अब तो गिनती के हफ्ते के दिन भी नहीं बचे हैं। अब कोई रिस्क लेने का सवाल ही पैदा नहीं होता। तापमान मैटर नहीं करता। लक्ष्य है दिन के लिए निर्धारित टॉस्क को हर हाल में पूरा करना। भले ही इस चक्कर में ढाई सौ किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़े।

-बसपा प्रत्याशी कपिलमुनी के साथ एक दिन

-दिन का टॉस्क पूरा करना ही लक्ष्य, खाना-पीना हुआ सेकेंडरी

-एक दिन में लगा रहे 250 किलोमीटर की दौड़, अंतिम व्यक्ति तक पहुंचने का प्रयास

-जनसभा के साथ ही डोर टु डोर कैंपेनिंग पर फोकस

ALLAHABAD: नाम के आगे सांसद की पदवी। लोकसभा क्षेत्र का प्रथम नागरिक होने का दर्जा। उम्मीद के साथ मिलने वालों की कतार। संसद में पहुंचने का रुतबा। यह सब सुनने में अच्छा है लेकिन इसके प्रत्याशियों की दिनचर्या कैसे चेंज हो जाती है? यह जानने की कोशिश की आई नेक्स्ट ने। चुनाव से चंद दिन पहले का समय प्रत्याशियों के लिए कितना कठिन होता है? इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। हर कोई उम्मीदवार से उम्मीद पाले होता है और प्रत्याशी भी जानता है कि ऐसे वक्त में गैरमौजूदगी क्या असर दिखाएगी। जानते हैं वेडनसडे को फूलपुर के सांसद कपिलमुनी करवरिया की शुरुआत कैसी रही और पूरे दिन उन्होंने क्या-क्या किया?

पूजा के साथ हुई दिन की शुरुआत

रात में वह सोए कब? यह तो पता नहीं। पूछने पर कपिलमुनी ने कहा, नींद कहां आती है। आज का दिन गुजरा तो अगले दिन का प्लान वर्कआउट करना होता है। बस झपकी मार लेते हैं। लाइफ स्टाइल में चेंजेज किए हैं ताकि इसका असर रोज की दौड़ भाग पर न पड़े। आई नेक्स्ट रिपोर्टर पहुंचा तो वह तरोताजा थे। रोज वह दो घंटे का समय कल्याणी देवी मंदिर में पूजा-पाठ में देते हैं। इस मामले में उन्होंने आज भी उन्होंने कोई समझौता नहीं किया। सुबह छह से आठ बजे तक तक का वक्त उन्होंने मंदिर में बताया। इसके बाद घर लौटे और हल्का-फुल्का नाश्ता लिया ताकि भारीपन महसूस न हो। सुबह करीब नौ बजे वह काफिले के साथ निकल पड़े।

पहला पड़ाव, रामचंद्र मिशन

घर छोड़ने के बाद कपिलमुनि का काफिला कहां जाएगा? इसकी जानकारी किसी को नहीं होती। इसीलिए वह पूरी टीम को लीड करते रहते हैं। उनकी गाड़ी जिधर मुड़ती, बाकी गाडि़यां भी उसी दिशा में मुड़ जातीं। करीब पन्द्रह मिनट चलने के बाद वह मुंडेरा सब्जी मंडी के रास्ते पर बढ़ चले। उनका पहला पड़ाव रामचंद्र मिशन परिसर था। यहां वह कैंपस में मौजूद लगभग हर सदस्य से मिले। कुशलता पूछी और समस्याओं की जानकारी ली। कुछ लोगों ने भवन निर्माण कराने को कहा तो कुछ की डिमांड सोलर लाइट लगवाने की थी। उन्होंने कहा, कुछ काम रह गए हैं जो पिछली बार नहीं कर पाया। सभी काम होंगे बस वोट देते समय ध्यान दीजिएगा। कैंपस में मौजूद लोगों ने उन्हें प्रसाद ऑफर किया तो उन्होंने पूरी श्रद्धा के साथ उसे ग्रहण किया।

सफर के दौरान फोन पर मैनेजमेंट

यहां से निकलने के बाद थोड़ा मौका मिल गया तो फोन पर बिजी हो गए। सोरांव में दिन में उनके समर्थन में स्वामी प्रसाद मौर्या की सभा प्रस्तावित थी। वहां का मैनेजमेंट देख रहे लोगों से बात शुरू हो गई। सवाल पूछा पूरा इंतेजाम हो गया है या नहीं। सामने से कोई दिक्कत बताई गई तो दूसरी कॉल पर उन्होंने तत्काल उसका साल्यूशन सुझाया। रास्ते में कहां-कहां रुकना है? किससे-किससे मिलना है, सारी बात फोन पर तय हो रही थी। यह बातें चलने के दौरान काफिला नैनी की तरफ मुड़ चुका था। रिपोर्टर के लिए यह देखना थोड़ा अटपटा था लेकिन कपिलमुनी के साथ के लोग जानते थे कि लक्ष्य क्या है।

भाई के साथ एक घंटे मश्रि्वरा

रामचन्द्र मिशन से निकलने के बाद कपिल मुनि का काफिला सीधे नैनी जेल पहुंचा। यहां उनके भाई उदयभान बंद हैं। उदयभान भी राजनीति से जुड़े हैं। फूलपुर की राजनीति के बारे में उन्हें काफी कुछ पता है। शायद इसी के चलते वह जेल के भीतर भी गए और करीब एक घंटे का वक्त भाई के साथ बिताया।

अगला पड़ाव सोरांव

नैनी से निकलने के बाद उन्होंने खुद को सोरांव पर केन्द्रित कर लिया। वहां का हाल जानने में लग गए। बीच में बसपा के राष्ट्रीय महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्या से भी कांटैक्ट में रहे। दरअसल यहां कुशवाहा और मौर्य समाज का सम्मेलन आयोजित होना था और चीफ गेस्ट के रूप में स्वामी प्रसाद मौर्या को पहुंचना था। टाइम कम था इसलिए काफिला सीधे सभास्थल पहुंचा। यहां वह सम्मेलन में शामिल हुए और सभा को सम्बोधित किया। अपनी बात रखी, पार्टी की नीतियां बताई और आग्रह किया कि उन्हें जिताकर बहन जी के हाथों को मजबूत बनावें। प्रोग्राम समाप्त होने के समय तक पांच बज चुका था। इस दौरान उन्हें घर पर बना नाश्ता और रामचंद्र मिशन में मिला प्रसाद की नसीब हुआ था।

शाम से शुरू हो गया सभाओं का दौर

सोरांव का प्रोग्राम समाप्त होने के बाद तमाम लोग उनसे व्यक्तिगत रूप से मिले। अपनी समस्या बताई। सभी को उन्होंने खामोशी से सुना और भरोसा दिलाया कि वह सबका समाधान देने की पूरी कोशिश करेंगे। इसके बाद कारवां मनगढ़ की तरफ निकल पड़ा। यहां भी उन्हें सभा में जुटे लोगों को सम्बोधित करना था। इसके बाद वह शहर पश्चिमी की तरफ बढ़ लिए। यहां शाम के वक्त अलग-अलग इलाकों में चार सभाएं प्रस्तावित थीं। यह सिलसिला रात दस बजे तक चलना था। पूरे दिन में उन्होंने करीब ढाई सौ किलोमीटर का चक्कर लगाया लेकिन चेहरे पर न तो थकान थी और न ही जोश कम हुआ था।