ग्रोथ का अनुमान घटा

मूडीज की निवेशक सेवा रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक ग्रोथ के लिए जोखिम बढ़ा है, लेकिन हाल के बाजार के उतार-चढ़ाव के बावजूद हमें नहीं लगता कि विश्व की विकसित अर्थव्यवस्थाएं मंदी की तरफ बढ़ रही हैं। मूडीज के मुताबिक पिछले 30 सालों में हमने 16 तिमाही में शेयर बाजार में इस तरह की गिरावट देखी है। वहीं 25 तिमाही में 10 साल के कॉरपोरेट बांड के समान उतार-चढ़ाव रहे हैं। अधिकतर केस में इस उतार-चढ़ाव से मंदी के संकेत नहीं मिले।फिच का अनुमानरेटिंग एजेंसी फिच ने चीन और कमोडिटी एक्सपोर्टरों के चलते विश्व की ग्रोथ का अनुमान घटा दिया है। एजेंसी का कहना है कि अभी मंदी नहीं आई है। फिच ने विश्व की ग्रोथ का 2016 में लक्ष्य 2.9 से घटाकर 2.5 कर दिया है।

मंदी की सीमा में नहीं

फिच के मुताबिक भले ही विश्व की ग्रोथ का अनुमान घटा दिया गया है, लेकिन ये मंदी की सीमा में नहीं है। लेबर मार्केट की हालत कई देशों में सुधर रही है। क्रूड के कम दामों के कारण लोगों की आय बढ़ रही है। इससे ग्राहक खर्च बढ़ाएंगे, जिससे अर्थव्यवस्था को फायदा मिलेगा। रेटिंग एजेंसी के मुताबिक क्रूड की लगातार गिरती कीमतों और चीन में धीमी ग्रोथ से जोखिम बढ़ा था, जिसका असर पूरे विश्व की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ा। उर्जा और कमोडिटी के अलावा भी बाजार में उतार-चढ़ाव आया। इसके चलते वैश्विक शेयर बाजारों में गिरावट दर्ज की गई। जिससे वित्तीय बाजारों की हालत बिगड़ गई। मौजूदा माहौल से कुछ देशों में ग्रोथ पर असर असर पड़ेगा लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि हम वैश्विक मंदी की तरफ बढ़ रहे हैं। मूडीज ने फरवरी में कई कॉरपोरेट्स, बैंक और देशों के खिलाफ निगेटिव रेटिंग दी थी।

बुरा असर खत्म हुआ

इनकी आय, लोन पोर्टफोलियो और टैक्स तेल और दूसरी कमोडिटी पर निर्भर थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि हमें लगता है कि कमोडिटी के कम दामों के चलते वित्तीय बाजार का बुरा असर खत्म हुआ। इससे कई देशों पर अच्छा असर हुआ। विकसित देशों से अब मजबूत संकेत मिल रहे हैं। अमेरिका में रोजगार के आंकड़े ज्यादा स्थिर ग्रोथ की तरफ इशारा कर रहे हैं। इससे बांड और शेयर बाजार पर असर पड़ेगा। मूडीज के मुताबिक जी 20 के देशों की अर्थव्यवस्थाएं 2016 में 1.8 फीसदी और 2017 में 2 फीसदी की दर से आगे बढ़ेगी। कमोडिटी की कम कीमतों का सकारात्मक असर कंज्यूमर और बिजनेस के विश्वास पर पड़ेगा। मूडीज को लगता है कि मौजूदा कर्ज का वातावरण कुछ कुछ 1987 या 1998 जैसा ही है जब कुछ सेक्टर में कर्ज की दिक्कत आई थी। हालांकि दूसरे सेक्टर्स पर इसका मामूली असर पड़ा।

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