Osho Death anniversary: ओशो का जन्‍म मध्‍य प्रदेश के रायसेन जिले के कुचवाड़ा गांव में 11 दिसंबर, 1931 को हुआ था। उन्‍होंने अपनी अंतिम सांस 19 जनवरी, 1990 को पुणे में ली थी। इस बीच 58 वर्षों का जो जीवन इस संन्‍यासी ने जिया, उसमें संन्‍यास के परंपरागत तौर तरीके को ही खारिज नहीं किया बल्कि जीवन को देखने का अलग ही नजरिया पेश किया। वे 1960 के दशक में आचार्य रजनीश कहलाए तो 1970-80 के दशक में लोग उन्‍हें भगवान श्री रजनीश कहकर बुलाने लगे, 1989 में उन्‍हें ओशो नाम मिल गया। आइए उनके विचारों से रूबरू होते हैं...

प्रेम में मालकियत हिंसा ही तो है

क्या जब नौकर की तरफ आप देखते हैं तो आपकी आंख वही होती हैं। जब आप मालिक की तरफ देखते हैं तब आंख वही होती है?जब आप मालिक की तरफ देखते हैं तब आपकी जो पूंछ है ही नहीं वह हिलती रहती है, जो है ही नहीं वह हिलती है पूंछ। जब आप नौकर की तरफ देखते हैं तो आपकी उसकी पूंछ पर नजर लगी रहती है, जो है ही नहीं कि हिल रही है कि नहीं हिल रही। हिंसा है, दोनों हिंसाएं हैं। एक में आप दूसरे पर हिंसा कर रहे हैं, एक में आप दूसरे की हिंसा सह रहे हैं। दोनों हिंसाएं हैं। जब एक पति पत्नी से कहता है कि पति परमात्मा है, तब उसे देखना चाहिए कि हिंसा हो रही है कि नहीं हो रही है।

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अपने सपने अपने बेटे पर थोपने वाले पिता मत बनिए

एक बाप समझता है कि मैं अपने बेटे को बहुत प्रेम करता हूं, बहुत प्रेम करता हूं। इतना प्रेम मैंने कभी नहीं किया। मैं प्रेम करता हूं, इसीलिए उसे कॉलेज मे कर पढ़ रहा हूं, खून पसीना बहा रहा हूं और उसे कॉलेज में पढ़ा रहा हूं। उसे मुझे पढ़ाकर शिक्षित करना है, उसे मुझे बहुत बड़े ओहदे पर पहुंचाना है। वह कहता है, मैं अपने लड़के को बहुत प्रेम करता हूं, लेकिन अगर वह अपने भीतर खोजने जाएगा तो आश्चर्य नहीं कि वह पाएगा लड़के से उसे कोई भी प्रेम नहीं है। वह अहंकारी, महत्वाकांक्षी आदमी है, जो-जो महत्वाकांक्षाएं खुद पूरी नहीं कर पाया, वह अपने लड़के के ऊपर थोप कर पूरी करना चाहता है। जब उसे यह दिखाई पड़ेगा तो घबराहट होगी, उसे लगेगा कि मैं कैसा बाप हूं! तब बड़ी इनफिरियारिटी पकड़ेगी कि यह क्या मामला है?

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यदि आपस में प्रेम हो तो कंधे पर रखी तलवार से भी भय नहीं लगता

अगर हम रास्ते पर भी किसी आदमी को प्रणाम करते हैं, नमस्कार करते हैं, तो भी भय के कारण ही करते हैं, अकारण नहीं करते, लेकिन अकारण प्रणाम करने का आनंद ही अलग है, जब कोई कारण ही नहीं है। अगर आपने कभी कारण से नमस्कार किया है तो नमस्कार बेकार हो गई। लेकिन अगर आपने बिना कारण किया है, सिर्फ इसलिए कि दूसरी तरफ भी वही है जो इस तरफ है, दूसरी तरफ भी वही मौजूद है जो सब तरफ मौजूद है, अगर ये हाथ किसी भी भय के बिना जुड़े हैं, तो हाथ जुड़ने का जो आनंद है उसका हिसाब लगाना मुश्किल है। मैंने आपसे कहा कि अक्सर हम जब पैरों में सिर रखते हैं, तो भय के कारण रखते हैं, लेकिन मैंने यह नहीं कहा कि सब सिर भय के कारण ही रखे जाते हैं। कभी कोई सिर बहुत प्रेम के कारण भी रखा जाता है, लेकिन तब कोई भय नहीं है।

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किसी और से तुलना कर अपने विकास का अंदाजा लगाना बेवकूफी

तुलना करने से विकास हो गया है? हो गया है, सब आदमी पागल हो गए हैं, यह विकास हो गया है! क्योंकि जितनी तुलना होगी उतना ही पागलपन बढ़ेगा। तुलना का मतलब है, नजर दूसरे पर। तुलना का मतलब है, दूसरे सदा मेरे ध्यान में रहें और मैं सदा गौण और सदा उनसे अपने को तौलूं। दो आदमी एक जैसे नहीं हैं, अगर आप रवींद्रनाथ के पड़ोस में रह गए तो आप मुश्किल में पड़ जाएंगे। कहीं आप भी कविताएं करने लगे तो जिंदगी मुश्किल हो जाएगी और रवींद्रनाथ अगर आपके बगल में रह कर कहीं दुकानदारी करने लगे तो वे मुश्किल में पड़ जाएंगे।

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कहा जाता है बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो

बुरे को देखेंगे तो बुरे हो जाएंगे, बुरे को सुनेंगे तो बुरे हो जाएंगे बुरा बोलेंगे तो बुरे हो जाएंगे। यह धोखा है! बुराई बाहर से नहीं आती, बुराई भीतर है! भीतर से बाहर की तरफ जाती है बुराई। गुलाब में कांटे बाहर से नहीं आते, भीतर की तरफ से आते हैं। फूल भी भीतर की तरफ से आता है, वह भी बाहर से नहीं आता। भलाई भी भीतर से आती है, बुराई भी भीतर से आती है; कांटे भी भीतर से, फूल भी भीतर से। इसलिए बहुत महत्वपूर्ण यह जानना है कि भीतर मैं क्या हूं?

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