- सुविधाओं के नाम पर बस चल ही रहा है ये मेडिकल कॉलेज

- मरीजों को करना पड़ता है सफर, होते रहते हैं काफी परेशान

- इमरजेंसी से आईसीयू तक मरीजों को झेलनी पड़ती है समस्या

- मरीजों के लिए लिफ्ट, एक्सरे और अल्ट्रासाउंड में कई दिक्कतें

- ओटी में मरीजों को छला जाता है, बाहर से मंगाते हैं दवाइयां

Meerut: मरीज को जिस तरह उसके तीमारदार स्ट्रेचर पर खींचते हैं, ठीक उसी तर्ज पर मेडिकल कॉलेज अस्पताल को भी प्रबंधन किसी तरह चला रहा है। जहां देखो वहीं खामियां नजर आएंगी। लाखों करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद यहां सुविधाओं के नाम पर कुछ नहीं है।

इमरजेंसी में हालात बद्तर

मरीजों को एंबूलेंस लेकर पहुंचती हैं। इसके बाद मरीज को अंदर ले जाने के लिए खुद तीमारदार को स्ट्रेचर पर हाथ लगाना पड़ता है। इमरजेंसी में लाखों रुपए खर्च करके एसी लगाए गए। जो अब डिब्बा बने हुए हैं। बिजली की कमी के चलते ये एसी चलते ही नहीं। ऑक्सीजन लाइन सेंट्रलाइज की गई। जिसके पाईप इमरजेंसी में लगे हैं, लेकिन उसके वैक्यूम बॉटल से पानी ही सूख गया है। कई के मीटर टूट चुके हैं। धड़कन की स्पीड दिखाने वाले मोनीटर भी बंद पड़े हैं।

अल्ट्रासाउंड का भी बुरा हाल

मरीज के अल्ट्रासाउंड की सुविधा है। दो मशीनें होने के बावजूद मरीजों को चक्कर काटने पड़ते हैं। क्फ्भ् रुपए अल्ट्रासाउंड की फीस लगती है। कभी दोनों मशीनें नहीं चलतीं। आए दिन खराब रहती हैं। जांच रिपोर्ट में कभी शंका नहीं मिटती। मरीजों को लंबे इंतजार के बाद भी एक सही रिपोर्ट मिले यह जरूरी नहीं है। वैसे तो यहां मरीजों को डेट मिलती रहती हैं। जो आते हैं और इंतजार करके चले जाते हैं। फिलहाल यह विभाग भी स्ट्रेचर पर ही है।

एक्सरे विभाग भी बीमार

एक्सरे यूनिट में रोज सैकड़ों मरीज एक्सरे कराने पहुंचते हैं। हड्डी के साथ कई अन्य बीमारियों के लिए एक्सरे की सुविधा है। मगर यहां एक्सरे की किरणों ने इस विभाग को ही बीमार कर दिया है। जहां एक्सरे होते हैं, लेकिन उनमें कुछ साफ दिखाई नहीं देता। एक्सरे मशीनें बंद पड़ी रहती है। किसी तरह करके एक आधी मशीन चलती है तो एक्सरे में मरीज की बीमारी दिखाई नहीं देती। बस यहां लैब टेक्नीशियन अपना एक्सपेरिमेंट करते दिखते हैं।

एनेमिक हो गया ब्लड बैंक

यहां लोगों का डोनेट किया गया खून रखा जाता है। किसी को जरुरत होती है तो उसको यहां से ब्लड नहीं मिलता। खून देने के बाद भी खून मिले यह जरूरी नहीं है। हर साल कई यूनिट ब्लड खराब होने के कारण फेंक दिया जाता है। मगर यह खून कभी मरीजों की नशों में नहीं चढ़ता। दलाल यहां खड़े रहते हैं। खून दिलाने के नाम पर पैसा ऐंठते हैं। कई बार तो खून दिलाने वाले मरीज के पैसे ही लेकर गायब हो जाते हैं।

बनते ही बेकार हो गई लिफ्ट

लाखों रुपए लगाकर मरीजों की सुविधा के लिए लिफ्ट तैयार कराई गई। लिफ्ट मरीज को ऊपरी बिल्डिंग पर लाने और ले जाने की सुविधा के लिए लगाई गई, मगर ये लिफ्ट बनी और बेकार हो गई। लिफ्ट को चलाने वाला ऑपरेटर भी कोई नहीं। इसके चलते ये अधिक दिन तक नहीं चलीं। मरीज को अब गोल जीने से नीचे लाया जाता है। कभी भी स्ट्रेचर हाथ से फिसली तो मरीज भगवान को प्यारा हो सकता है। पांच लाख रुपए रिपेयर कराने में खर्चा आया था। इसके बाद भी बंद हैं।

दवा घर है, दवाएं नहीं

यहां मरीजों के लिए दवाई घर बना है। जहां से मरीजों को कभी पूरी दवाइयां नहीं मिलतीं। एक दवाई मिलती है और बाकी को बाहर से लाने के लिए कह देते हैं। ताकि डॉक्टर के पर्चे पर कमीशन बन सके। जिस डॉक्टर का पर्चा होता है उसको दवाइयों का कमीशन प्राइवेट स्टोर से मिल जाता है। ऐसे में मरीज को भटकना पड़ता है। जिसको पूरी दवाइयां लेनी होती हैं तो वह प्रधानाचार्य से लेकर सीएमएस तक चक्कर लगाता है। इस वक्त बजट चार करोड़ रुपए है। जिसकी डिमांड छह करोड़ करने की है।

लेबर रूम की हालत दयनीय

यहां गर्भवती महिलाएं चेकअप कराने और नसबंदी के लिए आती हैं। यहां एक बेड पर दो-दो महिलाएं होती हैं। गंदगी तो यहां अपार होती है। जहां कोई खड़ा भी नहीं हो सकता। गंदगी साफ दिखाई देती है। एएनएम और आशाएं यहां महिलाओं को नसबंदी के लिए प्रेरित करके लाती हैं, लेकिन सुविधाएं ढाक के चार पात। ऑपरेशन के लिए जाते समय एक स्ट्रेचर पर कई महिलाओं को ले जाया जाता है। जो हादसे को भी दावत देते हैं।

ओटी में खुलेआम लूटपाट

ऑपरेशन थियेटर में मरीजों से जमकर लुटाई होती है। यहां सरकारी सुविधाओं की पूरी तरह से अनदेखी होती है। मरीजों को यहां जमकर लूटा जाता है। जो मरीज यहां ऑपरेशन के लिए आता है उसको अधिकतर सामान बाहर से मंगवाया जाता है। ना कोई दवाई यहां से मिलती है और ना ही ऑपरेशन में यूज होने वाला धागा। डॉक्टर दवाईयां लिखते हैं और मरीज लेकर पहुंच जाते हैं। जो दवाईयां बचती हैं उनको वापस स्टोर पर पहुंचा दिया जाता है। लेकिन मरीज को कुछ पता नहीं चलता।

सीसीयू की हालत गंभीर

क्रिटिकल केयर यूनिट खुद क्रिटिकल कंडीशन में है। सुविधाओं के नाम पर कुछ खास नहीं है। मरीजों को बस यहां दवाइयां तो मिल जाती हैं, लेकिन उनको जिंदगी मिलनी मुश्किल होती है। मरीज के लिए वेंटीलेटर की कोई खास सुविधा नहीं है। जिससे मरते मरीज को कोई सांस दी जा सके। आईसीयू को फिर भी ठीक बताया जाता है। जहां एसी की भी सुविधा है। लेकिन सीसीयू तो स्ट्रेचर पर चल रहा है। मरीजों को समस्याओं का खासा सामना करना पड़ता है। आईटी वार्ड के डॉक्टर और नर्से यहां आकर काम करती है।

एआरटी सेंटर भी बीमार

मेडिकल कॉलेज अस्पताल में मौजूद एआरटी सेंटर में हालत बदतर है। जहां लोगों के लिए काउंसलर की हमेशा कमी रहती है। मरीजों से अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता। जांच के लिए यहां कोई खास सुविधा नहीं है। कोई आता है तो उसके साथ अच्छा व्यवहार नहीं होता। उसको जांच और फिर रिपोर्ट के लिए इधर-उधर टरकाया जाता है। यहां जांच किट आती हैं, जो मरीजों को नहीं दी जातीं। हमेशा रोना रोया जाता है।

जांच नहीं कराते डॉक्टर

मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर खुद ही यहां जांच के लिए नहीं लिखते। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि स्थिति क्या होगी। यहां मौजूद जांच के लिए लैब में उम्मीद ना करें आपकी रिपोर्ट सही ही आएगी। खून से लेकर बीमारियों की जांच के लिए लोगों को पैसा खर्च करने के बाद भी पूरी तरह संतुष्टि नजर नहीं आती। ऐसे में इस अस्पताल की इमरजेंसी में अधिकतर मरीजों की जांच के लिए प्राइवेट लोग घूमते रहते हैं। इन प्राइवेट पैथोलॉजी वालों से डॉक्टर्स के कमीशन बंधे रहते हैं। बाहर की लैब में कुछ डॉक्टर्स की पार्टनरशिप भी है।

एक्सरे की कुछ मशीनें सही हैं। जो खराब हैं उनको ठीक कराया जा रहा है। एक लिफ्ट ठीक कराई गई है। लिफ्ट के लिए भी इलेक्ट्रिशियन लगाया गया है। जल्दी ही ठीक हो जाएंगी। जो भी कमियां हैं उनको धीरे-धीरे ठीक किया जाएगा।

- डॉ। प्रदीप भारती, प्रिंसिपल मेडिकल कॉलेज