डाॅ. त्रिलोकीनाथ (ज्योतिषाचार्य और वास्तुविद)। पितृ पक्ष भाद्र मास की पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर अश्विनि मास की अमावस्या तक होता है। इस वर्ष पितृ पक्ष 29 सितंबर, शुक्रवार से शुरू हुआ है और 14 अक्टूबर, शनिवार, सर्व पितृ अमावस्या के दिन समाप्त होगा। इसी दिन पितृ विसर्जन किया जाता है। ब्रह्म पुराण के अनुसार इन 16 दिनों में पितरों की याद में तर्पण व श्राद्ध आदि किया जाता है। उन्हें विभिन्न प्रकार के पकवानों का भोग लगाया जाता है। कुछ लोग कई पीढ़ियों तक अपने पूर्वजों की अपने पिता दादा के माध्यम से जानकारी प्राप्त कर उनकी पसंद के अनुसार पकवान बनाकर खिलाते है।इसके अलावा इन दिनों कुत्तों एवं कौवों को पुरखों के नाम से निकाले गए विभिन्न तरह के पकवान खिलाने की मान्यता है।

श्राद्ध या पितृ पक्ष का महत्व
हिन्दु परंपरा के अनुसार वर्ष में एक बार पितृ पक्ष में ही विधिवत पुरखों को याद करते है। उनका जल या श्राद्ध के माध्यम से तर्पण करते है। मान्यता है इससे पितरों की कृपा बनी रहती है। वे अदृश्य रुप में अपने घर आते हैं और कल्याणरुपी आशीर्वाद की वर्षा करते है। पुरखों के आशीर्वाद से लोग जीवन की विषम परिस्थितियों से लड़कर आगे बढ़ने में सक्षम हो जाते है। कहते हैं कि पुरखे कवच के रुप में सुरक्षा करते है।

पितृ दोष का ज्योतिषि प्रभाव
कुण्डली में पितृ दोष होने पर हर काम में रुकावट के साथ हजारों समस्याएं आती हैं। हालांकि पितृ पक्ष में पुरखों की याद में तर्पण व गरीबों को दान करने से पितृ दोष समाप्त हो जाता है। पितरों के आशीर्वाद से जीवन में आने वाले दुखों का नाश होता है व खुशियां आती हैं। हालांकि जिन लोगों की कुण्डली में पितृ दोष नहीं है वे भी यदि पितरों की याद में दान या तर्पण करते है तो पितरों का आशीर्वाद उन पर बना रहता है।