छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र: ईस्ट सिंहभूम जिले की जनसंख्या करीब 22 लाख है। इस पर नजर रखने के लिए मलेरिया विभाग ने महज 76 कर्मचारियों को तैनात किया है। इतनी बड़ी जनसंख्या के हिसाब से यह संख्या काफी कम है। इतनी बड़ी आबादी में इतने कम कर्मचारी भला कैसे मोर्चा संभाल पाएंगे। जानकारी के मुताबिक मलेरिया विभाग में आधे से अधिक पद खाली हैं। स्वास्थ्य विभाग में मलेरिया विभाग की गिनती सुप्त विभागों में की जाती है। जर्जर बिल्डिंग, स्टॉफ व दवा की कमी के साथ ही सरकार की उपेक्षा का शिकार है। विभाग में स्टाफ की कमी और दवा की कमी होने के चलते घर घर अभियान नहीं चलाया जा रहा है।

छह प्रखंड मलेरिया जोन में

जिले के छह प्रखंड मलेरिया जोन में है। इसमें मुसाबनी, डुमरिया, घाटशिला, धालभूमगढ़, पटमदा व पोटका शामिल है। इसके अंतर्गत आने वाले 72 उप स्वास्थ्य केंद्रों में मलेरिया मरीजों की संख्या सर्वाधिक है। इन क्षेत्रों में मलेरिया विभाग का विशेष फोकस रहता है। इसके बावजूद मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। बीते वर्ष कुल 219489 लोगों की जांच की गई थी। इसमें 4638 मलेरिया के मरीज मिले। ब्रेन मलेरिया के 3261 शामिल है। वहीं सिर्फ एक मौत की दावा किया जाता है। सबसे अधिक मरीज डुमरिया में मिले थे। वहीं इस साल अब तक जनवरी से लेकर मार्च तक कुल 38644 लोगों की जांच हुई है। इसमें 192 मरीज मिले है। 121 ब्रेन मलेरिया के शामिल है। सबसे अधिक डुमरिया से ही मरीज मिल रहे है।

बांटी गई मेडिकेटेड मच्छरदानी

स्वास्थ्य विभाग ने इस साल मलेरिया प्रभावित कुल 1165 गांवों में दो लाख 67 हजार 116 मेडिकेटेड मच्छरदानी बांटी है। वहीं और 538 गांव में बांटे जाएंगे। वहीं बीते साल कुल 76900 मच्छरदानी बांटे गए थे। बिष्टुपुर स्थित मलेरिया विभाग परिसर में कचरा सड़ रहा है। अब तक कई बार इसे हटाने के लिए पत्राचार किया गया है लेकिन स्थिति जस का तस बनी रहती है। भारी मात्रा में कबाड़ होने के कारण मच्छरों का प्रकोप यहां भी बरकरार है। एमजीएम अस्पताल भी मलेरिया विभाग के नक्शे कदम पर है। यहां भी जगह-जगह पर स्क्रैप व कचरा फैला है।

अस्पतालों के ठेंगे पर आदेश

मलेरिया विभाग ने शहर के करीब 41 निजी व सरकारी अस्पतालों को विशेष दिशा-निर्देश जारी किया है। इसमें अस्पतालों को रोजाना मलेरिया, ब्रेन मलेरिया, डेंगू, जापानी इंसेफ्लाइटिस सहित अन्य बीमारियों की रिपोर्ट देनी है, लेकिन सिर्फ 12 अस्पताल ही निर्देश का पालन कर रहे हैं।

मलेरिया विभाग में कर्मचारियों की संख्या

पद संख्या

कंसलटेंट 01

एमटीएस 03

एफएलए 01

एमपीडब्लू 59

डाटा ऑपरेटर 01

आउटसोर्स 02

मलेरिया इंस्पेक्टर 02

निगरानी निरीक्षक 03

निगरानी कार्यकर्ता 02

क्षेत्रीय कार्यकर्ता 02

मलेरिया के लक्षण

- ठंड के साथ बुखार आना।

- उल्टी होना या जी मिचलाना

- शरीर में ऐंठन एवं दर्द।

- चक्कर अना।

- थोड़ी देर में पसीने के साथ बुखार उतर जाना।

बचाव के उपाय

- सोते समय मच्छरदानी का प्रयोग करें।

- मलेरिया के मच्छर साफ एवं ठहरे हुए पानी में पनपते हैं।

- घर के आस-पास जल जमाव न होने दें।

- बड़े जल-जमाव वाले क्षेत्रों में कीटनाशक, किरासन तेल या जला हुआ मोबिल डालें।

- पानी की टंकी एवं पानी जमा करने वाले सभी बर्तनों को ढक कर रखें।

करोड़ों फूंके नहीं मर रहे मच्छर

जेएनएसी, एमएनएसी व जुगसलाई नगरपालिका द्वारा करोड़ों रुपये फागिंग के नाम पर बर्बाद करने के बाद भी शहर में मच्छरों को प्रकोप कम नहीं हुआ है। कंपनी एरिया को छोड़ दें, तो शहर के किसी भी एरिया में सफाई की व्यवस्था अच्छी नहीं है। जिसके चलते शहर में मच्छरों की भरमार है। जेएनएसी, मानगो अक्षेस और जुगसलाई से हर दिन हजारों रुपये फागिंग में बर्बाद हो जाते है। लेकिन दो से तीन दिनों में मच्छर पहले की तरह की हो जाते है। फागिंग एक्पर्ट ने बताया कि दवा की मात्रा कम डाली जाती है जिससे दमा रोगियों को दिक्कत होती है। एक्पर्ट ने बताया कि एक घंटे मशीन चलाने में 15 से 20 लीटर डीजल खर्च होता है। जिससे हर दिन हजारों रुपये हवा में उड़ जाते है।

नई दवाओं से भी नहीं मर रहे मच्छर

एक समय था जब लोग मच्छर मारने के लिए धुआ जलाते थे। लेकिन आज मार्केट में मच्छर मारने के लिए रिफिल, मार्टीन, इलेक्ट्रानिक रॉकेट्र काला हिट जैसी दवाएं मार्केट में मौजूद है। जिनके प्रयोग के बाद भी शहर में मच्छरों की समस्या जस की तस बनी हुई है। मच्छरों को मारने के लिए बाजार में आ रहे उत्पाद लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहे है।