इस ग्रहण का सूतक अषाढ़ शुक्ल पक्ष की "गुरु पूर्णिमा" के दिन उत्तरार्ध अर्थात मध्य के बाद, संध्या पूर्व 4-32 मिनट से प्रारम्भ हो जाएगा।16 जुलाई पूर्णिमा को कर्क राशि की संक्रान्ति है।सूर्य नारायण सोमवार 15 जुलाई की मध्य रात्रिपरांत (28.32 मिनट)4-32 मिनट पर कर्क राशि में प्रवेश करेंगे।इस रात्रि की सांय 7-8 बजे तक मूल नक्षत्र, लुम्बक योग रहेगा।

ग्रहण प्रारम्भ---रात्रि 1-32am(17-07-2019)

ग्रहण-मध्य-----रात्रि 3-01(17-07-2019)

ग्रहण समाप्ति------रात्रि 4-31 मिनट।

ग्रहण का पर्व काल------2-59 मिनट।

परम ग्रास--------0-658

ग्रहण का राशि फल

यह ग्रहण धनु राशि आषाढ़ नक्षत्र में प्रारंभ होकर मकर राशि आषाढ़ नक्षत्र में ही पूर्ण होगा।ग्रहण आषाढ़ नक्षत्र धनु एवं मकर राशि वाले जातकों के लिए विशेष कष्टप्रद रहेगा।

चंद्र ग्रहण का प्रारम्भ धनु राशि में होने से अन्य राशियों पर होगा ये असर

मेष: अपमान

वृष: महाकष्ट

मिथुन: स्त्री/पति कष्ट

कर्क: सुख,सिंह:चिन्ता

कन्या: कष्ट

तुला: धन लाभ

वृश्चिक: हानि

धनु: घात

मकर: हानि

कुम्भ:लाभ

मीन: सुख

     

चंद्र ग्रहण का मोक्ष मकर राशि मे होने से

मेष:सुख,वृष:अपमान, मिथुन:कष्ट, कर्क:स्त्री/पति कष्ट, सिंह:सुख,कन्या:चिंता,तुला:कष्ट, वृश्चिक:धन लाभ, धनु:हानी, मकर:घात, कुम्भ:हानी, मीन:लाभ।

      

चंद्र ग्रहण वारफल,माहात्म्य

यह ग्रहण धनु एवं मकर राशि को स्पर्श करने से एवं मंगलवार वाले दिन घटित होने से स्नान,दान,जपादि के लिए विशेष महत्व पूर्ण है।आषाढ़ नक्षत्र में ग्रहण होने से वर्षा अधिक हो,घी, तेल,तिलहन,दालें आदि में तेज़ी हो। मकर राशि में ग्रहण मोक्ष होने से जीव जंतुओं, मंत्रियों चिकित्सकों के लिए कष्ट प्रद।

ग्रहण में क्या करें

ग्रहण काल में दूध दही,पका हुआ अन्न और जल में तुलसी पत्र डालकर रखने का शास्त्रोक्त विधान है।इस ग्रहण काल में रोग मुक्ति के लिए"महामृत्युंजय मंत्र" का जाप करना चाहिए।रोजगार सफलता के लिये"गायत्री मंत्र"का जाप करना चाहिए।धन प्राप्ति के लिये लक्ष्मी जी के मंत्रों का जाप एवं श्री यंत्र की पूजा कर"श्री सूक्त,लक्ष्मी सूक्त"आदि का यथा शक्ति जाप करना चाहिए।राहु एवं शनि कष्ट निवारण के लिए"शनि मंत्र एवं राजा दशरथ कृत शनि स्त्रोत" का पाठ करना चाहिए।चंद्र ग्रहण के समय मानसिक दोष एवं व्यथा के निवारणार्थ चंद्र दोष की शांति चन्द्र मन्त्रों के द्वारा करनी चाहिए।यह चन्द्र ग्रहण आषाढ़ पूर्णिमा की होने के कारण इसमें ग्रहण से पहले स्नान, ग्रहण के मध्य में हवन,पूजा-पाठ,देवार्चन, ग्रहण के अंत में दान का विशेष फल प्राप्त होगा।ग्रहण के समय रात्रि में पुण्यार्जन, दानादि का विशेष महत्व कहा गया है।

ग्रहण काल में रुद्राक्ष धारण का विशेष महत्व

ग्रहण काल में रुद्राक्ष धारण करने से सम्पूर्ण पापों का नाश होता है।रुद्राक्ष की माला से जाप करने से मंत्र समस्त फलों को देने वाला होता है। लाभ:-रुद्राक्ष की माला धारण करने वाले व्यक्तियों की हृदय की दुर्बलता दूर होती है, रूद्राक्ष की माला धारण करने मात्र से रक्तचाप में भी बहुत आराम मिलता है एवं रुद्राक्ष माला धारण करके धार्मिक व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त करता है।

ग्रहण पर विशेष

श्रीमद्भागवतस्त अष्टम स्कन्ध के नवम अध्याय में चौबीसवें श्लोक से छब्बीसवें तक ग्रहण के बारे में कहा गया है, "भगवान विष्णु जब मोहिनी रूप धारण कर देवताओं को अमृत पिलाने लगे तब राहु देवताओं का रूप बनाकर उनकी पंक्ति में बैठ गया, उस समय सूर्य एवं चंद्रमा ने राहु की सूचना दे दी।सूचना देने पर भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु के सिर को काट दिया, परंतु अमृत से भरपूर धड़ का नाम "केतु"और अमृत्व को प्राप्त करते हुए सिर का नाम राहु हो गया।भगवान ने उनको ग्रह बना दिया।इस वैर के कारण पूर्णमासी में चंद्र  की ओर तथा अमावस्या में सूर्य की ओर दौड़ता है यही पुराणों में ग्रहण का स्वरूप है।

पंडित राजीव शर्मा

Spiritual News inextlive from Spiritual News Desk