आगरा। तेल की मार अभियान के तहत बुधवार को दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने पैनल डिस्कशन का आयोजन का आयोजन किया, जिसमें पेट्रोल पंप स्वामी, व्यापारी, ट्रांसपोर्टर, शिक्षक और आम लोगों ने अपनी राय दी, जिसमें एक राय होकर सभी ने कहा कि पेट्रोल-डीजल जीएसटी के दायरे में आने चाहिए, जिससे दो प्रकार के टैक्सों से बचा जा सकेगा। इसके साथ ही रेट भी कम हो जाएंगे।

आखिर मार तो जनता पर ही पड़ती है

पैनल डिस्कशन की शुरूआत किसानों से हुई। योगेंद्र कुमार कहते हैं कि डीजल अगर महंगा होता है तो इसकी सबसे ज्यादा मार किसान पर पड़ती है। जुताई की कीमत बढ़ जाती है। सिंचाई की कीमत बढ़ जाती है, खाद बीज-बीज की कीमत बढ़ जाती है। इसके साथ ही जब किसान फसल को मंडी बेचने के लिए लेकर जाता है तो उस दौरान किराया भी बढ़ चुका होता है। इसी बीच बीच योगेंद्र कुमार का समर्थन करते हुए राजपाल कहते हैं कि इसकी मार व्यापारी के साथ ही हर वर्ग प्रभावित होता। इसी बीच दोनों की बातों का समर्थन करते हुए दीपक चौहान कहते हैं कि किसानों पर ही व्यापारी, दुकानदार, चाय वाले से लेकर सभी प्रभावित होते हैं। डॉ। सुनील राजपूत कहते हैं कि इसमें सरकार को सोचना चाहिए। बढ़ती कीमतों पर नियंत्रण करना चाहिए।

रोजाना बढ़नी या घटनी नहीं चाहिए रेट

पेट्रोल पंप स्वामी कुलदीप नरवार कहते हैं कि रोजाना पेट्रोल डीजल की रेट बढ़नी या घटनी नहीं चाहिए। कम से कम 15 दिन में बदलाव होना चाहिए। रोजना रेट बढ़ने और घटने से पंप स्वामियों को काफी कठिनाई होती है। मशीन में रेट फिक्स करने के साथ ही अन्य दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कुलदीप नरवार की बातों का समर्थन करते हुए राजपाल सिंह कहते हैं कि सरकार ने पेट्रोल पंप स्वामियों को जुआ खेलना सिखा दिया है। पेट्रोल डीजल की रेट रोजाना बढ़ना और घटना जुआ के समान है। कभी फायदा भी होता है तो कभी नुकसान भी होता है। राकेश लोधी कहते हैं कि रेट कम होने चाहिए। आम लोगों की पहुंच से पेट्रोल डीजल दूर होते जा रहे हैं।