संविधान के साथ छेड़छाड़

SC में दायर इस याचिका में कहा गया है कि यह बिल संविधान के बेसिक फीचर के साथ छेड़छाड़ है, ऐसे में इसे जल्द से जल्द निरस्त किया जाना चाहिये. याचिका दायर करने वाले एडवोकेट आर.के.कपूर ने इस मामले में भारत सरकार और तमाम राज्यों को पार्टी बनाया है. याचिका में कहा गया है कि सरकार द्वारा लाई गई नेशनल जुडिशियल अपॉइनमेंट कमिशन व कांस्टिट्यूशनल अमेंडमेंट बिल असंवैधानिक है. आपको बता दें  कि यह बिल दोनों सदनों में पास हो चुका है. याचिकाकर्ता ने कहा है कि 1998 में सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति ने कॉलेजियम सिस्टम में बदलाव का लेकर SC को रेफरेंस भेजा था, तक SC ने कॉलेजियम सिस्टम को सही ठहराया था.

क्या है बिल का आधार

याचिका के मुताबिक, सरकार ने जो बिल पास किया है उसके पीछे आधार बताया गया है कि जजों के सेलेक्शन के लिये मेरिट, ट्रांसपरेंसी और अकाउंटिबिलटी का आधार होगा. याचिकाकर्ता ने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम में भी यह सब है. SC ने जो व्यवस्था दी है वह संविधान के आर्टिकल-141 व 144 के तहत तमाम अथॉरिटी पर लागू होता है. ऐसे में सरकार इस तरह से कॉलेजियम सिस्टम को हटाने के लिये नया बिल नहीं ला सकती और इसके लिये संविधान में संशोधन नहीं कर सकती. गौरतलब है कि 1998 के जजमेंट में SC ने कहा था कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका अलग-अलग काम करेंगे.

जुडिशियरी  की आजादी में दखल

SC में केस दायर करने वाले याचिकाकर्ता का कहना है कि अगर नेशनल जुडिशियल अपॉइनमेंट कमीशन आयेगा तो फिर जजों की नियुक्ति में एक्जीक्यूटिव का रोल अहम हो जायेगा. इस तरह यह 'जुडिशियरी की आजादी' में दखल होगा. केशवा नंदन भारती बनाम केरला स्टेट के केस में SC की संवैधानिक बेंच ने कहा था कि 'जुडिशियरी  की आजादी' संविधान को बेसिक फीचर है और इस तरह संविधान के बेसिक फीचर में बदलाव नहीं किया जा सकता.

क्या है नेशनल जुडिशियल अपॉइनमेंट कमीशन

सरकार द्वारा बनाये गये इस नये कानून के तहत 6 लोगों का कमीशन होगा, जो जजों के नाम का चयन करेंगे और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी से उन्हें जज बनाया जायेगा. इसमें भारत के चीफ जस्टिस, 2 सुप्रीम कोर्ट के जज, कानून मंत्री और 2 अन्य लोग शामिल होंगे. इन दो नामों का चयन हाई पावर कमेटी करेगी.    

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