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नंबर गेम

- 6 की जगह 8 रिसर्च स्कॉलर्स का मार्गदर्शन ही कर सकेंगे एक टीचर

- 2018 में पीएचडी प्रोग्राम में एनरोल्ड स्कॉलर्स पर लागू होगा यह नियम

- 4 साल की जगह 6 साल में पीएचडी पूरा कर सकेंगे रिसर्च स्कॉलर्स

- 200 दिन आना अनिवार्य है पीएचडी अवधि के दौरान।

- 3 बार शोध का सिनॉप्सिस नहीं होने पर पीएचडी में रजिस्ट्रेशन के लिए नहीं मिलेगी अनुमति।

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- UGC ने देशभर की यूनिवर्सिटीज में चल रहे Ph.D प्रोग्राम्स को लेकर निर्धारित किया नियम

- अब रिसर्च में खानापूर्ति करना नहीं होगा संभव, रिसर्च सेंटर पर 200 दिन की मौजूदगी भी रहेगी जरूरी

amarendra.pandey@inext.co.in

GORAKHPUR:

रिटायरमेंट के बाद अब प्रोफेसर्स पीएचडी प्रोग्राम्स में बतौर गाइड स्कॉलर्स का मार्गदर्शन नहीं कर सकेंगे। यूजीसी ने पीएचडी को लेकर जारी की नई गाइडलाइन में इस पर रोक लगा दी है। आयोग के मुताबिक, अब रिसर्च स्कॉलर्स केवल यूनिवर्सिटी और कॉलेजेज में पढ़ा रहे टीचर्स को ही अपना गाइड बना सकेंगे। आयोग ने इसे लेकर सभी संस्थानों को सर्कुलर भी जारी कर दिया है।

200 दिन आना होगा कंपल्सरी

यूजीसी की गाइडलाइन के मुताबिक, अब एक टीचर छह की जगह आठ रिसर्च स्कॉलर्स का मार्गदर्शन कर सकेंगे। वर्ष 2018 में पीएचडी प्रोग्राम में एनरोल होने वाले स्कॉलर्स पर यह नियम लागू होगा। इससे पहले प्रोग्राम में रजिस्टर हुए कैंडिडेट्स को इस नियम में छूट दी गई है। नए नियम के मुताबिक, रिसर्च स्कॉलर चार साल की जगह छह साल में पीएचडी पूरा कर सकते हैं। साथ ही कोर्स के अलावा रिसर्च सेंटर में अब पीएचडी करने की अवधि के दौरान 200 दिन आना अनिवार्य कर दिया गया है। इतना ही नहीं आयोग ने फीस आदि जमा करने की सभी व्यवस्थाओं को भी ऑनलाइन कर दिया है।

गुणवत्ता बढ़ाने के लिए फैसला

यूजीसी का मानना है कि इस कदम से रिसर्च क्षेत्र में ट्रांसपेरेंसी आने के साथ ही गुणवत्ता में भी सुधार आएगा। अभी तक जहां रिसर्च स्कॉलर अपने हिसाब से पसंद के रिटायर्ड टीचर्स को अपना गाइड मान लेते थे और अपने हिसाब से महज खानापूर्ती के लिए कागजी कार्रवाई पूरी कर लेते थे। लेकिन अब ऐसा करना संभव नहीं होगा। 200 दिन रिसर्च सेंटर में रहना अनिवार्य करने से अब कोई कैंडिडेट रिसर्च में खेल नहीं कर सकेगा।

तीन बार मिलेगा मौका

रिसर्च स्कॉलर्स को प्री-सबमिशन सेमिनार में प्रस्तावित शोध विषय की भी अब गहन समीक्षा की जाएगी। जिसके बाद शोध को आगे करने के लिए अनुमति प्रदान की जाएगी। तीन बार शोध का सिनॉप्सिस नहीं होने पर ऐसे कैंडिडेट्स को पीएचडी में रजिस्ट्रेशन के लिए अनुमति नहीं मिल पाएगी। शेष करने वालों को अपना सिनॉप्सिस डीआरसी के समक्ष प्रस्तुत करना होगा। शोध के प्रारूप पर तीन बार से अधिक विचार नहीं किया जाएगा। यदि शोध प्रारूप को पंजीयन के लिए पारित नहीं किया गया तो ऐसे कैंडिडेट्स के सिनॉप्सिस पर विचार नहीं किया जाएगा।

वर्जन

रिसर्च को लेकर यूजीसी को कई शिकायतें मिल चुकी हैं। कई मामलों में रिसर्च स्कॉलर्स सिर्फ खानापूर्ति के लिए पीएचडी में गाइड बना लेते हैं और पूरी अवधि के दौरान रिसर्च को लेकर गंभीर भी नहीं रहते। अब ऐसा करना मुश्किल होगा। आयोग के नए नियम गुणवत्ता को बढ़ावा देंगे।

- अशोक कुमार अरविंद, रजिस्ट्रार, डीडीयूजीयू