- न्यूरो सर्जन, एनीस्थिसिया और अन्य मेडिकल स्टाफ की है कमी

- नहीं होती मॉक ड्रिल और न उपलब्ध है डेडिकेटेड ट्रामा टीम

PATNA: अगर बिहार के अंदर नेपाल जैसी विपदा जा आए, तो क्या पटना इसके लिए मेडिकल रिलीफ देने में सफल हो पाएगा? इस सवाल का जबाव है ना है, क्योंकि यहां पर सिर्फ कागजों पर ही काम होता है ग्राउंड पर कुछ नहीं। यहां फिलहाल स्टेट गवर्नमेंट के तीन और एक सेंट्रल गवर्नमेंट के मेडिकल कॉलेज व हॉस्पीटल हैं, लेकिन जहां तक ट्रामा केयर का सवाल है तो इसके लिए यहां कुछ भी नहीं। न स्पेशलाइज्ड डॉक्टर हैं और न ही बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर। ऐसी परिस्थिति में कैसे गंभीर स्थितियों से निपटा जा सकता है यह बात समझ से परे है।

नहीं बढ़ी है फैसिलिटीज

पीएमसीएच की बात करें, तो आज से करीब 25 साल पहले ही इसे एक ऑटोनोमस इंस्टीट्यूट बनाने की बात हुई थी, पर न तो इसे ऑटोनामी मिली और न ही यहां कोई सुविधा बढ़ी। अगर इस योजना पर काम हुआ होता, तो इसमें अन्य सुविधाओं के साथ ट्रामा केयर की स्थिति में भी बदलाव होता। वर्तमान समय में यहां 100 बेड है, जिसमें 50 बेड सर्जरी, आर्थो और प्लास्टिक सर्जरी के लिए है, जबकि बाकी 50 बेड में मेडिसिन डिपार्टमेंट के पेशेंट के लिए है।

ऑपरेशन में भी परेशानी

पीएमसीएच में अब भी एमसीआई की फटकार के बावजूद यहां प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर और रेजिडेंट डॉक्टर के कई पद खाली हैं। बात ट्रामा की करें, तो यहां न्यूरो सर्जरी, आर्थो और एनीस्थिसिया जैसे डिपार्टमेंट महत्वपूर्ण हैं। डिपार्टमेंट के हेड डॉ अशोक कुमार ने इसकी पुष्टि की। सिर्फ यही नहीं, यहां सर्जरी के कई इंस्टूमेंट जर्जर और पुराने हैं, जो काम के लायक ही नहीं।

बिना विल पॉवर के कुछ नहीं

इंडियन मेडिकल एसोसिएसन (बिहार ब्रांचच) के एक्स प्रेसिडेंट और बेतिया मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल डॉ राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि पीएमसीएच में ऑटोनोमनी की बात कम से कम 25 साल पहले ही उठाई गई थी और इसके बाद यहां विजन डॉक्यूमेंट के तहत इसके प्लांड तरीके से डेवलपमेंट का। जब लालू प्रसाद सीएम थे तब की ही यह बात है। इसके लिए कोर ग्रुप बनाकर परिचर्चा भी पर अफसोस कि सारी बातें सचिवालय की फाइलों में दबकर ही रह गई।

एनएमसीएच में दयनीय स्थिति

हाई ट्रैफिक एरिया के बीच बने एनएमसीएच में हर दिन आठ से दस लोगों ट्रामा व अन्य केस से मरते हैं, पर सालो से ट्रामा केयर सेंटर की मांग के बावजूद यहां कुछ नहीं है। एक न्यूरो सर्जरी डिपार्टमेंट तक नहीं है, तो स्पेशलाइज्ड डाक्टर की कौन कहे। आलम यह है कि एक पोर्टेबल एक्सरे तक की व्यवस्था नहीं है। सूत्रों के अनुसार यहां इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण आर्थो डिपार्टमेंट के पीजी स्टूडेंट्स की डिग्री दूसरे स्टेट में मान्य नहीं है। इसके कारण यहां के स्टूडेंट्स पढ़कर जॉब के लिए भटकते हैं।

मॉक ड्रिल व ट्रेनिंग

एनएमसीएच के डॉक्टरों को ट्रामा से निपटने की ट्रेनिंग तक नहीं दी गई है, जबकि हादसों से निपटने के लिए डॉक्टरों को भी मॉक-ड्रिल में शामिल करना चाहिए। जानकारी हो कि एम्स नई दिल्ली में ट्रेनिंग की व्यवस्था है। यहां एटीएलएस यानी एडवांस ट्रामा लाइफ सर्पोट कोर्स की ट्रेनिंग दी जाती है।

Highligts

ट्रामा केयर के लिए हो

-न्यूरो सर्जन की डेडिकेटेड टीम

-मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर व मशीनरी

-ट्रेंड व स्किल्ड मैनपॉवर

-मॉक ड्रिल, रिहर्सल

-अपग्रेडेट कम्यूनिकेशन सिस्टम