क्राइम की नयी डिग्री मिल जाती है

किसी एक क्लास में भी अगर ये लोग पहुंच जाते हैं तो पंद्रह दिन से लेकर एक महीने के भीतर ही इन लोगों को क्राइम की नयी डिग्री मिल जाती है। क्राइम की दुनिया में लूट, हत्या, किडनैपिंग करने वाले ऐसे क्रिमिनल को पीएचडी डिग्री धारी कहा जाता है। क्योंकि इस तरह की घटना को अंजाम देने से पहले ट्रेनिंग होती है। ग्रुप तैयार करना पड़ता है और फिर उसकी मॉनिटरिंग करके लास्ट स्टेज तक पूरी प्रक्रिया पूरी करनी होती है। इस पाठ को जो पूरा कर लेता है वो क्राइम की दुनिया में अपना नया गैंग बना लेता है।

आकाओं की लिस्ट है लंबी

बेउर जेल में जाने वाले छुटभैये क्रिमिनल की परख उसकी बैक हिस्ट्री से की जाती है। पहले क्लास लेते हैं। अगर सफल हुआ तो कुछेक कांटैक्ट नंबर देते हैं और जाते समय दो-तीन लोगों की सुपारी भी थमा देते हैं। पटना पुलिस के लिए यही क्रिमिनल बाद में गले की फांस बन जाते हैं। क्योंकि जेल से निकलते ही ये विभिन्न ग्रुप में शामिल हो जाते हैं और क्राइम की नयी घटनाओं को अंजाम देने में लग जाते हैं। ऐसे क्रिमिनल्स की विशेष हिस्ट्री पुलिस के पास नहीं होती है। इसलिए पुलिस की आंखों में धूल झोंकते हुए ये क्राइम पर क्राइम करते जाते हैं और पुलिस परेशान होती रहती है।

जेल में दिन भर चलती है बैठकी

सोर्सेज की मानें तो बड़े-बड़े शातिर क्रिमिनल्स के इर्द-गिर्द जेल के अंदर बैठकी चलरी रहती है। इस वजह से आसानी से लोग इनके संपर्क में आ जाते हैं। कुछ प्रेशर तो कुछ मजबूरी में गैंग का मेंबर बन जाते हैं। ऐसे छुटभैये क्रिमिनल पर नजर रखने के लिए बाहर रह रहे गैंग के मेंबर को भी इशारा कर दिया जाता है। अगर चालाकी की तो फिर खुद की भी जान गंवानी पड़ती है।

जेल में बंद आका

रीत लाल यादव

शिव गोप

बिंदु सिंह

अजय वर्मा

शंकर राय

श्याम बाबू गोप

नागा सिंह

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