- 518 बच्चों को मिला जीवनदान
- 10 बेड का है आकर्षक सेंटर
- 90 फीसदी केस सक्सेसफुल
- 2015 में हुई थी शुरुआत
- 200 से ज्यादा केस आ रहे हर साल
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हर साल बढ़ा क्योर रेट
2017
केस : 246
रिकवर : 194
85 प्रतिशत
2018
केस : 248
रिकवर : 201
92 प्रतिशत
2019 <द्गठ्ठद्द>(<द्गठ्ठद्दद्गठ्ठस्त्र>अब तक)
केस : 139
रिकवर : 123
99 प्रतिशत
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- 2018-19 में के सर्वे में मिली सफलता, मार्च में आई थी रिपोर्ट
- मलन्यूट्रिशन से पीडि़त बच्चों को क्योर करने का रेट है सबसे ज्यादा
अंकित चौहान। बरेली : गवर्मेट हॉस्पिटल कर नाम सुनते ही वहां की फैसिलिटीज को लेकर मन में कई सवाल उठते हैं। लेकिन, डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के न्यूट्रिशन रिहेब्लिटेशन सेंटर ने पिछले तीन वर्षो में मलन्यूट्रिशन से ग्रसित सैकड़ों बच्चों को हेल्दी लाइफ देकर एक मिसाल पेश की है। इसकी पुष्टि यूनीसेफ के सर्वे से भी हुई है। 2018-19 में किए गए स्टेट लेवल के सर्वे में बरेली एनआरसी को फर्स्ट रैंक मिली है।
ऐसे मिली सक्सेस
शुरुआत में सेंटर में 10 बेड का एक वार्ड था। साधारण वार्ड में किचन भी सामान्य थी। यहां तैनात किए गए पीडियाट्रिशियन डॉ। सागर और डाइटीशियन डॉ। रोजी जैदी ने इसके कायाकल्प का प्लान बनाया। प्लान और बजट अप्रूव होने के बाद यहां बच्चों की केयर के लिए एक और वार्ड तैयार किया गया।
यह है खासियत
दोनों वार्डो में एसी और झूले लगाए गए। खिलौनों के साथ एलईडी भी लगाई गई। रंग-बिरेंगे पर्दे लगाकर दीवारों पर बच्चों के पसंदीदा कार्टून कैरेक्टर्स की पेंटिंग्स भी बनाई गई हैं।
एनजीओ भ्ाी आए साथ
एनआरसी में मलन्यूट्रिशन से पीडि़त बच्चों की अच्छी केयर के लिए संस्थाए भी आगे आ रही हैं। 'छोटी सी आशा' संस्था यहां के बच्चों को दो माह से फ्री में डायपर दे रही है।
वर्जन
हमारी पूरी कोशिश होती है कि बच्चों को प्रॉपर ट्रीटमेंट मिले। तभी हर साल क्योर रेट में अच्छे रिजल्ट मिल रहे हैं। कई बार हाई रिस्क पर भी बच्चों को ट्रीट रने के बावजूद सफलता मिली।
डॉ। रोजी जैदी, डाइटीशियन, एनआरसी।
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केस स्टडी
15 दिन पहले मिलक से एक बच्चा एनआर सी लाया गया था, जिसका वजन महज 1.5 किलो था। जांच में बच्चे पता बच्चा विजीबल ब्लास्टिंग के साथ निमोनिया से पीडि़त था। उसको यहां मदर केयर थैरेपी के साथ पोषण दिया गया। 15 दिन में बच्चे का वजन 200 ग्राम बढ़ गया। अब बच्चे की हेल्थ में तेजी से सुधार हो रहा है।