गंभीर बीमारियों से जूझ रहे मरीजों को नहीं बचा पा रहे, जो आ रहे वो भी घंटों भटककर हो रहे बेदम

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- सीएमएस की लापरवाही से वेडनसडे को हो गई थी पांच दिन की नवजात बच्ची की मौत

- रजिस्ट्रेशन काउंटर, ओपीडी और दवा काउंटर पर मरीज धूप में दो-दो घंटे खड़े रहने को मजबूर

बरेली : डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में डॉक्टर व स्टाफ पूरी तरह से लापरवाही पर उतारू हैं। यही वजह है कि जिस अस्पताल को इलाज देना चाहिए वो मौत दे रहा है। दोनों सीएमएस की मौजूदगी में वेडनसडे को नवजात की मौत के बाद भी थर्सडे को हॉस्पिटल के हालात जस के तस मिले। सुबह ही अव्यवस्थाओं की भरमार रही। हॉस्पिटल में दवा लेने के लिए दूर-दराज से आए मरीजों को धूप में घंटों तक लाइन लगानी पड़ी। जिससे एक दो मरीज तो चक्कर खाकर गिर भी गए।

इलाज पाना हो तो यहां नहीं आना (फोटो)

सीबीगंज तिलिया निवासी नबी हसन की पत्नी अजरा ने बेटे अरसान को डायरिया की समस्या होने पर वेडनसडे रात को एडमिट कराया था। अजरा ने बताया कि डॉक्टर इलाज करने नहीं आ रहे हैं। बच्चे की समस्या वैसी ही बनी हुई है। हम केवल डॉक्टरों का इंतजार कर रहे हैं।

गर्मी में बेहोश होकर गिरी महिला (फोटो)

देहात क्षेत्र से बुखार की दवा लेने के लिए आई शांति देवी धूप में दवा काउंटर पर लाइन में खड़ी थीं। तेज धूप में एक घंटा तक खड़ी रहीं जिससे उन्हें चक्कर आ गया और वह बेहोश होकर गिर गईं। लोगों ने उन्हें पानी पिलाया तब जाकर उन्हें होश आया। कुछ देर बैठने के बाद वो चली गईं।

कुछ देर के लिए जागे

शहर के विकास कार्यो की समीक्षा करने के लिए विकास भवन में अफसरों के साथ समीक्षा बैठक करने के लिए प्रमुख सचिव पहुंचे थे। प्रमुख सचिव को डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल में भी निरीक्षण करना था। इसकी सूचना मिलते ही मेडिकल अधिकारियों कमियां दूर करने के लिए स्टाफ को लगा दिया। सुबह सबसे पहले इमरजेंसी के मरीजों को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया। इमरजेंसी में गिने-चुने ही मरीजों को रहने दिएगंदगी साफ की। कैंपस का टूटा फर्श भी तुंरत ठीक कराया गया। हॉस्पिटल में डॉक्टर्स और कर्मचारी भी ड्यूटी पर तैनात रहे।

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पैसे नहीं, प्राइवेट हॉस्पिटल कैसे जाएं

- सुबह नौ बजे से दवा लेने के लिए लालफाटक से आया हूं। हाथ में फ्रैक्चर हो गया था, इसीलिए आया हूं। दवा लेने के लिए पहले तो ओपीडी में ही तीन घंटा लग गए और दवा के लिए लाइन में लगा हूं।

अभय, लालफाटक

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- एयरफोर्स से दवा लेने के लिए आया हूं। लेकिन यहां तो मरीजों को इतनी लंबी लाइन लगी है कि कई मरीज तो लाइन देखकर ही वापस हो जाते हैं। धूप में महिलाएं गश खाकर गिर रही हैं। कोई मर भी जाए, इन लोगों को फर्क नहीं पड़ता।

राजेश, एयरफोर्स गेट

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-मरीजों की कोई सुनने वाला नहीं है। पैसे नहीं हैं, वरना प्राइवेट हॉस्पिटल चले जाते। बच्ची की मौत के बाद भी कोई व्यवस्था नहीं सुधर रही है। मैं भी बेटी की दवा दिलाने के लिए आई हूं, लेकिन अभी तक नम्बर नहीं आया।

दिव्या, हल्दी खुर्द

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-मरीजों को दवा लेने के लिए हॉस्पिटल में पूरा दिन ही गुजर जाता है तब कहीं जाकर दवा मिलती है। सरकारी हॉस्पिटल में मरीजों की कोई सुनने वाला नहीं है। डॉक्टर के रूम के बाहर, ओपीडी और दवा काउंटर पर हमेशा लाइन लगती है। सुधार कभी नहीं देखा।

अशोक, नकटिया