- तीन दिवसीय मंजूश्री रंग महोत्सव चार से

- '26/11' और 'सत भाषै रैदास' नाटक का होगा मंचन

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LUCKNOW: आतंकवाद व जातिवाद समाज में एकता और भाईचारे का सबसे बड़ा दुश्मन है। इस आतंकवाद के शिकार हमेशा वो लोग होते हैं जो बस दो जून की रोटी के लिए दर-दर की ठोकरें खाते हैं। वहीं जातिवाद जहर धीरे-धीरे समाज को खोखला करता जा रहा है। यही सच तीन दिवसीय मंजूश्री रंग महोत्सव में नाटकों के जरिये जनता के सामने पेश किया जायेगा। महोत्सव का आयोजन चार जून से राय उमानाथ बली प्रेक्षागृह में किया जायेगा।

आतंक का कोई मजहब नहीं

मंजुश्री रंग महोत्सव में गोरखपुर की रंग मंडली युवासंगम द्वारा आभास आनंद का लिखा व पीयूषकांत अलग के निर्देशन में आतंकवाद पर आधारित नाटक '26म्/11' का मंचन चार जून को राय उमानाथ में किया जायेगा। इस नाटक के बारे में बताते हुए शैलेश ने कहा कि इस नाटक में मुंबई हमलों से दहले उस परिवार की कहानी है जो एक मासूम की जान को बचाने के चक्कर में अपनी जान तक कुर्बान कर देते है। इस नाटक में जहां एक तरफ आतंकवाद को मुस्लिम समाज से जोड़ा जाता है, वहीं नाटक में एक मुस्लिम परिवार की कहानी को बड़े ही मार्मिक तरीके से दिखाया गया। जहां पर एक लड़का जो आतंकवादियों से बचता हुआ एक मुस्लिम परिवार में पनाह ले लेता है परिवार वाले आतंकवादियों के पूछने पर भी उस लड़के को आतंकियों के हाथ नहीं सौंपते जिससे गुस्साये आतंकी मुस्लिम परिवार को ही मार देते है।

जातिवाद की बेडि़या तोड़ता 'सत भाषै रैदास'

तीन दिवसीय मंजुश्री रंग महोत्सव के अंतिम दिन राजेश कुमार का लिखा व शैलेश श्रीवास्तव का निर्देशित किया हुआ नाटक 'सत भाषै रैदास' का मंचन किया जायेगा। इस नाटक में लगभग तीस से ज्यादा रंगकर्मी अपने अभिनय से सामाजिक विसंगतियों, जाति धर्म के लिए क्रांतिकारी विचारों वाले संत रैदास की संघर्ष की कहानी को मंच पर उतारेंगे। इस नाटक में संत रैदास के उस पहलु को दिखाया जायेगा जिसमें उन्होंने जातिवाद व धर्मवाद का जमकर विरोध किया था। संत रैदास का कहना था कि धर्म और जाति समाज में बनाये हुए नियम है उनको तोड़कर लोगों को एक साथ मिलकर रहना चाहिए। ब्राह्मण, क्षत्रिय बनने से पहले लोगों को इंसान बनना चाहिए।