- 200 से 250 मरीज रोजाना पहुंच रहे
- 40 से 50 मरीजों को ही मिल पा रही है वैक्सीन
- 10 दिनों तक डॉग्स के बिहेवियर पर नजर रखने की नसीहत
- काउंसलिंग कर जरूरतमंद को ही दी जा रही है वैक्सीन
- आधार कार्ड, मोबाइल नंबर, हिस्ट्री जानने के बाद ही मिलेगा इलाज
आई कंसर्न
पारुल सिंघल
मेरठ। दो महीने पहले शासन को एंटी रेबीज वैक्सीन सप्लाई करने वाली कंपनी के सैंपल फेल होने के बाद पूरे प्रदेश में एंटी रेबीज वैक्सीन का टोटा हो गया है। इधर शहर में भी वैक्सीन न मिलने से मरीज हलकान हैं। यही नहीं, विभाग लोकल परचेज से काम चला रहा है। यही नहीं, जिला अस्पताल में मरीजों को डॉग्स के 10 दिनों के बिहेवियर पर नजर रखने की नसीहत दी जा रही है। इसके बाद अगर डॉग्स के बिहेवियर में चेंज मिलता है, तभी मरीज को एंटी रेबीज वैक्सीन दी जा रही है। हालांकि, एआरवी के लिए शासन ने अस्पताल प्रबंधन और सीएमओ ऑफिस से रिपोर्ट मांगी है।
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पहले मरीजों की काउंसलिंग
पीएल शर्मा जिला अस्पताल के डॉक्टर्स के मुताबिक रेबीज का वायरस लाखों में से किसी एक कुत्ते में ही मिलता है। अधिकतर मरीज कुत्ते, बिल्ली, बंदर के पंजा मारने पर भी वैक्सीन लगवाने आते हैं। वैक्सीन देने के लिए अस्पताल में पहले मरीज की काउंसलिंग की जाती है। इस दौरान मरीज से जानवर की पूरी हिस्ट्री के साथ ही काटने या पंजा मारने के तरीके के बारे में पूछा जाता है। इसके बाद बेहद जरूरी केस में ही डॉक्टर मरीज देते हैं।
नहीं मिल रही वैक्सीन
एआरवी की सुविधा सिर्फ जिला अस्तपताल में होने की वजह से रोजाना 200 से 250 मरीज पहुंच रहे हैं, लेकिन सप्लाई न होने से वजह से महज 40 से 50 मरीजों को ही वैक्सीन दी जा रही है.जबकि पीएससी और सीएचसी के मरीजों के साथ आसपास के मरीजों को भी रेफर किया जाता है लेकिन उन्हें भी यहां आधार कार्ड देखकर वापस भेज दिया जा रहा है। एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाने के लिए मरीजों के लिए आधार कार्ड जरूरी कर दिया गया है।
सिर्फ काउंसलिंग का ट्रीटमेंट
जिला अस्पताल में दूरदराज से आने वाले मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। मरीजों को बाहर से ही नो वैक्सीन का बोर्ड दिखाकर टरका दिया जाता है। वहीं, मेडिकल कॉलेज से रेफर मरीजों को भी एंटी रेबीज वैक्सीन नहीं मिल पा रही है। काउंसलिंग के नाम पर दूरदराज के मरीजों को टरका दिया जाता है।
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कैसे फैलता है रेबीज
रेबीज जानवरों से फैलने वाला वायरल जूनोटिक इंफैक्शन होता है। रेबीज को हाइड्रोफीबिया कहते हैं। इससे इंकेफोलाइटिस जैसा द्रव्य रिलीज होता है। अगर समय रहते ट्रीटमेंट न लिया जाए तो यह जानलेवा हो सकता है। कुत्ता, बंदर , सियार, गीदड़ से रेबीज होने का खतरा ज्यादा रहता है। 24 घंटे के भीतर रेबीज का ट्रीटमेंट लेना जरूरी होता है। रेबीज जानवरों के स्लाइवा (थूक) से होता है। संक्रमित जानवर के स्लाइवा के सपंर्क में आने से रेबीज का खतरा बढ़ जाता है।
वर्जन
एंटी रेबीज इंजेक्शन के लिए बजट नहीं है। पहले चिरॉन कंपनी से एआरवी मंगवाएं जाती थी लेकिन दो महीने पहले इनके सैंपल फेल हो गए। जिसके बाद सरकार भारत वॉयो कैम कंपनी से डील करने जा रही है।
एके कौशिक, चीफ फार्मेसिस्ट, जिला सरकारी अस्पताल
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वैक्सीन की कमी की अभी चल रही है.शासन को पत्र लिख दिया है। डिमांड भेजी जा चुकी है। जल्द ही समस्या का निस्तारण हो जाएगा।
डॉ। वीपी सिंह, सीएमओ
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पब्लिक कोट्स
यहां कुत्ता काटे की दवा लेने आएं थे लेकिन हमें कहा गया कि आपको दवा की जरूरत नहीं हैं.दूर से आते हैं तो दवा मिलती नहीं हैं।
नाहिद, मरीज
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दवाई नहीं मिल रही है। तीन दिन से भटक रहे हैं, हर बार दवा देने से मना कर दिया जाता है।
शमीम, मरीज