पित्र दोष के प्रभाव

- दीर्घकालिक अवसाद एवं अज्ञात रोग से ग्रसित रहेंगे।

- अज्ञात भय, मानसिक अशांति एवं अन्य मनोरोगों का शिकार हो सकते हैं।

- अध्ययन में बाधा, सफलता में बाधा।

- बेरोजगारी का सामना करना पड़ सकता है। जाॅब है तो चली जाएगी।

- विवाह में विलंब और दुखी दांपत्य जीवन।

- संतान हीनता एवं संतान हानि।

- व्यापार में अचानक घाटा हो सकता है।

- पदोन्नति में बाधा आ सकती है। कंपनी से बर्खास्त भी किए जा सकते हैं।

पितृदोष से निपटने के उपाय

- तीर्थ क्षेत्रों एवं गया आदि स्थलों पर विद्वत पिंड दान करना चाहिए।

- तिल से हवन और ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए।

- विधिवत पित्र पूजन करना चाहिए।

- मंदिरों में भजन-कीर्तन आदि करते रहना चाहिए।

- नाग की प्रतिमा बनाकर उसके विधिवत पूजा करके गांव भूमि तेल सोना आदि का दान करने से संतान हीनता की शांति होती है।

- पीपल के वृक्ष का पूजन करना चाहिए वहां जल चढ़ाना चाहिए और पीपल की परिक्रमा करनी चाहिए। वर्ष में कम से कम एक पीपल का वृक्ष भी लगाना चाहिए

- सार्वजनिक क्षेत्र में प्याऊ कुआ तालाब मंदिर आदि का निर्माण करवाना चाहिए।अस्पताल, गौशाला, विद्यालय आदि को दान करना चाहिए।

- ब्रह्मा एवं गरीबों को भोजन करवाना चाहिए।

- संत, गुरुजन और रोगी वृद्ध इत्यादि की सेवा श्रद्धा के साथ करनी चाहिए।

- श्रद्धा पूर्वक पकवानों को देने के कारण ही इनका नाम श्राद्ध है चित्र आदि के उद्देश्य द्रव्य त्याग आत्मक कर्म ही श्राद्ध है।

- शादी के अधिकारी पिता का श्राद्ध पुत्र कर्ण पुत्र नहीं हो तो पत्नी करें। पत्नी के अभाव में भाई या फिर भाई के आभाव में दामाद भी श्राद्ध करने के अधिकारी हैं। सभी के अभाव में मृत व्यक्ति का दत्तक पुत्र एवं अनुदानित पुत्र भी श्राद्ध करने के अधिकारी हैं।

- गंगाजल, दूध, मधु, तसर का कपड़ा और तिल श्राद्ध में अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं।

- श्राद्ध करता को तेल मालिश और उपवास वर्जित है।

-पंडित दीपका पांडेय

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