-अपनी सिक्योरिटी को लेकर बेहद कंसर्न हैं अकेले रहने वाले बुजुर्ग

- पर पुलिस से अधिक तो अब इन्हें अपने पड़ोसियों पर है भरोसा

BAREILLY : बरेली में अकेले रहने वाले बुजुर्ग यूं ही नहीं डरते। असल में पुलिस ने लगभग उनकी तरफ से मुंह ही मोड़ लिया है। किसी घटना के बाद जिम्मेदारों की नींद कुछेक दिन के लिए खुलती है और उसके बाद भी चैन की नींद सो जाते हैं। अकेले रहने वाले इन बुजुर्गो ने काफी हद तक पुलिस से उम्मीद भी छोड़ दी। फिलहाल तो इनका आसरा अपने आस-पास रहने वाले से ही है।

दोनों बेटे रहते हैं घर से दूर

7क् वर्षीय डॉक्टर एसके अग्रवाल अपनी म्8 वर्षीय पत्‍‌नी आशा अग्रवाल के साथ आईजी ऑफिस के पास आवास विकास कॉलोनी में रहते हैं। एसके अग्रवाल बीसीबी में क्998 से ख्00फ् तक केमेस्ट्री डिपार्टमेंट के हेड रहे और इस पीरियड में उन्होंने कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल की जिम्मेदारी भी निभाई वहीं आशा अग्रवाल ने कई सालों तक सेंट मारिया में टीचिंग की है। दोनों का एक बेटा है। उनका बड़ा बेटा अनंत अग्रवाल मुंबई की एक मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर पोस्ट पर है। और छोटा बेटा गुड़गांव की कंपनी में जॉब करता है। दोनों ही बेटे करीब क्भ् वर्षो से जॉब के चलते घर से दूर हैं। त्योहार के वक्त ही उनका बेटा घर अाता है।

नौ महीने पहले आई थी पुलिस

बेटों के बाहर रहने से अग्रवाल दंपती को हमेशा सिक्योरिटी की चिंता रहती है। आशंका और अनहोनी की वजह से अग्रवाल दंपती का अपने पड़ोसियों के साथ अच्छे संबंध है। दोनों हमेशा पड़ोसियों से घंटों बात करते हैं। करीब नौ माह पहले सीनियर सिटिजंस का हालचाल का जायजा लेने पुलिस आई थी। नाम पता लिखकर चलते बने। उसके बाद से गली में पुलिस नजर नहीं आई है, जबकि सीनियर सिटिजंस बदमाशों के निशाने पर हैं। सोशल लाइफ लगभग जीरो हो जाने की वजह से अपने बच्चों के पास नहीं रहते हैं।

हाल जानने पुलिस तो कभी नहीं आई

अग्रवाल दंपती के घर से कुछ ही दूर पर 8ख् साल की विमला शुक्ला रहती हैं। वे राम स्वरूप डिग्री कॉलेज की फाउंडर प्रिंसिपल रही हैं। वह मूल रूप से इटावा की रहने वाली हैं। उनका इकलौता बेटा सौरभ लखनऊ में ही फैमिली के साथ रहता है। उनका बेटा बिजनेस के लिए बरेली आता रहता है। उनका कहना है कि वह खुद ही अकेले रहती हैं। उनका कहना है कि वे दूसरों को तकलीफ नहीं देना चाहती हैं। आसपास के लोगों को ही बुजुर्गो का ध्यान रखना चाहिए। उसके बाद पुलिस या एडमिनिस्ट्रेशन का नंबर आता है। हालांकि कभी पुलिस आती नहीं है, लेकिन हम पुलिस को दोष भी नहीं देते और उनसे अपेक्षा भी नहीं करते। क्योंकि उनके पास बहुत सारे काम हैं। हां, इतना जरूर है कि बुजुर्गो के लिए अलग से कोई सेल बने और इस सेल के अधिकारी के पास अन्य कोई काम न हो।