- हाईकोर्ट ने सरकार की नीयत पर उठाये सवाल

- आला अफसरों को भी जमकर लगाई फटकारा

रुष्टयहृह्रङ्ख : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने पेट्रोल पंपों पर घटतौली के मामले में राज्य सरकार की नीयत पर गंभीर सवाल उठाये हैं। कोर्ट ने मुख्य सचिव से कहा है कि कार्यवाही केवल नाम की न हो, वह दिखनी भी चाहिए। कोर्ट ने सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को भी जमकर फटकार लगाई है और मुख्य सचिव के दो मई के शासनादेश को आपराधिक मामले की जांच में हस्तक्षेप करने वाला करार दिया। न्यायालय ने सख्त टिप्पणी करते हुए यहां तक कह दिया कि ऐसा लगता है कि सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों की इसमें मिलीभगत व सहयोग है।

शासनादेश पर की तीखी टिप्पणी

यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और न्यायमूर्ति वीरेंद्र कुमार (द्वितीय) की खंडपीठ ने अशोक निगम व पवन बिष्ट की जनहित याचिका पर दिया। न्यायालय ने दो मई के शासनादेश पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि जो निर्देश दिए गए हैं, वे आपराधिक मामले की जांच में हस्तक्षेप करने वाले हैं और शासनादेश जारी करने वाले को सह-अभियुक्त की श्रेणी में लाते हैं। न्यायालय ने कहा कि घटतौली के ये मामले संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं। ऐसे में समझ से बाहर है कि राज्य सरकार के अधिकारी एफआइआर दर्ज करने से कैसे बच सकते हैं जबकि यह उनका दायित्व है। न्यायालय ने याचिका के साथ लगाई गई मीडिया रिपोर्टो का जिक्र करते हुए कहा कि पेट्रोल पंप मालिकों ने हड़ताल की और वे सरकार से कुछ शतर्ें मनवाने में कामयाब हो गए। हालांकि न्यायालय ने राज्य सरकार और ऑयल कंपनियों पर आशा और विश्वास प्रकट करते हुए कहा कि अब वे मौखिक आश्वासन के बजाय प्रभावी कार्रवाई करें। न्यायालय ने इसके लिए दो माह का समय दिया है।

पत्र का भी किया जिक्र

न्यायालय ने एसएसपी, एसटीएफ द्वारा आईजी एसटीएफ को 24 मई को लिखे पत्र का भी जिक्र अपने आदेश में किया। इसमें कहा गया है कि तीन मई से 20 मई के दौरान चेकिंग में तमाम पंपों पर गड़बडि़यां पकड़ी गईं। मात्र गड़बड़ी वाले वितरण इकाई को सील किया गया व कोई एफआइआर दर्ज नहीं की गई। न्यायालय ने कहा कि एसटीएफ ने अपराध की एक श्रृंखला को पकड़ा था लेकिन, पहले दिन यानि 27 अप्रैल की सफलता दोहराई नहीं जा सकी। पहले दिन ही 23 गिरफ्तारियां हुईं। समय बीतने के साथ चेकिंग पूरी तरह असफल होती गई। मुख्य सचिव भले कह रहे हों कि एसटीएफ के हाथ नहीं बंधे लेकिन एसटीएफ के अधिकारियों को जिस निराशा और असहयोग का सामना करना पड़ रहा है, हम उसे समझ सकते हैं। अगली सुनवाई 31 जुलाई को होगी।