बचपन से ही थी आध्यात्म में रुचि
गुरुनानक देव का जन्म अप्रैल सन 1469 में लाहौर के पास तलवंडी में हुआ था. हालांकि जिस जगह पर गुरुनानक का जन्म हुआ था, वह ननकाना नाम से प्रसिद्ध थी. फिलहाल ननकाना इस समय पाकिस्तान में है. गुरुनानक जी बचपन से ही अध्यात्म के प्रति रूचि रखते थे. नानकजी का विवाह 16 साल की उम्र में ही कर दिया गया था, लेकिन गृहस्थ से दूर नानकदेव का मन धर्म और अध्यात्म की ओर बढ़ता चला जा रहा था. अपने इस अध्यात्म की वजह से उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों को ससुराल में छोड़ दिया और स्वंय धर्म के मार्ग पर चल पडे़.

सामाजिक दोषों को किया दूर
गुरुनानक जी ने अपने पूरे जीवन में सामाजिक कुरीतियों का पुरजोर विरोध किया. समाज में एकरूपता लाने के लिये उन्होंने अपना पूरा जीवन अर्पित कर दिया. समाज में फैल रही बुराईयों को जड़ से मिटाने के लिये उन्होंने काफी सफल प्रयास किये. हालांकि अपने इस प्रयासों के दौरान ही साल 1539 में उन्होंने अपने देह का त्याग कर दिया. गुरुनानक जी का मानना था कि समाज के प्रत्येक वर्ग का विकास तभी हो सकता है, जब सभी लोग सही रास्ते पर चलें.

सजायें जाते हैं गुरुद्वारे
गुरुनानक जयंती के दिन गुरुद्वारों और घरों को काफी सुंदर तरीके से सजाया जाता है. गुरुद्वारों को सजाने का काम गुरुनानक जयंती के आने से पहले ही शुरू हो जाता है. हालांकि रात के समय गुरुद्वारों की सजावट और भी खूबसूरत लगती है. प्रकाश पर्व के दिन लगभग हर गुरुद्वारे में लंगर का आयोजन किया जाता है. इस दिन सभी गुरुद्वारों में पूजनीय ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब जी का अखंड पाठ किया जाता है और गुरु ग्रंथ साहिब जी को फूलों से सजाया जाता है. इसके बाद इस पवित्र ग्रंथ को पालकी साहिब में रखकर नगर कीर्तन का आयोजन किया जाता है. नगर कीर्तन में गुरु ग्रंथ साहिब की सुसज्जित पालकी भव्य समारोह के रूप में निकाली जाती है. गुरु ग्रंथ साहिब जी की पालकी की अगुवाई के पंजप्यारे करते हैं और उनके पीछे सभी संगत भजन-कीर्तन करते हुये चलते हैं. इस पर्व के दिन लोगों में खासा उत्साह देखने को मिलता है.

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