-रात में करीब 12 बजे नामकुम से मरीज को लेकर रिम्स पहुंचे परिजन, 10 मिनट ट्रॉली मैन को ढूढ़ने के बाद खुद से स्ट्रेचर में लादकर ले गए इमरजेंसी

-रात के समय सिर्फ चार ट्रॉली मैन रहते हैं ड्यूटी पर तैनात, कुल ट्रॉली मैन की संख्या 70 के करीब

रांची : रिम्स में ट्रॉली मैन की कमी के कारण मरीजों को जान तक गंवाने की नौबत आ रही है। सोमवार देर रात ट्रॉली नहीं मिलने के कारण एक मरीज ने इमरजेंसी तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दिया। दरअसल, सोमवार देर रात करीब 12 बजे नामकुम से एक मरीज 65 वर्षीय प्रभुनाथ वर्मा को परिजनों द्वारा निजी गाड़ी में रिम्स के इमरजेंसी लाया गया। मरीज की स्थिति काफी गंभीर थी। जैसे ही गाड़ी इमरजेंसी में रुकी वैसे ही उनकी पत्‍‌नी ने ट्रॉली मैन को आवाज लगाई। इमरजेंसी के बाहर सिर्फ 2-3 ट्रॉली पड़े थे। जबकि वहां एक भी ट्रॉली मैन उपलब्ध नहीं थे।

10 मिनट तक खोजती रही

मरीज की पत्‍‌नी ने रोते बिलखते हुए 10 मिनट तक ट्रॉली मैन को ढूढ़ा लेकिन कोई भी नहीं मिला। जब काफी देर होने लगी तो उसने अन्य सुरक्षाकर्मियों को मदद के लिए गुहार लगाई, लेकिन इमरजेंसी गेट में तैनात सुरक्षाकर्मी मुकदर्शक बने देखते रहे। मरीज प्रभुनाथ की 58 वर्षीय पत्‍‌नी ने खुद एक स्ट्रेचर खींचा और अपने बेटे-बहु की मदद से उन्हें कार से निकाल कर स्ट्रेचर में रख इमरजेंसी ले गईं, जहां उसकी मौत हो गई।

तो बच जाती पति की जान

मरीज की मौत के बाद उसकी पत्‍‌नी ने कहा कि उसके मौत का जिम्मेदार रिम्स प्रबंधन है। मरीज को रिम्स आए 10 मिनट से ज्यादा हो चुके थे। उसकी सांसे चल रही थी। ट्रॉली मैन को ढूढ़ने के बाद भी वह नहीं मिला। मरीज को इमरजेंसी में ले जाने में देरी हुई जिस कारण उसकी मौत हो गई। पत्‍‌नी ने बिलखते हुए कहा कि अगर समय से मरीज को यहां ट्रॉली और इलाज मिल जाए तो मरीज की जान बच जाती। मरीज ने घर या रास्ते में दम नहीं तोड़ा, बल्कि अस्पताल पहुंचने के बाद इमरजेंसी में दम तोड़ा।

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इमरजेंसी में हर समय ट्रॉलीमैन उपस्थित रहते हैं। रात के शिफ्ट में इसकी संख्या कम है इसलिए लगातार आने वाले मरीजों को इन्हें ही अंदर बाहर करना पड़ता है। ऐसे में एक साथ कई मरीजों के आने से परेशानी होती है। जल्द ट्रॉली मैन की संख्या बढ़ाकर इस समस्या से निजात दिलाई जाएगी।

-डॉ। डीके सिंह, निदेशक, रिम्स।