Parmeet Sethi says Films Should Represent Every Culture

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परमीत सेठी ने कहा, फिल्मों में हर संस्कृति को दिखाना चाहिए 

मुंबई (ब्यूरो): बॉलीवुड की फिल्मों में अलग-अलग संस्कृति को खूबसूरती से दिखाया जाता रहा है। इनमें सबसे ज्यादा पंजाबी संस्कृति को उकेरा गया है। लेकिन अब हिंदी सिनेमा ऐसे शहरों में अपनी कहानी को लेकर जा रहा है, जिन्हें पहले फिल्मों में एक्सप्लोर नहीं किया गया है। 

फिल्मों में इस बदलती संस्कृति के बाबत पंजाबी और हिंदी फिल्मों में सक्ति्रय अभिनेता परमीत सेठी कहते हैं, 'बॉलीवुड में हर चीज का एक वक्त होता है। पहले फिल्मों में मुंबई शहर को ज्यादा दिखाया जाता था। फिर यश चोपड़ा जी आएं उन्होंने दिल्ली और उत्तर भारत को खोजना शुरू किया। यही वजह थी कि उनकी फिल्में फ्रेश लगीं। आज की फिल्मों में पूरे हिंदुस्तान को एक्सप्लोर किया जा रहा है। 

रोहित शट्टी की फिल्म 'सिंबा' मराठी पृष्ठभूमि पर आधारित थी। यूपी, बिहार को भी फिल्मों में दर्शाया जा रहा है। मैंने भी अपनी निर्देशित फिल्म 'बदमाश कंपनी' में यह प्रयास किया था। मैंने उस फिल्म में जिंग नाम का एक किरदार रखा था, जो नॉर्थ ईस्ट से था। हम अपनी फिल्मों में भारत के नॉर्थ ईस्ट हिस्से को भूल जाते हैं। आप कहानी को ज्यादा नहीं बदल सकते हैं, ऐसे में ताजगी को बरकरार रखने के लिए आपको उसका बैकड्रॉप बदलते रहना चाहिए। 

यह अच्छी बात है कि हम अलग-अलग शहरों की संस्कृति को फिल्मों में दिखा रहे हैं। एक ही शहर या संस्कृति को देखकर लोग भी बोर हो जाते हैं। लोग यह बदलाव शौकिया नहीं लेकर आए हैं। फिल्मों की ताजगी को बनाए रखने के लिए कास्टिंग से लेकर संस्कृति तक सबके साथ प्रयोग हो रहे हैं।

मुंबई (ब्यूरो): बॉलीवुड की फिल्मों में अलग-अलग संस्कृति को खूबसूरती से दिखाया जाता रहा है। इनमें सबसे ज्यादा पंजाबी संस्कृति को उकेरा गया है। लेकिन अब हिंदी सिनेमा ऐसे शहरों में अपनी कहानी को लेकर जा रहा है, जिन्हें पहले फिल्मों में एक्सप्लोर नहीं किया गया है। 

फिल्मों में इस बदलती संस्कृति के बाबत पंजाबी और हिंदी फिल्मों में सक्रिय अभिनेता परमीत सेठी कहते हैं, 'बॉलीवुड में हर चीज का एक वक्त होता है। पहले फिल्मों में मुंबई शहर को ज्यादा दिखाया जाता था। फिर यश चोपड़ा जी आएं उन्होंने दिल्ली और उत्तर भारत को खोजना शुरू किया। यही वजह थी कि उनकी फिल्में फ्रेश लगीं। आज की फिल्मों में पूरे हिंदुस्तान को एक्सप्लोर किया जा रहा है। 

रोहित शट्टी की फिल्म 'सिंबा' मराठी पृष्ठभूमि पर आधारित थी। यूपी, बिहार को भी फिल्मों में दर्शाया जा रहा है। मैंने भी अपनी निर्देशित फिल्म 'बदमाश कंपनी' में यह प्रयास किया था। मैंने उस फिल्म में जिंग नाम का एक किरदार रखा था, जो नॉर्थ ईस्ट से था। हम अपनी फिल्मों में भारत के नॉर्थ ईस्ट हिस्से को भूल जाते हैं। आप कहानी को ज्यादा नहीं बदल सकते हैं, ऐसे में ताजगी को बरकरार रखने के लिए आपको उसका बैकड्रॉप बदलते रहना चाहिए। 

यह अच्छी बात है कि हम अलग-अलग शहरों की संस्कृति को फिल्मों में दिखा रहे हैं। एक ही शहर या संस्कृति को देखकर लोग भी बोर हो जाते हैं। लोग यह बदलाव शौकिया नहीं लेकर आए हैं। फिल्मों की ताजगी को बनाए रखने के लिए कास्टिंग से लेकर संस्कृति तक सबके साथ प्रयोग हो रहे हैं।

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