अपने आशियाने के लिए भटक रहे शताब्दीनगर एन्क्लेव के आवंटी

किराए के मकान में रहने को मजबूर आवंटियों को कोर्ट से आखिरी उम्मीद

Meerut। तो क्या अब पूरी जिंदगी किराए के मकान में ही गुजारनी होगी? पति राधेश्याम की ओर देखकर विद्यादेवी ने सवाल किया तो वे चुप हो गए और चेहरे पर मायूसी घिर आई। गुरुवार को दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने शताब्दीनगर एन्क्लेव के उन आवंटियों के हालचाल भी पूछे, जिनकी आंखें हर सुबह अपने आशियाने का सपना लेकर खुलती हैं। कई सालों से यही दिनचर्या आवंटियों के जीवन का हिस्सा बनी हुई है।

क्यों इतना संवेदनहीन?

फिरोजाबाद निवासी राधेश्याम की मेरठ में सब इंस्पेक्टर के पद पर तैनाती हुई तो वे परिवार के साथ यहां आ गए। बेटे ने जिद की तो 2009 में मेरठ विकास प्राधिकरण की शताब्दीनगर एन्क्लेव योजना में राधेश्याम ने 162 वर्ग मीटर का प्लॉट बुक करा लिया। प्लॉट की कीमत 10.50 लाख रुपये थी, सो आगरा का प्लॉट बेचना पड़ा। जिसके एवज में 6 लाख रुपये मिले और 3 लाख रुपये बैंक से लोन लिया। पत्नी विद्यावती के जोड़े रुपयों को मिलाकर 'आशियाने' की आस में पाई-पाई एमडीए को दे दी। 2013 में राधेश्याम रिटायर हो गए, इस बीच 2013 में करीब डेढ़ लाख रुपये खर्च करके उन्होंने प्लॉट की रजिस्ट्री भी करा ली। मगर आज तक राधेश्याम को आशियाना नहीं मिला और जो मिला वह है दर-दर की ठोकरें।

बीमार पर तो रहम करो

साल 2013 में अपने प्लॉट की रजिस्ट्री करा लेने के बावजूद बाईपास सर्जरी करा चुके 68 वर्षीय राधेश्याम पिछले कई साल से कभी कमिश्नर, कभी एमडीए तो कभी हाईकोर्ट के चक्कर काट रहे हैं। मगर हर बार एमडीए के अधिकारी उन्हें 'मीठी गोली' दे देते हैं तो वहीं पुलिस-प्रशासन लॉ एंड आर्डर का हवाला देकर किसानों के सामने नतमस्तक है। गुरुवार को दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के समक्ष बुजुर्ग दंपति ने अपनी पीड़ा बयां करते हुए कहा कि 'ऐसा भी कहीं होता है, जीवनभर की कमाई लुटाकर भी किराए के मकान में रहने को मजबूर होना पड़े.' बता दें कि राधेश्याम, पत्नी विद्यावती के साथ गंगानगर के एल ब्लॉक में एक दो कमरे के मकान में किराए पर रह रहे हैं। बेटा संजय सिंह परिवार के साथ गोंडा में रह रहा है।

मुफलिसी में लड़ी कानूनी लड़ाई

राधेश्याम ने बताया कि चारों ओर से निराशा मिलने पर मुफलिसी में भी कानून से उम्मीद नहीं टूटी और अपने आशियाने को पाने की लड़ाई लड़ी। राधेश्याम के अलावा योजना के 8 आवंटी और तैयार हुए, जिन्होंने हाईकोर्ट में पजेशन के लिए याचिका दाखिल की। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि प्राधिकरण आवंटियों को या तो योजना पर कब्जा दिलाए या प्लॉट की कीमत 8 प्रतिशत सालाना ब्याज के साथ वापस करे। उन्होंने बताया कि कानूनी प्रक्रियाओं से वे अनजान थे, जिसका फायदा सबने उठाया। कोर्ट केसेज में लाखों रुपये गंवाने के बाद स्थिति जस की तस है। आवंटी एकजुट नहीं हैं, जिसका फायदा एमडीए समेत किसान भी उठा रहे हैं। शताब्दीनगर एन्क्लेव के ही 300 से अधिक आवंटियों में से 240 ने अब तक रजिस्ट्री करा ली, किंतु उन्हें कब्जा नहीं मिला।

कोर्ट से ही उम्मीद

ससुरालपक्ष मेरठ में था सो सोचा कि क्यों न नौकरी के बाद मेरठ में रहा जाए? दिल्ली निवासी नौकरीपेशा कृष्ण मोहन प्रसाद सिन्हा ने यहीं सोचकर शताब्दीनगर एन्क्लेव में 162 वर्ग मीटर का प्लॉट खरीदा। प्राधिकरण ने एक अन्य 108 वर्ग मीटर का प्लॉट भी एमडीए ने सिन्हा को थमा दिया। जिसके एवज में कृष्ण मोहन ने जीवनभर की जमा पूंजी करीब 22 लाख रुपये प्राधिकरण को थमा दिए। जिसके बाद प्राधिकरण ने औपचारिकता पूरी करते हुए 2014 में प्लॉट्स की रजिस्ट्री कर दी। मगर आज तक कृष्ण मोहन को प्लॉट्स पर कब्जा नहीं मिल पाया है। कृष्ण मोहन ने जो लोन लेकर एमडीए को भुगतान किया था, उसे वे आज भी चुका रहे हैं। उन्होंने प्राधिकरण में भी शिकायत की लेकिन सुनवाई नहीं हुई। अफसर कब्जे की बात पर सिर्फ टाल-मटोल करते हैं तो कृष्ण मोहन के मुताबिक अब उन्हें केवल कोर्ट से उम्मीद है।

इसके अलावा

-श्रीराम आधार शर्मा

-रचना सागर

-राजीव कुमार

-डॉ। सुनीता प्रजापति

-आनंद प्रकाश

-रेनू सिंघल

-मुकेश कुमार

हाईकोर्ट से गुहार

शताब्दीनगर एन्क्लेव के आवंटियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। जिसमें हाईकोर्ट ने आवंटियों को आवंटित प्लाट पर कब्जा दिलाने या 8 प्रतिशत ब्याज के साथ रकम वापसी के आदेश दिए। हालांकि बुधवार को एक बार फिर किसानों के सामने प्रशासन के घुटने टेंकने से आवंटियों के मंसूबों पर पानी फिरा है। सभी ने एक बार फिर कोर्ट में तेज पैरवी की बात कही। केस की अगली सुनवाई 14 नवंबर को है।