- कूड़े से निकलने वाली प्लास्टिक के रीसाइकिलिंग के बाद बनते हैं प्रोडक्ट

- सही इस्तेमाल से पॉल्यूशन होगा कम, मेरठ में डिस्पोज की व्यवस्था नहीं

- मेरठ में नहीं है कोई इंसीनेरेटर, विभाग के पास भी नहीं कोई खास व्यवस्था

Meerut: बढ़ते पॉल्यूशन और उससे धरती को हो रहे नुकसान पर हमारे यहां चर्चाएं तो खूब होती हैं, लेकिन अपनी धरती मां को बचाने के लिए प्रयास करने में हम पीछे हैं। प्लास्टिक वेस्ट धीमे जहर की तरह धरती को नुकसान पहुंचा रही है, लेकिन इससे निपटने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है।

रोजाना पांच सौ टन प्लास्टिक वेस्ट

मेरठ शहर में बीस लाख की आबादी है। जहां रोज सैकड़ों टन पॉलीथिन दुकानों और ठेलों पर यूज होती है। पॉलीथिन के साथ ही प्लास्टिक बोतलें और बड़े पॉलीबैग यूज होते हैं। प्रदूषण विभाग की मानें तो शहर से पांच सौ टन से अधिक प्लास्टिक कचरा रोज निकलता है। जो सड़कों और कूड़े के ढेरों पर फेंक दिया जाता है।

एक भी रजिस्टर्ड कंपनी नहीं

मेरठ में मौजूद दस हजार से अधिक दुकानों पर करोड़ों रुपए की पॉलीथिन बिकती है। सबसे बड़ी बात ये कि इतनी बड़ी मात्रा में पॉलीथिन दुकानों पर बिक रही हैं और लोग यूज कर रहे हैं, लेकिन पॉल्यूशन डिपार्टमेंट में एक भी कंपनी रजिस्टर्ड नहीं है, जो पॉलीथिन बैग बनाती हो। इसके बावजूद सैकड़ों टन पॉलीथिन शहर में यूज हो रही है। यही पॉलीथिन रोज सड़कों पर, नाली, नदी और नालों में पहुंचती है। जिससे नाले तो चोक हो ही रहे हैं साथ ही हमारे पशु भी इसको खाकर मर रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश दरकिनार

प्रदूषण विभाग के अनुसार नगर निगम को सुप्रीम कोर्ट के आदेश दिए गए थे। इसके बावजूद आजतक नगर निगम के पास प्लास्टिक कचरे को डिस्पोज करने या रीसाइकिल करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के कड़े आदेश थे कि शहर से निकले वाला प्लास्टिक कचरा डिस्पोज करने के लिए व्यवस्था की जाए। इसकी जिम्मेदारी ही नगर निगम की होती है। लेकिन आजतक सॉलिड मैटेरियल इंसीनेरेटर की व्यवस्था नही की गई है। नगर निगम की इसी हीलाहवाली से शहर की सड़क पर और नालों में पॉल्यूशन बढ़ रहा है।

ऐसे हो सकता है पॉल्यूशन कम

प्रदूषण विभाग ने कई बार नगर निगम को लिखा कि वह इस पॉल्यूशन को कम करने के लिए इंसीनेरेटर लगवाए। इसके बाद भी कुछ नहीं किया गया। कई बार लिखकर भेजा गया, जवाब भी नहीं आया। ऐसे में पॉल्यूशन कम होने के बजाय बढ़ गया। वहीं नगर निगम इस प्लास्टिक को जलाकर दफन करने की बात करता है। जबकि इस प्लास्टिक को आधुनिक तरीके से इंसीनेरेट करना और रीसाइक्लिंग करना पॉल्यूशन से बचाव का साधन हैं। जिसके लिए अभी तक पॉल्यूशन को लेकर कोई खास व्यवस्था नहीं है। जबकि प्लास्टिक को रीसाइकिल कर हम बहुत अच्छा परिणाम पा सकते हैं। दिल्ली जैसे शहरों में दो तरह के कूड़ेदान लगाए गए हैं जिसमें बायोडिग्रेबल और नॉन डिग्रेबल वेस्ट अगल-अलग डाले जाते हैं, लेकिन मेरठ में इसका कोई इंतजाम नहीं है।

रीसाइकिल से बेहतरीन परिणाम

यूनिवर्सिटी में केमिस्ट्री के प्रोफेसर आरके सोनी के अनुसार वेस्ट प्लास्टिक मैटेरियल को रीसाइकिल करके कई प्रोडक्ट्स बना सकते हैं, जिससे पॉल्यूशन भी कम होगा और हमे नई टेक्नोलॉजी के जरिए एक अच्छा परिणाम भी मिलेगा, लेकिन सॉलिड प्लास्टिक मैटेरियल को ही हम रीसाइकिल करके कई चीजें बना सकते हैं। शहर से निकले वाले वेस्ट प्लास्टिक मैटेरियल में थर्मो प्लास्टिक को ही रीसाइकिल कर सकते हैं। थर्मो सेटरिंग मैटेरियल को रीसाइकिल भी नहीं किया जा सकता। इस वेस्टेज को रीसाइकिल करके पॉलीथिन, पॉलीप्रोपीन और नाइलोन तैयार होता है।

यह भी व्यवस्था

घरों और दुकानों से निकलने वाले प्लास्टिक वेस्टेज को रीसाइकिल करके आजकल सड़क, तारकोल, कपड़े तक बनाए जा रहे हैं, लेकिन मेरठ की हालत काफी खराब है। जहां ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जो प्लास्टिक पॉल्यूशन से छुटकारा पाया जा सके। ऐसे में सबसे पहले घरों से ही इस प्लास्टिक को रोक जाना चाहिए। इसका कम से कम यूज होना चाहिए। जूट और कपड़े के थैले को यूज किया जाए। इस पॉल्यूशन से बचने के लिए और धरती को बचाने के लिए हमें ही कुछ करना है।

प्लास्टिक के डिस्पोज की जिम्मेदारी नगर निगम की होती है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट से भी ठोस मैटेरियल इंसीनेरेटर लगाए जाने के आदेश आए थे। जो नगर निगम को कई बार भेजे गए। इसके बावजूद आजतक कुछ नहीं किया गया। मेरठ से पांच सौ टन से अधिक प्लास्टिक वेस्ट मैटेरियल निकलता है, जिसको डिस्पोज करने की कोई व्यवस्था नगर निगम के पास नहीं है। जिसके कारण काली नदी जहरीली हो गई है। नाले चोक हो गए हैं। पानी सड़क पर आता है तो सड़क बेकार हो रही हैं। - बीबी अवस्थी, ऑफिसर पॉल्यूशन डिपार्टमेंट

प्लास्टिक वेस्टेज को रीसाइकिल करके काफी प्रोडक्ट बनाए जा सकते हैं। लेकिन लोग प्लास्टिक का कम ही यूज करें तो बेहतर होगा। धरती पर होने वाले पॉल्यूशन से बचाव तो होगा। पॉलीथिन अगर मिट्टी में दब जाए तो वह गलती नहीं है। जिसके कारण बरसात का पानी धरती में नीचे नहीं जा पाता। काली नदी की हालत भी इस पॉलीथिन के कारण ही भयावह हो रही है। जिसके प्रयोग को रोका जाना चाहिए और डिस्पोजल के लिए व्यवस्था होनी चाहिएं। - प्रोफेसर आरके सोनी, केमिस्ट्री डिपार्टमेंट

हमारी संस्था ने पहले भी प्लास्टिक बैग का यूज रोकने के लिए अभियान चलाया था। लोगों से हमेशा पॉलीबैग का प्रयोग नहीं करने की मांग करते रहे हैं। इस बार भी आईनेक्स्ट के इस कैंपेन के जरिए प्लास्टिक यूज को रोकने की मांग की जाएगी। लेकिन इसके लिए शासन और प्रशासन को कड़ा होना पड़ेगा। जब तक सख्ती नहीं होगी तब तक इसका प्रयोग कम नहीं होगा। - साधना श्रीवास्तव, मानसी संस्था

हम हमेशा ही प्लास्टिक बैग का कम यूज करने के लिए ग्राहकों को कहते हैं। इसके लिए हमने अभियान भी चलाया था और कपड़े के बैग बनवाए थे। जागरूकता के लिए काफी कुछ किया, लेकिन लोग पॉलीथिन ही मांगते हैं। इसके लिए शासन से ही कुछ कड़ा निर्णय लिया जाए। - कमल किशोर गुप्ता, व्यापारी

लोगों से अपील है कि धरती को बचाने के लिए पॉलीथिन का कम से कम प्रयोग करें। पॉलीथिन जो सैकड़ों सालों तक धरती में गलती नहीं है उसको कम प्रयोग किया जाए। ताकि प्लास्टिक पॉल्यूशन कम हो और नदी, नाले चलते रहें व हमारी धरती सही रहें। - सलीम, व्यापारी

पॉली बैग की कंपनियों पर भी रोक लगनी चाहिएं। कोर्ट के आदेश के बाद भी लोग पॉलीथिन का बड़े स्तर पर यूज कर रहे हैं। जिसको रोका जाना चाहिए। साथ ही नगर निगम और प्राधिकरण को प्लास्टिक के डिस्पोज के बारे में सोचना चाहिए। - अरविंद कंसल, व्यापारी

सभी लोगों को पॉली बैग से बचना चाहिए। घर से कोई सामान लेने जाते हैं तो कपड़े या जूट के बैग का प्रयोग करें। बाजार से पॉलीथिन का कम से कम प्रयोग करें। प्लास्टिक पॉल्यूशन को कम करना है तो इसका यूज भी कम करना होगा। - मनोज शर्मा व्यापारी