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नंबर गेम

- 350 से 400 पेशेंट रोज आते हैं ऑर्थो में

- 400 पेशेंट आते हैं मेडिसिन में

- 400 पेशेंट आते हैं चर्म रोग में

- 200 पेशेंट आते हैं सर्जरी में

- 150 पेशेंट आते हैं बाल रोग में

- 150 पेशेंट आते हैं हार्ट में

(ओपीडी में रोज आने वाले मरीजों की अनुमानित संख्या)

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अस्पताल में सुविधाएं

50 से 60 स्ट्रेचर

10 से 15 व्हील चेयर

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- जिला अस्पताल में गंभीर मरीजों को भी नहीं मिल पा रहा स्ट्रेचर व व्हील चेयर

- पेशेंट को गोद में उठाकर तीमारदार भटकते रहे इधर-उधर

- सीएम थे शहर में और अस्पताल में चल रही थी डॉक्टर्स, एंप्लाइज की मनमर्जी

GORAKHPUR: सीएम योगी आदित्यनाथ शनिवार और रविवार को गोरखपुर में थे और तमाम योजनाओं की हकीकत जानने के लिए उसकी समीक्षा कर रहे थे। हर विभाग अलर्ट पर था कि कहीं सीएम उधर न आ जाएं लेकिन जिला अस्पताल का माहौल ऐसा था, जैसे सीएम के आने से इन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट रिपोर्टर जब जिला अस्पताल पहुंचा तो वहां गंभीर मरीज तड़प रहे थे। डॉक्टर्स-एंप्लाइज मनमर्जी कर रहे थे। कहीं किसी की कंप्लेंट नहीं सुनी जा रही थी। स्टोर में स्ट्रेचर, व्हीलचेयर पड़े थे लेकिन तीमारदारों के गिड़गिड़ाने पर भी वह उन्हें नहीं मिल रहा था। मरीजों के अपने ही उनके लिए स्ट्रेचर, व्हीलचेयर बने नजर आए जो उन्हें किसी तरह गोद में उठाकर इधर-उधर पहुंचा रहे थे।

आपका मरीज, आप जानें

यकीनन, जिला अस्पताल जिले का सबसे बड़ा अस्पताल होता है लेकिन शनिवार को जो नजारा दिखा, वह छोटे अस्पतालों में भी शायद न दिखे। करीब 50 स्ट्रेचर व 10-15 व्हील चेयर होने के बाद भी डॉक्टर्स-एंप्लाइज यूं जता रहे थे जैसे यहां तो कोई सुविधा ही नहीं है। आपका मरीज है, आप जानें। आप गोद में लाएं या फिर किसी खाट पर, यहां तो स्ट्रेचर नहीं मिलेगा। गंभीर बीमार व हड्डी फ्रैक्चर के पेशेंट को गोद में लिए तीमारदार इधर-उधर भाग रहे थे, लेकिन उन्हें स्ट्रेचर नसीब नहीं हो रहा था। खुद ही किसी तरह ओपीडी पहुंचा रहे थे। एक तीमारदार अपने तीमादारों ने मरीज को एक चादर में लपेट कर उसके सहारे एक्स-रे कराने के लिए पहुंचे। पूछने पर बताया कि क्या करें साहब, स्ट्रेचर मांगने पर कोई सुन नहीं रहा।

नहीं दिखा कोई वार्ड ब्वॉय

ओपीडी में अपने पेशेंट के साथ पहुंचने वाले तीमारदार परेशान थे। कायदे से पेशेंट के पहुंचने के साथ ही वार्ड ब्वॉय को वहां स्ट्रेचर लेकर पहुंचना चाहिए। पेशेंट को अपनी निगरानी में स्ट्रेचर से ओपीडी, इमरजेंसी या जांच सेंटर तक पहुंचाना चाहिए लेकिन जिला अस्पताल में सबकुछ तीमारदार ही करते नजर आए। न कोई मदद मिल रही थी और न ही मदद नहीं मिलने की कंप्लेंट सुनी जा रही थी।

केस-1

बांसगांव थाना क्षेत्र के माल्हनपार के रहने वाले दीपक मारपीट में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। परिजन उन्हें लेकर अस्पताल के ओपीडी के बाहर पहुंचे। स्ट्रेचर व व्हीलचेयर के लिए कर्मचारियों से बात की लेकिन नहीं मिला। मरीज की हालत बिगड़ती जा रही थी। गिड़गिड़ाने क बाद भी जब स्ट्रेचर नहीं मिला तो तीमारदार खुद ही पेशेंट को गोद में उठाकर ओपीडी में अंदर बैठे डॉक्टर के पास पहुंचे। डॉक्टर ने दवा और जांच की सलाह दी। फिर गोद में ही लेकर ओपीडी से बाहर निकले और जांच के लिए आरडीसी सेंटर गए। वहां भी मौजूद कर्मचारियों ने कोई सहयोग नहीं किया।

केस-2

राजघाट एरिया के तुर्कमानपुर के रहने वाले नदीम खान अपने एक रिश्तेदार मोहसिन के साथ टेंपो से ओपीडी के बाहर पहुंचे। टेंपो से उतरकर पेशेंट के लिए इधर-उधर स्ट्रेचर व व्हीलचेयर खोजने लगे। लेकिन ओपीडी में कहीं भी स्ट्रेचर नहीं मिला। थक-हारकर खुद ही चादर में लिपटे मरीज को उठाकर डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने एक्स-रे कराने को कहा। चादर के सहारे ही तीमारदार पेशेंट को फिर क्षेत्रीय निदान केंद्र पर लेकर पहुंचे। जहां उसका एक्स-रे कराया गया। एक्स-रे प्लेट के साथ मरीज को दिखाने दोबारा ओपीडी में पहुंचे। बातचीत में बताया कि बड़ी तकलीफ में है, काफी गिड़गिड़ाया लेकिन स्ट्रेचर नहीं मिला, अब क्या करें?

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