ट्रीलाइजेशन

वॉटर बेस एग्रीकल्चर

पॉल्युशन

सिर्फ 0.007 परसेंट पानी पीने के लायक

पूरे यूनिवर्स में महज तीन परसेंट पानी ही फ्रेश है, जिसमें ज्यादातर हिस्सा बर्फ के रूप में है। इसमें भी सिर्फ 0.007 परसेंट पानी ही पीने के लायक है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2025 तक लोगों को पानी की जबरदस्त किल्लत का सामना करना पड़ेगा। पानी की कमी की वजह से किडनी, माइंड, स्किन, लंग्स के साथ कई खतरनाक बीमारियों भी हो सकती हैं। वहीं फ्रेश वॉटर का यूज न करके भी हम बीमारियों को दावत दे रहे हैं।

इस तरह से होगा बचाव

लोगों को करें खतरे से आगाह

वॉटर वेस्टेज को कम करने और उसे सेफ करने का सबसे बेहतर तरीका है, अवेयरनेस। अगर लोग पानी के वेस्टेज से होने वाले खतरे से आगाह हो गए और उन्हें इस बात का अहसास हो गया कि हम जो कर रहे हैं, उससे क्या प्रॉब्लम हो सकती है, तो वॉटर वेस्टेज को कुछ हद तक रोका जा सकता है। इसके लिए सबसे कारगर हथियार अवेयरनेस प्रोग्राम ही है। घर-घर जाकर, नुक्कड़ नाटक, एड, पोस्टर और बैनर के थ्रू पानी के वेस्टेज को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

नहाने के लिए नहीं लेकिन गार्डन में यूज

पानी का वेस्टेज कम कर हम पानी जरूर बचा सकते हैं, लेकिन पानी को री-साइकिल कर इसके वेस्टेज को और कम किया जा सकता है। डॉ। गोविंद पांडेय की मानें तो गंदा पानी भी बड़े ही काम का है। इससे प्यास तो नहीं बुझाई जा सकती, लेकिन आग जरूर बुझाई जा सकती है। इसका यूज नहाने के लिए नहीं किया जा सकता, लेकिन गार्डन में पौधों को पानी देने के लिए इसका यूज कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि ग्रे वॉटर, जिसमें टॉयलेट वॉटर नहीं आता, उसको दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। टॉयलेट वॉटर में ऑर्गेनिक पॉल्युशन होता है, इसलिए इसको रीसाइकिल कर यूज नहीं किया जा सकता।

25 परसेंट तक कम वेस्टेज

घर में पानी के लिए जगह-जगह टैप और फिटिंग्स लगी रहती हैं। इनसे पहले काफी पानी वेस्ट होता था, लेकिन इन दिनों कंपनीज ने इनकी डिजाइन काफी चेंज कर दी है, जिससे कि 25 परसेंट तक पानी के वेस्टेज को कम किया जा सकता है। डॉ। पांडेय ने बताया कि पहले टैप से डायरेक्ट पानी बाहर आता था, लेकिन इन दिनों कंपनी ने टैप के एग्जिट प्वाइंट को अपग्रेड करके छोटे-छोटे छेद कर दिए हैं, जिनसे पानी फोर्सली बाहर आता है। इससे कम पानी में जरूरत पूरी हो जाती है।

एरिया के हिसाब से बदलती है वॉटर क्वालिटी

पीने का पानी पूर्वाचल की सबसे बड़ी प्रॉब्लम है। पानी की क्वालिटी की बात करें तो यह एरिया बदलने के साथ ही चेंज होती रहती है। इसलिए जरूरी है कि एरिया के अकॉर्डिग ही वॉटर प्योरिफायर का यूज किया जाए। पूर्वाचल में पानी की क्वालिटी सॉल्ट की वजह से नहीं बल्कि बैक्टेरिया और फंजाई की वजह से खराब है, इसलिए यहां पर बजाए आरओ प्योरिफायर के यूज के सिर्फ अल्ट्रा प्योर वॉटर सिस्टम से पानी को प्योर किया जाए। इससे कम पानी बर्बाद होगा।