- दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने पानी बचाने को लेकर किया पैनल डिस्कशन

- जल संरक्षण के जिम्मेदार, समाज के बुद्धिजीवी, शिक्षक, छात्र व व्यापारी हुए शामिल

बरेली : जल है तो कल है। चलो जल बचाते हैं, अपना कल बनाते हैंऐसे न जाने कितने स्लोगन अवेयरनेस का हिस्सा बने हुए हैं। लेकिन जरूरत घर-घर तक इसे पहुंचाना है, इस अमल कराना है। जब तक लोगों के जेहन में पानी बचाने की बात बैठ नहीं जाएगी तब तक पानी की बर्बादी को रोका नहीं जा सकता। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने कुछ ऐसा ही प्रयास किया। अवेयरनेस को घर-घर पहुंचाने का काम किया और लगातार कर रहा है। एक बाल्टी संडे कैंपेन से बरेलियंस में पानी को बचाने की चेतना जागी है। वह न सिर्फ खुद पानी बचा रहे हैं, बल्कि दूसरों को भी अवेयर कर रहे हैं। वह कैंपेन का हिस्सा बने। हमारी कोशिश रही कि कार और बाइक कम पानी से धुलने और किचन में कितना पानी यूज करें और कितना सहेजें को आदत में शुमार कराया जाए। पानी का स्त्रोत क्या है और आंकड़े क्या कहते हैं, इन सब पर बात करने के लिए हमने इस मुहिम में सरकारी विभाग के अधिकारियों, पर्यावरण व जल संरक्षण से जुड़े जिम्मेदारों, शिक्षाविद् और समाज के बुद्धिजीवियों को भी अपने साथ जोड़ा। इन सभी लोगों के साथ ट्यूज़डे को एक पैनल डिस्कशन रखा गया। इसमें जो विचार व्यक्त किए गए वो हमें और गंभीर होने के लिए सचेत करते हैं।

बारिश के पानी को सहेजें

पानी को बचाने से कहीं ज्यादा यह सोचने की जरूरत है कि पानी को सहेजें कैसे। बरसात के पानी को हम बचा सकते हैं। उसे स्टोर कर सकते हैं। ऐसे कई गांवों के उदाहरण हैं जहां पानी का संचय करने से 15 से 20 फीट तक ग्राउंड वाटर लेवल को ऊपर लाया गया है। जहां कुएं सूख गए थे वहां पानी आ गया। बारिश का पानी संचय करने के लिए बोर कराएं। गढ्डों में पानी स्टोर करें। सभी को मिलकर यह काम करना होगा।

- भरत लाल, डीएफओ

किचन में बर्बाद न करें पानी

यह काम सिर्फ सोचने और बात करने से नहीं बल्कि करने से होगा। एक कानून भी बनना चाहिए। ताकि लोग पानी बचाने के लिए सीरियस हो सकें। अक्सर देखने को मिलता है कि कई जगह पानी बह रहा है। हमें अपनी नैतिक जिम्मेदारी को समझना पड़ेगा और इसे निभाना पड़ेगा। घर में भी पानी की बर्बादी पर ध्यान दें। किचन में व्यर्थ में पानी न बहाएं। बहुत जरूरत पड़ने पर ही धोएं, पोछने से भी काम चल सकता है। इसे आदत में लाएं

- डॉ। चारू मेहरोत्रा, प्रोफेसर, अंग्रेजी विभाग, बरेली कॉलेज

फैक्ट्रियां खींच रहीं बेहिसाब पानी

घरेलू कामकाज या रोजमर्रा की जिंदगी में तो पानी बर्बाद हो ही रहा है, लेकिन उससे कहीं ज्यादा औद्योगिक क्षेत्रों में फैक्ट्रियों के जरिए धरती का दोहन हो रहा है। साथ ही, बैक्टीरिया भी पहुंच रहे हैं, यह स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं। कृषि में भी बेहिसाब पानी बर्बाद हो रहा है, ऐसी कई फसलों हैं जो कई लीटर पानी लेती हैं। इन्हीं में से एक साठा धान है। एवरेज देखें तो एक किलो धान में 2100 लीटर पानी लगता है।

- डॉ। अशोक खरे, विभागाध्यक्ष, वनस्पति विभाग

टैंक बनाकर पानी को स्टोर करें

देखने को यह मिल रहा है कि हम जरूरत से ज्यादा धरती का दोहन कर रहे हैं। यह लगातार जारी है। हमें इसे रोकना है। साथ ही डिमांड के हिसाब से पानी बचाने के लिए अपने प्रयास भी बढ़ाने होंगे। 2-4 लीटर के टैंक बनाने होंगे, जिसमें पानी को स्टोर किया जा सके। वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम होना चाहिए। यह सब जागरूकता लाने से ही संभव हो सकता है। इस स्तर पर काम किया जा रहा है। सबके सहयोग से ही जल को संरक्षित किया जा सकता है।

- पीसी आर्या, जेई, जलकल विभाग

संरक्षित करें, दुरुपयोग को रोकें

देश में पानी ठीक है। बस अवेयरनेस की जरूरत है। स्लोगन्स का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा किया जाए। तीन बातों पर ध्यान देने कि जरूरत है। पानी को कैसे बचाएं, पानी संरक्षित कैसे करें व इसके दुरुपयोग को रोकें। लोगों को एजुकेट करना होगा कि शॉवर से न नहाएं, बाल्टी का इस्तेमाल करें। बाथरूम व किचन में पानी बर्बाद न करें। ऐसी फसलों व पौधों को न लगाएं जो बेहिसाब पानी लेते हैं।

- राकेश बूबना, उद्योगपति

पुराने सिस्टम को अपनाना होगा

हमें यह सोचना होगा कि पहले लोग पानी कैसे बचाते थे। पुराने सिस्टम पर जाना होगा, वह ज्यादा बेहतर था। वह आज भी काम आएगा। गांव में क्राइसिस होती थी, तो लोग श्रमदान करते थे, तालाब भरे जाते थे। बेहिसाब पानी बर्बाद नहीं किया जाता था। इसी वजह से कुएं भी भरे रहते थे और तालाब भी। ऐसा सिस्टम बना था कि पानी अपने आप संरक्षित हो जाता था। बारिश का पानी बहकर निकलता नहीं था, बल्कि उसे जहां तहां स्टोर कर लिया जाता था। हमें पूर्वजों का पैटर्न अपनाना होगा।

- आर के यादव, जीएम, जलकल विभाग

विकास के नाम पर पानी की बर्बादी

पुरानी टंकियों को पानी को स्टोर के लिए इस्तेमाल में लाया जा सकता है। शहर के न जाने कितने मोहल्ले ऐसे हैं जहां पर विकास के नाम पर बेहिसाब बर्बादी की गई। टाइल्स लगाकर एरिया को चमकाया गया। सबसे जरूरी बात यह है कि दो पाइप लाइन होनी चाहिए। पीने के पानी की अलग और सीवर की अलग। इस व्यवस्था से काफी सुधार होगा। बाकी अवेयरनेस तो लानी ही होगा। उसके बिना पानी बचाने के सपने को हम कभी साकार नहीं कर सकते हैं।

- राजेश जसोरिया

कॉलोनियों में छोटे एसटीपी बनें

बड़े-बड़े एसटीपी की बजाए हमें छोटे-छोटे एसटीपी बनाने चाहिए। इससे पानी रुकेगा। हर कॉलोनी में ऐसा होना चाहिए। बड़े एसटीपी की मेंटीनेंस कॉस्टिंग बहुत है। छोटे एसटीपी बनाकर पानी सहेंजेंगे। इसे गार्डनिंग भी हो जाएगी। जल निकासी की समस्या भी दूर हो जाएगी। इसके अलावा अंधाधुंध पेड़ कट रहे हैं। जलवायु दूषित हो रही है। सीवर का पानी नदी में जा रहा है। इस बात पर भी विशेष तौर पर गौर किया जाना चाहिए।

- एपी सिंह, सीई, बीडीए

अधिक पौधे लगाने होंगे

अलग-अलग पानी को बचाने को लेकर समय-समय पर गोष्ठी कराएं ताकि अवेयरनेस बढ़े। बरेली की स्थिति भयावह है। ब्लॉक डार्क जोन में चले गए हैं। हमें पुराने स्वरूप में जाना होगा। रिचार्ज प्वाइंट को रिचार्ज करना होगा। ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाने होंगे। इसके साथ ही जनसंख्या नियंत्रण पर भी ध्यान देना होगा। जितनी अवेयरनेस होगी, उतना ही हम अच्छा कल बना सकेंगे।

- राजेंद्र गुप्ता, अध्यक्ष, व्यापार मंडल

मोहल्ले से ज्यादा फैक्ट्री ले रही पानी

फैक्ट्रियों को कंट्रोल में लाना होगा। फैक्ट्री, एक मोहल्ले से ज्यादा पानी को कंज्यूम करती है। इन्हें इसके बदले में प्रयास भी करने चाहिए। इनको गांव गोद व मोहल्ले गोद लेने चाहिए। लोग सिर्फ अवेयरनेस चाहते हैं। कंट्रीब्यूशन के नाम पर पीछे हट जाते हैं। पानी को रिसाइकिल किया जा रहा है। बचे पानी की गांवों में पूर्ति की जानी चाहिए। सड़क के चौड़ीकरण को हम गलत मायने में ले रहे हैं। किनारे-किनारे जगह छोड़ी जानी चाहिए।

- दीपक सक्सेना, पार्षद

स्विमिंग पूल बर्बाद कर रहे पानी

जनसंख्या का नियंत्रण होना बेहद जरूरी है। इसके अलावा हमें इस पर ध्यान देना होगा कि शहर में कई स्विमिंग पूल अवैध तरीके से चल रहे हैं। यह बेहिसाब पानी बर्बाद कर रहे हैं। इन पर रोक लगनी चाहिए। यह सालों से चल रहे हैं। पर इस पर अभी भी तक रोक नहीं लगा जा सकी है। इस तरह पानी का अभियान सफल नहीं हो सकता। जिम्मेदारों को कार्रवाई करनी चाहिए।

- अशोक कुमार, छात्र, पत्रकारिता

पार्क ऊंचे हैं, पानी बह जाता है

राजेंद्र कॉलोनी में 50 मकानों पर एक पार्क है। लेकिन अजीब बात यह है कि हम पानी को रिजर्व नहीं कर पा रहे हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि पार्क सड़क से ऊपर हैं। करीब छह इंच नीचे सड़क होने से बारिश का पानी बहकर निकल जाता है। यह रुक नहीं पाता। यह एक बड़ी समस्या है। पानी का टोटल वेस्ट हो रहा है।

- राजीव साहनी,

सबमर्सिबल लगा कर रहे दोहन

जगह-जगह सबमर्सिबल पाइप लगा दिए गए हैं। इससे धरती का दोहन हो रहा है। लोग समझने को तैयार नहीं हैं। इस पर अंकुश लगना चाहिए। गाड़ी को धोने की बजाए, उसे पोछें। इससे काफी पानी बचेगा। पानी की सप्लाई को लेकर मैं काफी गंभीर हूं। जहां शिकायत मिलती है। तुरंत जाता हूं। अपने लेवल पर पानी बचा रहा हूं। दूसरों को अवेयर भी कर रहा हूं

- सतीश कातिब, पार्षद

सख्त कानून बने

हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा इस सोच के साथ पानी को बचाने के बारे में सोचना होगा। अवेयरनेस जरूरी है। पानी पर कानून की जररूत है। जब तक कानून नहीं बनेगा लोग सीरियस नहीं होंगे। सरकार को सोचना चाहिए। चालान की व्यवस्था भी होनी चाहिए। इससे लोगों को सबक मिलेगा। सख्ती से ही सुधार हो सकेगा।

- सुधीर मेहरोत्रा, सीए

बर्बादी पर तुरंत हो कार्रवाई

जल बचाने का यह विषय काफी गंभीर है। कार धुलने में वॉशिंग सेंटर हजारों लीटर पानी बहा देते हैं। यह टोटल वेस्टिंग है। इन पर कार्रवाई होनी चाहिए। लाइसेंसे बने। साथ ही, मानक भी बनना चाहिए कि कितना पानी इन्हें खर्च करना है।

- गजेंद्र यादव, डायरेक्टर, विद्या आईएएस

पाइपलाइन की मरम्मत नहीं होती

पानी की पाइपलाइन फट गई है। इसे देखने वाला कोई नहीं है। इसके अलावा आए दिन सबमर्सिबल लगाए जा रहे हैं। इन पर कोई नियम नहीं है। सीधे तौर पर धरती का दोहन हो रहा है। वाटर लेवल तो कम ही हो जाएगा। इस पर रोक लगाई जानी चाहिए।

संजय सिंह, सदस्य, एनजीओ

अवेयरनेस बढ़नी चाहिए

पानी बचाने के लिए लोगों में भारी अवेयरनेस की कमी है। लगातार कैंपेन चलाए जाने चाहिए। तब जाकर अवेयरनेस आ पाएगी। लोगों को समझ में आना चाहिए कि पानी हमारे लिए कितना उपयोगी है। अभी लोग ऐसे पानी बहा रहे हैं, जैसे उन्हें कल पानी चाहिए ही नहीं। पानी को बचाना आज के समय में बेहद जरूरी है। पेड़ों का कटान भी रुकना चाहिए।

- शिवेंद्र प्रताप सिंह, संचालक, एनजीओ