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स्पेशल का लोगो

हेडिंग- उड़ती धूल, खुले में जलता कूड़ा बढ़ा रहा पॉल्यूशन

- वाहनों की बढ़ती अनियंत्रित संख्या के कारण बढ़ रहा पॉल्यूशन

-अतिक्रमण रहित रोड और वाहनों की संख्या हो कम तो सुधर सकते हैं हालात

-अनियंत्रित कंस्ट्रक्शन पर लगाई जाए लगाम, रोड को धूल मुक्त करने के हों प्रयास

lucknow@inext.co.in

LUCKNOW(11 April) : लखनऊ दुनिया का सातवां सबसे प्रदूषित शहर है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने यू ही नहीं लखनऊ को विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में सातवें स्थान पर रखा है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च (आईआईटीआर)की ओर से हर साल जारी प्री और पोस्ट मानसून सर्वे कर प्रदूषण का स्तर मापता है. हर बार गवर्नमेंट को इसे कम करने के लिए सुझाव भी देता है, जिस पर कोई ठोस कदम न उठाए जाने के कारण ही समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. खुले में जलता कूड़ा, रेंगता ट्रैफिक और अनियंत्रित कंस्ट्रक्शन पॉल्यूशन बढ़ाने के प्रमुख कारण हैं. डॉक्टर्स के अनुसार यही हाल रहा तो लखनऊ में सांस लेना भी दूभर होगा और सांस कैंसर की बीमारियों से बचने के लिए सभी को मॉस्क लगाकर चलना पड़ेगा.

1. रेंगते और बढ़ते वाहन बढ़ा रहे पॉल्यूशन

एक्सप‌र्ट्स के मुताबिक लखनऊ में प्रदूषण का मुख्य कारक सड़कों पर दौड़ रहे डीजल व पेट्रोल से चलने वाले वाहन हैं. आरटीओ आफिस के डाटा के अनुसार इस समय लगभग डेढ़ लाख वाहन हर साल की गति से शहर में बढ़ रहे हैं. जबकि पिछले वर्ष 20 लाख से अधिक वाहन सिर्फ लखनऊ में ही रजिस्टर्ड हैं. इसके अलावा लगभग एक लाख वाहन रोजाना दूसरे जिलों से भी राजधानी होने के नाते लखनऊ आते हैं या यहां से गुजरते हैं. वाहनों की बढ़ती अनियंत्रित संख्या के साथ ही शहर में ट्रैफिक की हालत भी बहुत खराब है. 25 से 30 किमी. की दूरी तय करने मे एक घंटे से अधिक का समय लग रहा है. इसके दौरान फ्यूल कंजप्शन भी उसी रेशियों में काफी बढ़ जाता है. फासिल फ्यूल से उत्सर्जित होने वाली कार्बनडाई ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड जैसी खतरनाक गैसे उत्सर्जित होती हैं, जो पॉल्यूशन लेवल बढ़ाने में मददगार हैं.

2. सड़कों पर ही उड़ रही धूल

एक्सप‌र्ट्स के मुताबिक डेवलपमेंट के साथ ही धूल को नियंत्रित नहीं किया जा रहा. सड़कों के किनारे कच्चे हैं वाहन गुजरने पर धूल का गुबार उड़ता है जो लोगों के फेफड़ों में पहुंच रहा है. एलडीए, नगर निगम, पीडब्ल्यूडी जैसे विभाग के पास सड़कों की सफाई को लेकर कोई ठोस योजना नहीं है, जिससे धूल को रोका जा सके. सब लोगों की सेहत के प्रति लापरवाह और एसी में बैठकर प्लानिंग करने में मश्ागूल हैं.

3. खुले में जलता कूड़ा बढ़ा रहा समस्या

राजधानी लखनऊ में हर रोज सैकड़ों टन कूड़ा खुले में जला दिया जाता है. पब्लिक भी आस पास कूड़े को जलाती है. पत्तियां झड़ने का मौसम है ऐसे में कूड़ा जलाने की घटनाएं अधिक होने के आसार हैं. नगर निगम की ओर से खुले में कूड़ा जलाने के लिए जुर्माने का प्राविधान है, लेकिन शायद ही किसी पर आज तक कार्रवाई हुई हो. नगर निगम के सफाई कर्मी ही कूड़ा समय पर न उठने के कारण अक्सर उसमें आग लगा देते हैं. यहां पॉल्यूशन बढ़ाने के सबसे बड़े कारणों में से एक है.

4. अनियंत्रित कंस्ट्रक्शन बढ़ा रहा समस्या

शहर में अनियंत्रित निर्माण कार्य भी प्रदूषण को बढ़ाते हैं. धूल और मिट्टी उड़ती है. निर्माण सामग्री ले जाने वाले वाहन भी धूल उड़ाते जाते हैं उन्हें ढका नहीं जाता. कंस्ट्रक्शन साइट पर भी नियमों का पालन नहीं होता जबकि बिल्डिंग को चारो तरफ से ढका होना चाहिए और धूल के साथ ही ध्वनि भी बाहर नहीं आनी चाहिए, लेकिन जिम्मेदार सो रहे हैं. हर मोहल्ले में नियमों को ताक पर रखकर निर्माण कार्य चल रहे हैं.

बढ़ाई जाए पेड़ों की संख्या

सड़कों के किनारे बड़े पेड़ों, पाक और अन्य जगहों पर हरियाली बढ़ाई जानी चाहिए क्योंकि ये प्लांट ध्वनि और खतरनाक गैसेज को अवशोषित कर लेते हैं. इससे प्रदूषण में कमी आती है, लेकिन पिछले कुछ सालों में राजधानी के चारो तरफ ग्रीन बेल्ट को अंधाधुंध तरीके से नष्ट किया गया. अगर इसे रोका न गया तो आने वाले कुछ वर्षो में लखनऊ पाल्यूशन के मामले में टॉप पर होगा.

हर वर्ष आईआईटीआर देता है रिकमेंडेंशंस

पिछले 10 वर्ष से भी अधिक समय से आईआईटीआर के साइंटिस्ट्स हर वर्ष पॉल्यूशन लेवल को कम करने के लिए रिकमेंडेंशंस देते हैं. आईआईटीआर की रिकमेंडेशन में शहर में मेट्रो, मोनोरेल जैसे पब्लिक मास ट्रांसपोर्ट को शुरू किया जाए जिससे पर्सनल व्हीकल में कमी आए. साथ ही ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम को इम्प्रूव किया जाए. रोड्स से इनक्रोचमेंट हटाया जाए और ट्रैफिक को स्मूथ किया जाए. प्रेशर हार्न को सभी वाहनों से हटाया जाए और ऑटोमोबाइल पॉल्यूशन को कम किया जाए. गवर्नमेंट को पार्किंग चार्जेज बढ़ाने चाहिए और इसे आवर्ली बेसिस पर किया जाए ताकि लोग निजी वाहनों का कम यूज कर सकें. पैदल चलने वालों के लिए फुटपाथ बनाए जाएं, लेकिन न सरकार जागी न अधिकारी. पब्लिक भी सुधरने का नाम नहीं ले रही.

मेट्रो से राहत की उम्मीद

अधिकारियों को उम्मीद है कि मेट्रो शुरू होने के बाद से रूट पर वाहनों की संख्या काफी कम हो जाएगी. जाम से भी निजात मिलेगी जिसका लांग टर्म असर दिखेगा. मेट्रो को हर इलाके में तेजी से शुरू किया जाना चाहिए.

कोट-

सिटी में सक्षम लोग अपने घरों में सोलर पावर सिस्टम लगाएं, जिससे ग्रीन एनर्जी प्रोड्यूस होगी जिसे हम बैट्री चालित ई रिक्शा में प्रयोग कर सकते हैं. बैट्री चालित कारों को भी यहां बढ़ावा मिलना चाहिए. ताकि फॉसिल फ्यूल से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सके.

प्रो. भरत राज सिंह, पर्यावरणविद

कोट-

लखनऊ में गाडि़यों का धुंआ, खुले में कूड़े को जलाना और कंस्ट्रक्शन एक्टिविटीज ही पॉल्यूशन के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं. कंस्ट्रक्शन साइट की जांच कर नियमों का उल्लंघन होने पर कार्रवाई की जाती है. कूड़े को जलाने से रोकने के लिए नगर निगम और गाडि़यों के लिए ट्रैफिक व परिवहन विभाग को पत्र भेजा जाता है.

राम करन, क्षेत्रीय प्रदूषण अधिकारी

कोट-

खुले में कूड़ा जलाना दंडनीय अपराध है. अगर कोई ऐसा करता मिलता है तो 5 हजार रुपए तक जुर्माना लग सकता है. सभी सफाई कर्मियों को पहले ही निर्देश दिए जा चुके हैं कि कूड़े को किसी भी कीमत पर न जलाएं.

डॉ. इंद्रमणि त्रिपाठी, नगर आयुक्त

कोट--

ट्रैफिक व्यवस्था सुधारने के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं, दिन के साथ ही रात में भी ट्रैफिक कंट्रोलर की ड्यूटी लगाई जाएगी. जाम से मुक्ति दिलाने के लिए कई रास्तों को वन वे किया जा रहा है. एसआईटी टीम गठित की गई है जो ट्रैफिक को नियंत्रित करने के लिए मदद करेगी.

कलानिधि नैथानी, एसएसपी लखनऊ

बॉक्स बॉक्स् --फोटो

यहां तो पूरी प्लानिंग ही ध्वस्त है

लखनऊ में पॉल्यूशन का सबसे बड़ा कारण डस्ट है, जिस पर किसी का ध्यान नहीं है. सड़कों के किनारों को कच्चा छोड़ दिया जाता है जिससे वाहन गुजरने के बाद उससे धूल उड़ती है जबकि चाइना, सिंगापुर, मलेशिया जैसे बहुत से देशों में डस्ट का नामोनिशान नहीं मिलता. कंस्ट्रक्शन के दौरान पूरी बिल्डिंग को ढक देते हैं धूल क्या साउंड तक बाहर नहीं आती. सड़क के किनारों को टाइल्स या घास से ढक देते हैं, लेकिन हमारे यहां एलडीए, नगर निगम की बेसिक प्लानिंग ही ध्वस्त है. दूसरे देशों से ही कुछ सीख लें तो काफी हद तक समस्या सॉल्व हो जाएगी. सड़क के किनारे डस्ट है. गंदगी छोड़ रहे हैं, कंस्ट्रक्शन पर कोई रूल रेगुलेशन काम नहीं कर रहा है. जिस पर किसी का ध्यान नहीं है. आज बांग्लादेश भी अपने अधिकारियों को दूसरे देशों में भेजकर सिखा रहा है और प्लानिंग कर रहा है. हमारे यहां पर कई साल तक सड़क ही रिपेयर नहीं होती.

प्रदीप श्रीवास्तव, सीनियर साइंटिस्ट